मोदी सरकार का बड़ा धमाका! जाति जनगणना पर मुहर, कैबिनेट बैठक में लिया गया ऐतिहासिक फैसला — देश की सियासत में मचा भूचाल
नई दिल्ली: देश की राजनीति में सुनामी लाने वाला फैसला अब आधिकारिक हो चुका है! मोदी सरकार ने आखिरकार जाति आधारित जनगणना कराने का ऐलान कर दिया है। मंगलवार को हुई केंद्रीय कैबिनेट की अहम बैठक में इस प्रस्ताव को हरित झंडी दे दी गई, जिससे सियासी गलियारों में बवाल मच गया है और एक बार फिर सामाजिक समीकरणों की चूलें हिलती नजर आ रही हैं।
यह फैसला सिर्फ एक जनगणना नहीं, बल्कि राजनीति, सामाजिक न्याय और सत्ता संतुलन की नई इबारत लिखने वाला कदम माना जा रहा है।
जाति जनगणना की मांग पिछले कई दशकों से उठती रही है, लेकिन किसी भी सरकार ने इस मुद्दे को हाथ लगाने की हिम्मत नहीं की थी। माना जाता रहा है कि जातिगत आंकड़े सामने आने से राजनीतिक दलों की वोट बैंक राजनीति पर सीधा असर पड़ेगा।
लेकिन अब मोदी सरकार ने इस मांग को स्वीकार कर एक साहसिक और चौंकाने वाला कदम उठाया है। सरकार के प्रवक्ता ने बताया कि यह फैसला समाज में न्याय और समावेशन को सुनिश्चित करने के उद्देश्य से लिया गया है।
इस फैसले के बाद सभी राजनीतिक दलों में हड़कंप मच गया है। जहां विपक्षी पार्टियां इसे अपनी जीत बता रही हैं, वहीं कई दलों को अपना जातीय गणित बिगड़ता नजर आ रहा है।
राष्ट्रीय स्तर पर ओबीसी और दलित संगठनों ने इस फैसले का जोरदार स्वागत किया है। कई नेताओं ने इसे “नया सामाजिक युग” की शुरुआत बताया है।
कांग्रेस नेता ने कहा:
“जो बात हम बरसों से कह रहे थे, अब मोदी सरकार को आखिरकार उसे मानना पड़ा। ये हमारी वैचारिक जीत है।”
वहीं भाजपा ने पलटवार करते हुए कहा:
“यह फैसला किसी दबाव में नहीं, बल्कि समाज के सभी वर्गों को उनका हक देने की दिशा में लिया गया है।”
जातिगत जनगणना से सरकार के पास हर वर्ग, उपवर्ग और जाति का वास्तविक डेटा होगा। इससे आरक्षण, योजनाओं, संसाधनों के वितरण और सामाजिक न्याय को नए सिरे से परिभाषित किया जा सकेगा।
विशेषज्ञों का मानना है कि यह डेटा आगे चलकर राजनीतिक दलों की रणनीति, उम्मीदवार चयन और नीतियों के निर्धारण में क्रांतिकारी परिवर्तन ला सकता है।
जाति जनगणना की घोषणा ने भारत की राजनीति को हिला कर रख दिया है। यह फैसला न केवल समाज में समानता की दिशा में बड़ा कदम है, बल्कि सत्ताधारी पार्टी के लिए भी एक जोखिमभरा लेकिन दूरदर्शी दांव माना जा रहा है।
अब सवाल ये है — क्या यह फैसला वास्तव में समाज को न्याय दिलाएगा या फिर एक नया जातीय ध्रुवीकरण खड़ा करेगा?