यूनेस्को द्वारा गीता और नाट्यशास्त्र को वैश्विक मान्यता मिलने पर प्रधानमंत्री मोदी ने किया गर्व का इज़हार

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समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली,18 अप्रैल।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शुक्रवार को भगवद गीता और नाट्यशास्त्र को यूनेस्को की “मेमोरी ऑफ द वर्ल्ड रजिस्टर” में शामिल किए जाने पर प्रसन्नता व्यक्त की। उन्होंने इसे हर भारतीय के लिए गर्व का क्षण बताया और कहा कि यह भारत की सभ्यतागत विरासत की वैश्विक स्वीकृति है।

प्रधानमंत्री मोदी ने केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत की सोशल मीडिया पोस्ट का जवाब देते हुए एक्स (पूर्व ट्विटर) पर लिखा:

“दुनियाभर के हर भारतीय के लिए यह एक गर्व का क्षण है!
गीता और नाट्यशास्त्र का यूनेस्को की मेमोरी ऑफ द वर्ल्ड रजिस्टर में शामिल होना हमारी सनातन ज्ञान परंपरा और समृद्ध संस्कृति की वैश्विक मान्यता है।
गीता और नाट्यशास्त्र ने सदियों से सभ्यता और चेतना को पोषित किया है। आज भी इनकी शिक्षाएं दुनिया को प्रेरित करती हैं।
@UNESCO”

यूनेस्को की यह पहल उन ऐतिहासिक और सांस्कृतिक दस्तावेजों को संरक्षित करने के लिए की जाती है, जिनका वैश्विक महत्व हो। इसका उद्देश्य विश्व की स्मृति को संरक्षित करना और आने वाली पीढ़ियों को सांस्कृतिक, आध्यात्मिक और बौद्धिक धरोहरों से जोड़ना है।

भगवद गीता, जो महाभारत का एक हिस्सा है, केवल धार्मिक ग्रंथ नहीं बल्कि जीवन के गूढ़ दर्शन और नैतिकता की शिक्षा देने वाला ग्रंथ है। यह कर्म, धर्म और आत्मा की खोज को लेकर पूरी दुनिया में गहराई से पढ़ा और समझा जाता है।

वहीं नाट्यशास्त्र, जो कि भरतमुनि द्वारा रचित प्राचीन ग्रंथ है, केवल रंगमंच और नृत्य की तकनीकों का दस्तावेज नहीं बल्कि भारतीय कलात्मक अभिव्यक्तियों की आत्मा है। इस ग्रंथ ने नाट्य, नृत्य, संगीत और मंच कला की वैश्विक धारा को गहराई से प्रभावित किया है।

इस ऐतिहासिक मान्यता के पीछे वर्षों से चल रहे प्रयासों का योगदान है। भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद (ICCR), इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र (IGNCA) और अन्य संस्थाओं ने इन ग्रंथों को वैश्विक मंच पर प्रस्तुत करने के लिए महत्वपूर्ण कार्य किया है।

गीता और नाट्यशास्त्र को यूनेस्को द्वारा दी गई यह मान्यता न केवल भारत के लिए सम्मान की बात है, बल्कि यह हमारी सांस्कृतिक जड़ों की उस समृद्धि का प्रतीक है, जो आज भी विश्व में मार्गदर्शक की भूमिका निभा रही है।

यह निर्णय न केवल भारतवासियों के लिए गर्व का विषय है, बल्कि यह आने वाली पीढ़ियों को अपनी संस्कृति और परंपराओं से जोड़ने की प्रेरणा भी देगा।

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