पूनम शर्मा
वर्तमान वैश्विक सुरक्षा परिदृश्य में हाल ही में रूस के खिलाफ किए गए बड़े पैमाने वाले ड्रोन-मिसाइल हमलों ने सैन्य संतुलन और भू-राजनीतिक समीकरणों को हिला कर रख दिया है। चार प्रमुख सैन्य ठिकानों पर एक साथ हुए इस अभियान ने न केवल सैटेलाइट-आधारित अत्याधुनिक निर्देशित हथियारों की भूमिका को उजागर किया, बल्कि भारत, अमेरिकी सहयोगी (विशेषकर NATO) एवं अन्य अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी इसमें प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से शामिल दिखे। इस लेख में हम इस हमले के पीछे की रणनीति, संचालन की रूपरेखा, संभावित साझेदारों तथा भविष्य में इसके दुष्परिणामों का विश्लेषण करेंगे।
हमले की रूपरेखा और आधारों का महत्व
रिपोर्ट्स के अनुसार यह हमला अचानक या इत्तेफाक से नहीं हुआ; बल्कि इसे लगभग डेढ़ से दो साल की गुप्त तैयारी के बाद अंजाम दिया गया। कुल मिलाकर चार बेस—
- “ऑल इंडिया ईवन” (मंगोलिया के उत्तर में),
- “पिलाया” (मास्को के दक्षिण-पूर्व में),
- एक अज्ञात बेस (मास्को के उत्तर-पूर्व में),
- “गायत्री यू-से” (स्वीडन–फिनलैंड सीमा के पास)—
पर लक्षित ड्रोन और मिसाइल हमले किए गए। इसके लिए “स्टडी जी कॉमर्स” नामक डेटा नेटवर्क के अंतर्गत “ट्यून 9522” कोडमय सिग्नलिंग प्रणाली का इस्तेमाल हुआ। यह प्रणाली उपग्रह आधारित कमांड एंड कंट्रोल को सक्षम बनाने में सहायक है, जिससे अत्यधिक शुद्धता के साथ लक्ष्य निर्धारित करना संभव हुआ।
हर एक ठिकाने पर “स्टडीज़ बॉम्बर्स” नामक आधुनिक स्ट्रैटेजिक बमवर्षक विमान तैनात थे, जो रूसी वायु-रक्षा के लिए संवेदनशील थे। हमले में 2,172 ड्रोन तैनात किए गए, जिनमें से 172 बेहद निर्णायक क्षण पर मुख्य लक्ष्य पर सीधे विरामित (इम्पैक्टेड) हुए। इन ड्रोन-फोटोज और वीडियो फुटेज से स्पष्ट हुआ कि हर हमले का लक्ष्य रूसी एयरबेस के प्रमुख प्लेन्स और पनडुब्बी हमलावरों की क्षमताओं को क्षमताहीन करना था।
लॉजिस्टिक्स व दीर्घकालीन गुप्त तैयारी
इस अभियान की सबसे बड़ी विशेषता इसकी जटिल लॉजिस्टिक्स और गुप्त कमांड-सेंटर से जारी दिशा-निर्देश थे। ट्रक के जरिये सीमा-पार ड्रोन-डिलीवरी, स्थानीय मॉडिफिकेशन और फिर सैटेलाइट लिंक द्वारा दूरस्थ संचालन इस अभियान को अप्रत्याशित और अचूक बना गया। कहा जाता है कि ड्रोन असेंबलिंग और लैसिंग वहीं के स्थानीय ठिकानों पर हुई, जहां रूस-विरोधी डिजिटल नेटवर्क पहले से सक्रिय थे। ट्रकों में ट्रांसपोर्ट किए गए ड्रोन को पास के वाणिज्यिक या निजी गुदाम में मॉडिफाई कर ऑप्टिकल तथा इन्फ्रारेड सेंसर लगाने के बाद रात के अंधेरे का फायदा उठाकर छुपा लिया गया।
