मॉस्को में छाया सन्नाटा! PM मोदी ने अचानक रद्द किया रूस दौरा, विजय दिवस समारोह से बनाई दूरी — कूटनीतिक हलकों में हलचल तेज
नई दिल्ली/मॉस्को: भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रूस के बहुप्रतीक्षित दौरे को अचानक रद्द कर सबको चौंका दिया है। 9 मई को मॉस्को में होने वाले विजय दिवस समारोह में उनकी उपस्थिति की उम्मीद थी, लेकिन अब यह तय हो चुका है कि PM मोदी इस बार रूस नहीं जाएंगे। इस अप्रत्याशित फैसले से दुनियाभर की राजनयिक गलियों में खलबली मच गई है, और अटकलों का बाजार गर्म हो गया है।
PM मोदी का रूस दौरा पहले से तय था और माना जा रहा था कि वह रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से मुलाकात करेंगे और द्विपक्षीय संबंधों को नई दिशा देंगे। लेकिन अब, अचानक दौरे को रद्द करने के फैसले ने कई राजनयिक संकेतों को जन्म दे दिया है।
क्या यह कदम रूस-यूक्रेन युद्ध को लेकर भारत के बदले रुख का संकेत है? या फिर यह वैश्विक दबाव का असर है, जो भारत को एक नई रणनीतिक धुरी की ओर खींच रहा है?
विजय दिवस रूस का सबसे अहम राष्ट्रीय पर्व माना जाता है, जो द्वितीय विश्व युद्ध में नाज़ी जर्मनी पर मिली जीत के उपलक्ष्य में मनाया जाता है। इस समारोह में भाग लेना न केवल प्रतीकात्मक होता है, बल्कि रूस के साथ घनिष्ठ संबंधों की सार्वजनिक मुहर मानी जाती है।
ऐसे में मोदी का इसमें शामिल न होना, यह इशारा कर सकता है कि भारत वर्तमान भू-राजनीतिक समीकरणों में संतुलन साधने की कोशिश कर रहा है — विशेष रूप से अमेरिका और यूरोपीय देशों के साथ अपने रिश्तों को देखते हुए।
इस फैसले के तुरंत बाद रूसी मीडिया और अंतरराष्ट्रीय विश्लेषकों में हलचल मच गई। कई विशेषज्ञ इसे भारत द्वारा “मजबूत संदेश” देने की कोशिश बता रहे हैं, जबकि कुछ इसे कूटनीतिक दूरी की शुरुआत मान रहे हैं।
एक रूसी राजनयिक ने नाम न छापने की शर्त पर कहा:
“हम उम्मीद कर रहे थे कि भारत इस कठिन समय में रूस के साथ खड़ा रहेगा, लेकिन यह फैसला कुछ और ही कहानी बयां करता है।”
इस बीच, भारत में विपक्षी दलों ने भी इस मुद्दे को लपक लिया है। कांग्रेस प्रवक्ता ने बयान जारी कर कहा,
“PM मोदी को यह स्पष्ट करना चाहिए कि आखिर रूस जैसे पारंपरिक मित्र को अचानक किन परिस्थितियों में नजरअंदाज किया गया। क्या भारत अब अमेरिका की कठपुतली बनता जा रहा है?”
PM मोदी का रूस दौरा रद्द करना सिर्फ एक यात्रा स्थगन नहीं, बल्कि कूटनीति की बिसात पर रखी गई एक चाल है, जिसका असर आने वाले महीनों में वैश्विक स्तर पर देखा जा सकता है।
अब सवाल यह है — क्या भारत रूस से दूर हो रहा है? या फिर यह एक मजबूरन लिया गया फैसला है जो आने वाले समय में नई रणनीतिक तस्वीर पेश करेगा?