मई 2025 का अंतिम सप्ताह। मैं मणिपुर (जिसका अर्थ है रत्नों की भूमि) की राजधानी इंफाल जा रही थी। यह इंफाल की मेरी दूसरी यात्रा थी – पहली दिसंबर 2024 में थी । मई 2023 में मेइतेई -कुकी संघर्ष शुरू होने के बाद, हमने मणिपुर में बहुत अशांति और हिंसा देखी है, विभिन्न स्रोतों के अनुसार, अधिक हिंदू (मेइतेई) मारे जा रहे हैं। यहाँ, मैं अपनी दो इंफाल यात्राओं के अनुभव को, वहाँ के लोगों के साथ बातचीत के माध्यम से साझा करने का एक प्रयास कर रही हूँ।
रत्नों की भूमि की यात्रा
अपनी पहली यात्रा के दौरान, जब मैं इंफाल हवाई अड्डे से बाहर निकली, तो मुझे नहीं लगा कि यह स्थान असम से अलग है – चाहे वह हरे-भरे दृश्य और सुगंध हो, घरों की संरचना हो, या सड़कों पर ताजा सब्जियों और फलों के छोटे स्टॉल हों। लेकिन, हवा में एक अनकहा सा तनाव था, लोगों के चेहरों पर एक सूक्ष्म उदासी छाई थी, जैसे कोई अनहोनी किसी भी क्षण घट सकती हो! ऐसा लग रहा था कि लंबे समय से रातों में लोग शांति से सोये नहीं थे ! टैक्सी ड्राइवर, एक युवा मेइतेई हिंदू, था उसने कभी संगीत की मधुरता को ही अपनी जीविका बनाया था, और उसका कॉफी शॉप का एक छोटा सा व्यवसाय भी था। उसने बताया कि मेइतेई-कुकी संघर्ष के कारण उसका व्यवसाय समय की धारा में बह कर ध्वस्त हो गया था । टैक्सी की खिड़की से मैंने लगभग चालीस वर्षीया एक महिला को देखा, जो सड़क पर भीख माँग रही थी, पर वह भीख माँगने वाली बिल्कुल नहीं दिखती थी। ड्राइवर ने कहा कि कई महिलाएँ, जो कभी थोड़ा खेती का या अन्य कोई छोटा व्यवसाय किया करती थीं, अब मजबूरी में भीख माँगने या अन्य अप्रिय कार्यों में लिप्त हैं। हजारों मैतेइ हिन्दू बेघर हो चुके हैं, सब कुछ खो चुके हैं अपना। उनके बच्चों का स्कूल-कॉलेज जाना भी अनियमित हो गया है ।
पहली यात्रा में मेरा मन भय से संकुचित था – मैं इंफाल शहर में बाहर निकल भ्रमण करने का साहस नहीं जुटा पाई थी । किंतु मई 2025 में दूसरी यात्रा के दौरान, मैंने अपना साहस जुटाया और इंफाल शहर को देखने निकली – गोविंदजी का मंदिर (इंफाल पूर्वी जिला), कांगला किला (इंफाल पश्चिमी जिला), मोइरांग में आईएनए स्मारक और लोकटक झील (बिष्णुपुर जिला)।
इन स्थानों का दौरा करने के बाद, मेरा आत्मविश्वास बढ़ा, और इस स्थान और जनमानस के साथ मेरा जुड़ना शुरू हो गया। इन स्थानों ने मेरे भीतर आत्मविश्वास का संचार किया, और मणिपुर के लोगों से एक संवेदना का रिश्ता जुड़ा। यह यात्रा केवल पर्यटन नहीं थी; यह एक बहाना था इस भूमि की धड़कनों को महसूस करने का, लोगों के दर्द को आत्मसात करने का। मैंने समाज के कई वर्गों के लोगों से बात की। 13 फरवरी 2025 को मणिपुर में राष्ट्रपति शासन लागू होने के बाद, हमें उम्मीद थी कि स्थिति सुधरेगी। किंतु, जब मैंने लोगों से पूछा, तो लगभग सभी ने जवाब दिया कि कि हालांकि सतह पर चीजें बेहतर दिख रही हैं, पर वास्तव में सुधार नहीं हुआ है। समस्या अभी भी राख के नीचे सुलग रही है – दुर्भाग्यवश, थोड़ी सी हवा ही आग को फिर से भड़काने के लिए पर्याप्त होगी!