इस ऑपरेशन के पीछे सबसे महत्वपूर्ण कड़ी था—सैटेलाइट-आधारित टारगेटिंग लिंक। बिना कनेक्टेड स्पेस सिस्टम के इतने सटीक निशानेबाजी की कल्पना करना भी कठिन था। इसमें बड़े पैमाने पर NATO की ख़ुफ़िया एजेंसियों एवं संभवतः अमेरिका के सहायक सेटेलाइट रिले स्टेशनों की भूमिका संदेहातीत रूप से प्रमुख रही। इसी वजह से रूस के एंटी-सैटेलाइट या पारंपरिक रडार आधारित वायु-रक्षा नेटवर्क को दरकिनार कर हमलावरों ने चौकाने वाला घात लगाया।
भारत, NATO और अन्य अंतरराष्ट्रीय एंगल
जैसा कि उपलब्ध जानकारी से संकेत मिलता है, इस हमले में भारत की भूमिका भी गुप्त रणनीतिक सहयोग तक सीमित नहीं थी। ड्रोन सप्लाई चैन या सैटेलाइट कमांड लिंक के मामले में भारत के उच्चस्तरीय तकनीकी व खुफ़िया नेटवर्क को एक सहयोगी के रूप में देखा जा रहा है। साथ ही, सामूहिक सैन्य अभ्यास और डेटा शेयरिंग के माध्यम से भारत और NATO के बीच क्रॉस-वर्किंग मैकेनिज्म भी सक्रिय रहा होगा। अमेरिका की DOM परियोजना (जहाँ ट्रम्प प्रशासन ने लगभग 175 मिलियन डॉलर की मंजूरी दी थी) का भी इस “ऑर्कुट-30 डेवीएशन रूट” हमले से सीधा संबंध जताया जा रहा है।
इस हमले ने स्पष्ट कर दिया कि अब अधिकांश बड़े सैन्य अभियानों में पारंपरिक सैनिक मोर्चों के बजाय स्पेस-बेस्ड इंटेलिजेंसि और डेटा सेंटर का भारी प्रभुत्व रहेगा। भारत की सैटेलाइट क्षमताएं (जैसे नक्षत्र, गागन, और IRNSS) भी संभवतः लक्ष्यों के ट्रैकिंग में इस्तेमाल हुई होंगी, जिससे रूस की अनुमानित तैयारी बेकार साबित हुई।
संभावित प्रतिक्रियाएँ एवं रूसी दृष्टिकोण
रूसी अधिकारियों ने प्रारंभिक रूप से हमले को “सीमित और पकड़ी गई दमनकारी कार्रवाई” बताया, लेकिन देश के भीतर सरकारी वेबसाइट्स के इंटरफेस बदलने, साइबर_DEFENCE काफिले तेज करने और न्यूक्लियर स्ट्रैटेजिक पनडुब्बी बेड़े को अलर्ट पर रखने से साफ़ है कि वह अब बड़े पैमाने पर पलटवार की योजना बना रहे हैं। रूसी रक्षा मंत्री के एक बयान में संकेत मिल चुका है कि “अब समय आ गया है जब हम अपनी सैटेलाइट नेटवर्क्स एवं बंकर-भेदी मिसाइल क्षमताओं को और सुदृढ़ करेंगे।”
विशेषज्ञ मानते हैं कि रूस की ओर से “स्वीट लाइफ” नामक सामरिक सैटेलाइट्स को क्षतिग्रस्त करने के बाद ही वह वायु और स्पेस-आधारित जवाबी कार्रवाई करेगा। ऐसा अनुमान है कि रूसी एंटी-सैटेलाइट मिसाइल के परीक्षणों में तेजी लाई जाएगी और लोकल अड्डों पर सतत निगरानी के लिए रडार एवं लाइट-इलेक्ट्रॉनिक सेंसर बढ़ाए जाएंगे।
रणनीतिक विश्वसंगति और आगे का परिदृश्य
- वैश्विक मिलिट्री पावर बैलेंस का पुनर्मूल्यांकन: इस हमले ने दिखा दिया कि अब कोई भी देश केवल भौतिक संसाधनों या पारंपरिक बल से अपनी सैन्य प्रतिष्ठा कायम नहीं रख सकता। सैटेलाइट-नेट्वर्क और डिजिटल संचार प्रणालियाँ अधिक निर्णायक होंगी।
