भारत में हिन्दुओं के खिलाफ बढ़ती हिंसा: क्या हम गृहयुद्ध की ओर बढ़ रहे हैं? राष्ट्रपति शासन की मांग क्यों अब ज़रूरी हो गई है!
समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली,16 अप्रैल। पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद, मालदा और धूलियान से आ रही खबरें सिर्फ ‘हिंसा’ नहीं, एक सुनियोजित नरसंहार की तरफ इशारा करती हैं। हिन्दुओं के घर जलाए जा रहे हैं, दुकानों को आग लगाई जा रही है, महिलाओं के साथ दुराचार हो रहा है और बच्चों तक को नहीं बख्शा जा रहा। सवाल यह नहीं है कि यह हिंसा क्यों हो रही है, सवाल यह है कि कब तक हम चुप रहेंगे?
वक्फ बोर्ड या कोई और बहाना?
जिस ‘वक्फ कानून’ का विरोध दिखाकर हालिया हिंसा की शुरुआत की गई, वह तो केवल एक ढाल है। सच्चाई यह है कि यह हमले किसी कानून के विरोध में नहीं, बल्कि हिन्दू समुदाय को डराने, दबाने और भगाने की एक सुनियोजित योजना का हिस्सा हैं।
वक्फ कानून पर बहस हो सकती है, अदालती प्रक्रिया हो सकती है, लोकतांत्रिक विरोध हो सकता है—पर हिन्दुओं की हत्या, घरों को जलाना, और धार्मिक सफाया? ये तो बांग्लादेश की तर्ज पर हुआ सुनियोजित जिहाद है, जिसमें हर शुक्रवार को हमला करना अब एक नीयत बन चुका है।
इतिहास खुद को दोहरा रहा है — मोपला से लेकर डायरेक्ट एक्शन डे तक
यह पहली बार नहीं है। 1921 में केरल के मोपला विद्रोह में हजारों हिन्दुओं की हत्या और महिलाओं के साथ बलात्कार हुआ। उन्हें इस्लाम कबूल करने के लिए मजबूर किया गया, जो नहीं माने उन्हें तलवार से काट दिया गया।
फिर आया Direct Action Day (16 अगस्त 1946), जिसे मुस्लिम लीग के नेता मोहम्मद अली जिन्ना ने ‘मांगों को मनवाने’ के लिए बुलाया था। पर हकीकत में वह दिन बन गया कोलकाता का ‘काला दिन’। सैकड़ों हिन्दू परिवारों को काट डाला गया, महिलाओं को ज़िंदा जला दिया गया, और हजारों को विस्थापित कर दिया गया।
और आज? मुर्शिदाबाद में वही स्क्रिप्ट दोहराई जा रही है।
सवाल जो उठने चाहिए, लेकिन उठाए नहीं जाते
जब सम्पूर्ण भारत भूमि एक समय सनातन संस्कृति की थी, तो कैसे एकाएक मुस्लिम जनसंख्या इस तरह बढ़ गई?
क्या यह सिर्फ जनसंख्या वृद्धि है या किसी बड़े घुसपैठ और जिहादी विस्तारवाद का परिणाम?
बांग्लादेश से आए अवैध घुसपैठियों को राजनीतिक संरक्षण क्यों दिया जा रहा है?
क्यों हर बार जब कोई मुस्लिम संगठन नाराज़ होता है, तो हिंसा, हत्या और दंगे ही एकमात्र विकल्प बन जाते हैं?
इतिहास बताता है कि भारत में रहने वाले मुसलमानों के अधिकांश पूर्वज हिन्दू ही थे। यह एक अटल सत्य है। लेकिन अब एक ऐसा वर्ग खड़ा हो चुका है जो हिन्दू संस्कृति को मिटाने के एजेंडे पर काम कर रहा है, और यह सिर्फ सोशल मीडिया की बातें नहीं, जमीन पर खून के धब्बे इसकी गवाही दे रहे हैं।
बंगाल में हिन्दुओं का पलायन — अपने ही देश में ‘शरणार्थी’
धूलियान से लेकर शमशेरगंज तक, हिन्दू गंगा नदी पार कर मालदा में शरण ले रहे हैं। कोई कल्पना कर सकता है कि 2025 में भी हिन्दू अपने ही देश में पलायन कर रहा है? और बंगाल सरकार क्या कर रही है? BSF पर ही आरोप मढ़ रही है, जो जान की बाजी लगाकर हालात को संभालने की कोशिश कर रही है।
यह अब सिर्फ दंगे नहीं — यह नरसंहार है
मुस्लिम संगठनों द्वारा हिंसा का यह सिलसिला अब एकतरफा नरसंहार बन चुका है। इसकी पुष्टि सिर्फ बंगाल नहीं, कर्नाटक, केरल, उत्तर प्रदेश, बिहार तक की घटनाओं से होती है, जहाँ हर बार हिन्दू ही निशाना बनाया जाता है।
मुस्लिम संगठनों का यह रवैया न तो इस्लाम के अनुसार है, और न ही भारत के संविधान के। फिर भी यह फैला हुआ ज़हर बढ़ता ही जा रहा है, क्योंकि राजनीतिक संरक्षण, वोटबैंक की राजनीति और सेक्युलर चुप्पी इसे खाद-पानी दे रही है।
अब समय आ गया है: राष्ट्रपति शासन लगे
जब राज्य सरकारें अपने संवैधानिक कर्तव्यों का निर्वहन नहीं करतीं, जब वो जनता की सुरक्षा करने की जगह आतंकियों के साथ खड़ी नजर आती हैं, तब एक ही रास्ता बचता है—राष्ट्रपति शासन।
पश्चिम बंगाल में हालात सामान्य प्रशासन के काबू से बाहर हैं। दंगों का जवाब गोली से नहीं, वोट से देंगे जैसी बयानबाज़ी कर रही सरकार खुद हिंसा को बढ़ावा दे रही है।
एक राष्ट्र, एक समाधान
भारत को फिर से एक राष्ट्र के रूप में उठ खड़ा होना होगा। यह लड़ाई हिन्दू-मुस्लिम की नहीं है—यह लड़ाई है भारत के अस्तित्व की, सनातन संस्कृति की, और सामूहिक सुरक्षा की।
अब समय है सख्त कदम उठाने का। अब समय है राष्ट्रपति शासन लागू करने का।
अब समय है — भारत को बचाने का।
यह लेख पीड़ितों की प्रत्यक्ष गवाही, इतिहास के संदर्भों और वर्तमान घटनाओं के आधार पर तैयार किया गया है। भारत को अब चुनना होगा—संविधान या कट्टरवाद।