समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली 21 मई — सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को उस याचिका को खारिज कर दिया जिसमें एक न्यायाधीश के घर से कथित रूप से बड़ी मात्रा में नकदी मिलने के बाद उनके खिलाफ प्राथमिकी (FIR) दर्ज करने की मांग की गई थी। कोर्ट ने कहा कि जांच एजेंसियों को अपना कार्य स्वतंत्र रूप से करने दिया जाना चाहिए और हर मामले में अदालत से FIR की मांग करना उचित नहीं है।
याचिकाकर्ता की ओर से यह दावा किया गया था कि संबंधित न्यायाधीश के आवास से करोड़ों रुपये नकद बरामद किए गए हैं, जो प्रथम दृष्टया भ्रष्टाचार और अवैध लेनदेन की ओर इशारा करता है। याचिका में मांग की गई थी कि मामले में निष्पक्ष और स्वतंत्र जांच सुनिश्चित करने के लिए सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर FIR दर्ज की जाए।
हालांकि, मुख्य न्यायाधीश की अगुवाई वाली पीठ ने इस याचिका को सुनवाई योग्य नहीं माना और कहा, “हम किसी भी संस्थान को अविश्वास की नजर से नहीं देख सकते, विशेष रूप से जब तक पुख्ता सबूत सामने न आ जाएं। यदि कोई कानून उल्लंघन हुआ है तो सक्षम जांच एजेंसियां स्वतः संज्ञान लेकर कार्रवाई कर सकती हैं।”
कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि ऐसे मामलों में जांच एजेंसियों पर भरोसा करना आवश्यक है और न्यायपालिका को हर बार हस्तक्षेप करने की आवश्यकता नहीं है। “FIR दर्ज करवाना एक कानूनी प्रक्रिया है, जिसे कानून के दायरे में रहकर ही पूरा किया जाना चाहिए,” अदालत ने कहा।
इस मामले ने सोशल मीडिया और राजनीतिक गलियारों में काफी हलचल मचाई थी, जहां कई नेताओं और कार्यकर्ताओं ने न्यायपालिका की पारदर्शिता और जवाबदेही पर सवाल उठाए थे। हालांकि सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद यह स्पष्ट हो गया है कि किसी भी संवैधानिक पद पर बैठे व्यक्ति के खिलाफ कार्रवाई, केवल मीडिया या सार्वजनिक दबाव के आधार पर नहीं की जा सकती।
सुप्रीम कोर्ट ने एक बार फिर यह संदेश दिया है कि कानून सभी के लिए समान है, लेकिन कानून के पालन में भी प्रक्रिया का पालन करना आवश्यक है। बिना पर्याप्त साक्ष्य के किसी भी संवैधानिक पदाधिकारी के खिलाफ सीधे कार्रवाई की मांग करना न्यायिक प्रणाली के मूल सिद्धांतों के खिलाफ है।