समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली,29 अप्रैल। तेलंगाना की नौकरशाही में भूचाल आ गया है। एक साधारण सी दिखने वाली सोशल मीडिया गतिविधि ने राज्य की सबसे चमकदार और चर्चित IAS अधिकारियों में से एक, स्मिता सभरवाल को उनके पद से हटा दिया है।
जी हां, एक रीपोस्ट — और एक तेजस्वी करियर पर अचानक लगा ब्रेक।
बताया जा रहा है कि वरिष्ठ अधिकारी स्मिता सभरवाल ने ‘X’ पर एक राजनीतिक रूप से संवेदनशील पोस्ट को रीपोस्ट कर दिया था, जो मौजूदा सरकार की नीतियों पर अप्रत्यक्ष तौर पर सवाल उठाती थी। भले ही यह रीपोस्ट कुछ ही मिनटों के बाद डिलीट कर दिया गया, लेकिन सोशल मीडिया की आग एक बार भड़क गई थी।
तेलंगाना सरकार ने इस घटना को गंभीरता से लेते हुए त्वरित कार्रवाई की और स्मिता सभरवाल को उनके मौजूदा पद से हटाने का आदेश जारी कर दिया। अब सवाल उठ रहे हैं — क्या यह सिर्फ एक ‘गलती’ थी, या सत्ता के गलियारों में कुछ गहरी नाराजगी पल रही थी?
स्मिता सभरवाल को जनता के बीच “पीपल्स ऑफिसर” के नाम से जाना जाता है। उनकी कार्यशैली, जनसरोकारों से जुड़ाव और सोशल मीडिया पर सक्रियता ने उन्हें एक अलग पहचान दिलाई थी। लेकिन इस बार वही सोशल मीडिया उनके लिए मुसीबत बन गया।
यह भी गौर करने वाली बात है कि स्मिता का प्रशासनिक रिकॉर्ड बेदाग रहा है। विभिन्न जिलों में बतौर कलेक्टर रहते हुए उन्होंने कई अभिनव पहल की थीं और जनता के बीच गहरी पैठ बनाई थी।
तो क्या एक रीपोस्ट के आधार पर इतनी बड़ी सजा जायज़ है?
अंदरूनी सूत्रों की मानें तो मामला सिर्फ एक रीपोस्ट तक सीमित नहीं है। कुछ नेताओं को पहले से ही उनकी स्वतंत्र छवि और लोकप्रियता से असहजता थी। इस रीपोस्ट को बहाना बनाकर उन्हें साइडलाइन करने का मौका मिल गया।
यह घटना यह भी दिखाती है कि आज के दौर में सोशल मीडिया पर एक क्लिक की कीमत कितनी भारी हो सकती है — खासकर जब आप सत्ता के इतने करीब हों।
स्मिता सभरवाल के समर्थन में सोशल मीडिया पर एक लहर उठ गई है। कई नागरिक, पत्रकार और पूर्व अधिकारी सवाल कर रहे हैं:
“क्या एक ईमानदार अधिकारी को सिर्फ इसलिए सजा मिलनी चाहिए कि उसने एक असहज सच्चाई को उजागर कर दिया?”
#StandWithSmita ट्रेंड कर रहा है, और आम जनता में गहरा आक्रोश दिखाई दे रहा है।
अब सवाल यह है कि स्मिता सभरवाल के लिए आगे का रास्ता क्या होगा। क्या वह इस कार्रवाई को चुनौती देंगी? या फिर नौकरशाही की चुप्पी की परंपरा का पालन करेंगी?
जो भी हो, यह घटना तेलंगाना की नौकरशाही में डर और असंतोष की एक नई लहर जरूर छोड़ गई है।
एक रीपोस्ट ने जो तूफान खड़ा किया है, वह केवल एक अधिकारी की नहीं, बल्कि पूरे सिस्टम की संवेदनशीलता पर सवाल खड़ा करता है। क्या अब अभिव्यक्ति की आज़ादी भी नौकरशाही के लिए एक ‘लक्ज़री’ बन गई है?