ग्रहणों और घावों की दर्दभरी गाथाएँ
मणिपुर लंबे समय से संघर्षों और आक्रमणों के ग्रहणों से पीड़ित रहा है। कभी बहुत शक्तिशाली रहा यह राज्य, आसपास की जनजातियों, जैसे बर्मी, कुकी और नागाओं के निरंतर आक्रमणों के कारण कमजोर होता चला गया। कुछ स्रोतों के अनुसार 1250 AD में चीनी सेना ने पूर्वी मणिपुर पर आक्रमण किया था और पराजित हुई। वर्तमान मेइतेई-कुकी संघर्ष मई 2023 में शुरू हुआ।18वीं सदी में महाराजा पमहेइबा (जिन्हें गरीबनिवाज भी कहा जाता है, शासनकाल 1709-1751 AD) के समय में कुकी मणिपुर की पहाड़ियों में बसने लगे। वे बर्मा के शक्तिशाली लोगों द्वारा खदेड़े गए थे, और ब्रिटिश ने 1819-1826 के सात साल के विनाशकारी बर्मी आक्रमणों के दौरान मणिपुर की घाटी को घेरने वाली पहाड़ियों में म्यांमार से कुकी लोगों के बसने को प्रोत्साहित किया। मणिपुर 1824 में ब्रिटिश संरक्षित राज्य बन गया। खोंगजोम के एंग्लो-मणिपुरी युद्ध में, वीर युवराज टीकेंद्रजीत और जनरल थंगल को 13 अगस्त 1891 को ब्रिटिश के खिलाफ लड़ाई के लिए सार्वजनिक रूप से फाँसी दी गई, फिर 1891 में ब्रिटिश ने मणिपुर पर नियंत्रण हासिल कर लिया। कुकी समुदाय के लोग आरंभ में ब्रिटिश द्वारा नागा और मेइतेई राज्य के बीच एक बफर(प्रतिरोधक ) के रूप में इस्तेमाल किए गए थे, और मणिपुर घाटी को नागा जनजातियों के छापों से बचाने के लिए भाड़े के सैनिकों के रूप में सेवा दी। पहले बसे कुकी मणिपुर का अभिन्न अंग बन गए थे और मेइतेई के साथ शांति और सौहार्द से घुल-मिल के रह रहे थे।
वर्तमान संघर्ष – एक पुनरावलोकन
मई 2023 से दोनों जातीय समूहों के बीच संघर्ष आरम्भ हुए । म्यांमार से अवैध रूप से आकर बसे कुकी लोगों ने अशान्ति की जिससे एक संघर्ष की सृष्टि हुई , यहाँ तक कि उन कुकी लोगों को भड़काया जो वर्षों से मेइतेई के साथ शांति और सद्भाव में रह रहे थे। यहाँ रहनेवाले लोगों ने बताया कि अफीम की खेती इस संघर्ष का एक प्रमुख कारण रहा है। पड़ोसी म्यांमार की भूमि में निरंतर अफीम की खेती के कारण मिट्टी की उर्वरता कम होने लगी, और दशकों से नशीली दवाओं के निर्माण के लिए कुख्यात गोल्डन ट्रायंगल मणिपुर-म्यांमार सीमा की ओर, पश्चिम की ओर स्थानांतरित होने लगा। और, हर कोई इस आसान पैसे को हथियाना चाहता है। इंफाल के लोग जानते हैं कि मणिपुर में संघर्ष का एक कारण इस घिनौने व्यवसाय – नशीली दवाओं के पीछे की धन की शक्ति है। नशीली दवाएँ हमारे युवाओं और सभ्यता को नष्ट कर रही हैं। लोग नशीली दवाओं के व्यवसाय के कुरूप चेहरों को क्यों नहीं समझ पाते? क्या उन्हें केवल पैसे की परवाह है? मणिपुर के लोग जानते हैं कि इस व्यवसाय में कौन शामिल है, और कौन अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं के लिए हिंसा को भड़का रहा है और उसे समर्थन भी दे रहा है।
आंतरिक राजनीतिक और अन्य उद्देश्यों के अलावा, कुछ बाहरी ताकतें भी इस क्षेत्र को अस्थिर करना चाहती हैं। अब, कुकी एक अलग “कुकीलैंड” की माँग कर रहे हैं। कौन नहीं जानता कि म्यांमार, बांग्लादेश और भारत के कुछ हिस्सों को मिलाकर एक अलग राष्ट्र बनाने की बाहरी ताकतों की नापाक साजिश है? और इसका धर्म क्या होगा? “क्राउन कॉलोनी” की अवधारणा अभी भी जीवित लगती है! कुछ मणिपुरियों ने बताया कि अवैध कुकी प्रवासियों को बाहरी ताकतों से हथियार और हथियारों की आपूर्ति मिल रही है।
प्रश्न उठे – “प्रधानमंत्री मोदी मणिपुर का दौरा क्यों नहीं कर रहे हैं? क्या प्रधानमंत्री मोदी को मणिपुर और मणिपुरियों की परवाह नहीं है? अगर प्रधानमंत्री मोदी पाकिस्तान समर्थित आतंकवाद के खिलाफ ऑपरेशन सिंदूर को अंजाम दे सकते हैं, तो इस क्षेत्र में क्यों नहीं?”