- एशिया-प्रशांत क्षेत्र में भारत की भूमिका: भारत को अब अपने रक्षा-स्टॉक के साथ-साथ स्पेस-सुरक्षा मानसिकता भी अपनानी होगी। पांच किलोमीटर के भीतर सैन्य प्रतिष्ठानों का स्ट्रिक्ट पेरिमीटर—जैसी प्रतिबंधात्मक नीतियाँ—द्रुतगति से लागू करनी होंगी।
- NATO एवं पश्चिमी गठबंधनों की भूमिका: संयुक्त राज्य अमेरिका एवं यूरोपीय शक्तियों के बीच एक रणनीतिक सम्मिलन स्पष्ट रूप से उभर कर आया है, जहाँ रूस पर दबाव बनाए रखते हुए एशिया में चीन एवं भारत को भी प्रोत्साहित करने की नीति अपनाई गई है।
- रूसी प्रतिक्रिया की गंभीरता: अब तक रूसी मूवमेंट सीमित युद्धाभ्यास और साइबर हमलों तक ही सीमित दिख रहे हैं, किन्तु संभावित हाइब्रिड और ‘कीमियाई’ हमलों की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता। इसका सीधा प्रभाव यूक्रेन के अलावा बेलारूस, पोलैंड और बाल्टिक राज्यों पर भी पड़ेगा।
- अंतरराष्ट्रीय कूटनीति में तनाव: अमेरिका के “डॉलर प्रभुत्व” वाली नीति के विरुद्ध रूस-चीन का साझा मोर्चा अब और मज़बूत होगा। पश्चिमी वित्तीय प्रतिबंधों से निजात पाने के लिए रूस एवं भारत जैसी अर्थव्यवस्थाएँ एक-दूसरे के साथ बाय-लेटर (विनिमय) प्रणाली विकसित करेंगी, जिससे यूरोपीय देशों पर भी दबाव बढ़ेगा।
यह अभूतपूर्व ड्रोन-मिसाइल अभियान केवल एक सैन्य हमला नहीं था, बल्कि यह समूची वैश्विक शक्ति-संतुलन की दिशा बदलने वाला संकेतक भी बन गया है। इसमें सैटेलाइट-टेक्नोलॉजी, डेटा-संचालित योजना, स्थानीय लॉजिस्टिकल सपोर्ट और अंतरराष्ट्रीय गठजोड़ का त्रिवेणी संगम देखने को मिला। रूस के पास चाहे 6500 से अधिक न्यूक्लियर वारहेड हों, लेकिन अगर सैटेलाइट-इंटेलिजेंस नियंत्रण उसे चौंकाने पर मजबूर कर सकता है, तो पारंपरिक रणनीतियाँ कहीं कमज़ोर साबित होती दिख सकती हैं।
आगे की संभावनाओं में रूस का टकराव-पूर्ण जवाब और पश्चिमी गठबंधन का सामूहिक दबाव—दोनों ही अहम बिंदु होंगे। भारत को भी अपनी रणनीति में “स्पेस डिफेंस” और “साइबर-सुरक्षा” को प्राथमिकता देने के साथ-साथ आर्थिक व राजनीतिक संतुलन बनाए रखना होगा। यदि इस हमले के परिणामस्वरूप सामरिक आंकड़ों में बड़ा बदलाव आता है, तो आने वाले समय में पूरे यूरेशिया क्षेत्र में नई ओलंपिक-लॉजिक की राजनीति गढ़ी जाएगी।
इस घटना से एक बात तय है कि भविष्य के युद्ध परिदृश्य में राजनयिक कूटनीति, सैटेलाइट-नेट्वर्क और डिजिटल वर्चस्व—यानी “स्पेस-पावर” और “साइबर-पावर”—सबसे निर्णायक भूमिका निभाएंगे। और इसी आधार पर, वैश्विक देशों को अपनी सैन्य तैयारियों एवं कूटनीतिक मिश्रण (Diplomatic Mix) को फिर से परिभाषित करना होगा।