”पाकिस्तान में महँगाई की मार: जनता बेहाल”

मंशा थी, तो दोषी सिद्ध

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समग्र समाचार सेवा
इस्लामाबाद, 4 मई, 2025: आर्थिक संकट से जूझते पाकिस्तान में महंगाई ने आम जनजीवन को त्रस्त कर दिया है। आवश्यक वस्तुओं की कीमतें इस कदर बढ़ गई हैं कि सामान्य जीवन यापन भी चुनौती बन गया है। दूध 230 रुपये प्रति लीटर और मटन 2000 रुपये प्रति किलो बिक रहा है, जिससे मध्यम और निम्नवर्गीय परिवारों के लिए दो वक्त की रोटी जुटाना भी दूभर हो गया है।

ताज़ा आँकड़ों के अनुसार, आलू 120 रुपये, प्याज 105 रुपये, टमाटर 120 रुपये प्रति किलो बिक रहे हैं, जबकि एक अंडा 40 रुपये का हो चुका है। चिकन की कीमत 700 से 1100 रुपये प्रति किलो के बीच है। चावल की दर 200 से 450 रुपये और सेब 150 से 400 रुपये प्रति किलो तक पहुँच गई है। सरसों का तेल 532 रुपये लीटर और गेहूं का आटा 1736.5 रुपये प्रति 20 किलो के बोरे में मिल रहा है।

पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था गहरे संकट में फंसी हुई है। विदेशी मुद्रा भंडार 2022 के 23.9 बिलियन डॉलर से घटकर 11.4 बिलियन डॉलर रह गया है। मुद्रास्फीति दर 2023 में 38 प्रतिशत के उच्चतम स्तर पर पहुँच गई थी, जो अब 17.3 प्रतिशत है, परंतु खाद्य मुद्रास्फीति अभी भी गंभीर चिंता का विषय बनी हुई है।

बिजली सब्सिडी समाप्त करने जैसे कठोर कदमों ने स्थिति को और जटिल बना दिया है। महंगाई की मार से गरीबी रेखा के नीचे रहने वालों की संख्या में 40 लाख की वृद्धि हुई है। वहीं, आमजन राशन के लिए संघर्ष कर रहा है, जबकि समृद्ध वर्ग महँगी कॉफी के लिए पंक्तियों में खड़ा दिखाई देता है। यह विषमता पाकिस्तान की सामाजिक-आर्थिक संरचना की असमानता को उजागर करती है।

पाकिस्तान की सरकार ने हमेशा आतंकवाद को बढ़ावा देने में अपनी भूमिका निभाई है, जबकि उसके आम नागरिक आर्थिक संकट और महंगाई से जूझ रहे हैं। पाकिस्तान की जंगली नीतियाँ और आतंकी समूहों को समर्थन देने की प्रवृत्ति ने न केवल अपने देश में अस्थिरता उत्पन्न की, बल्कि पूरे क्षेत्र को भी खतरे में डाल दिया। जहाँ पाकिस्तानी जनता रोटी और रोज़गार के लिए संघर्ष कर रही है, वही पाकिस्तान सरकार ने आतंकवादी संगठनों को वित्तीय और भौतिक सहायता प्रदान करना प्राथमिकता समझा है।

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