हालांकि बाहरी ताकतें संक्षारक भूमिका निभा रही हैं, वर्तमान मेइतेई-कुकी संघर्ष को हल करने के लिए एक दृढ़ और निष्कपट राजनीतिक इच्छाशक्ति की आवश्यकता है। क्या मणिपुर में राष्ट्रपति शासन ने वास्तव में स्थिति को बदला है? मणिपुरी कहते हैं कि नहीं, क्योंकि मूल कारण का समाधान नहीं हो पाया है। जब तक एंटीबायोटिक्स देकर संक्रमण को खत्म नहीं किया जाता, तो सिर्फ़ पैरासिटामॉल देने से बुखार कम नहीं होगा, हालाँकि इससे कुछ समय के लिए दबाया जा सकता है। मणिपुर में कुछ ऐसा ही हो रहा है।
शांति का संभावित पथ
इस संकट का समाधान तलाशने के लिए, पहले इसके मूल कारण को संवेदनशीलता और सहानुभूति के साथ समझना होगा। लोगों से स्नेहपूर्ण बातचीत करके। उनके दिल और नसों में बहती पीड़ा को महसूस करते हुए। इतिहास के घाव भुलाए नहीं जाते, और मणिपुर के घाव तो ब्रिटिश युग से भी पुराने हैं। इस जटिल स्थिति को शांत होने में समय लगेगा, पर संभावित पथ शायद कुछ ऐसा हो सकता है —
- थोड़े उपचार और सुधार के लिए , प्रधानमंत्री मोदी को जल्द से जल्द मणिपुर की यात्रा करनी चाहिए और लोगों से हृदयस्पर्शी संवाद करना चाहिए। मणिपुरियों को उनके घावों को भरने के लिए प्रधानमंत्री मोदी के स्नेह और प्रेम की आवश्यकता है।
- मणिपुर में मेइतेई और कुकी के राजनीतिक नेताओं को सौहार्दपूर्ण ढंग से बात करनी चाहिए और लोगों के लिए रचनात्मक और स्थायी समाधान निकालना चाहिए। आंतरिक समाधान उनके पास ही है। कब तक लोग इस पीड़ा के शिकार बने रहेंगे?
- केंद्र सरकार को सीमाओं पर, विशेष रूप से म्यांमार से अवैध आव्रजन की समस्या को हल करने की कोशिश करनी चाहिए। चाहे वह म्यांमार के साथ व्यापार संबंधों को बेहतर करके हो, या ऑपरेशन सिंदूर जैसे कदम उठाकर, लेकिन कुछ निर्णायक कार्रवाई की जानी चाहिए। म्यांमार में शांति, प्रगति और विकास की भी आवश्यकता है ताकि उनके युवा गैरकानूनी गतिविधियों को छोड़ दें और वहाँ लाभकारी गतिविधियों में संलग्न होकर अपनी आजीविका कमा सकें।
- मणिपुर में प्रगति और विकास को तीव्र करना चाहिए। पर्यटन, कृषि, हथकरघा और वस्त्र, बागवानी, हस्तशिल्प उद्योगों में अपार संभावनाएँ हैं और ये मणिपुर में समृद्धि ला सकते हैं। केंद्र सरकार को राज्य से निर्यात बढ़ाने के साथ-साथ अन्य राज्यों के साथ व्यापार को बढ़ाने के उपाय करने चाहिए। इसके अलावा, शिक्षा, खेल, उत्पादन, सूचना प्रौद्योगिकी, और कृत्रिम बुद्धिमत्ता क्षेत्र पर भी विशेष ध्यान देना चाहिए।
मणिपुर के सामरिक, रणनीतिक और भौगोलिक महत्व को भारत और उसकी सुरक्षा के संदर्भ में ध्यान में रखा जाना चाहिए – और इससे लंबे समय तक लंबित रह सकने वाले समाधान के विषय में कार्य करना चाहिए। पिछले चुनाव में जिस फॉर्मूले ने काम किया, वह फिर से काम ना भी करे शायद ! मणिपुर शांतिपूर्ण, सुखी जीवन के साथ प्रगति, विकास और समृद्धि का हकदार है, जो विकसित भारत@2047 के स्वप्न के साथ कदमताल करे।
मणिपुर में रहने वाले सभी उनके नन्हे-मुन्ने ,बालाएँ -बालक, मुस्कुराने, फलने-फूलने, और रातों की शांत निद्रा का सुख भोगने के हकदार हैं। सर्वे भवंतु सुखिनः।