महावीर जयंती 2025: अहिंसा और तपस्या के प्रतीक भगवान महावीर की जयंती पर देशभर में श्रद्धा का माहौल

कृपया इस पोस्ट को साझा करें!

समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली,10 अप्रैल।
महावीर जयंती 2025 के अवसर पर 10 अप्रैल को देशभर में श्रद्धा और भक्ति का माहौल रहेगा। जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर और इसके प्रमुख प्रचारक भगवान महावीर का यह जन्मोत्सव हर साल चैत्र शुक्ल त्रयोदशी को मनाया जाता है। यह दिन जैन समुदाय के लिए न केवल एक धार्मिक अवसर होता है, बल्कि शांति, करुणा और अहिंसा जैसे मानवीय मूल्यों की पुनःस्थापना का भी प्रतीक बन चुका है।

भगवान महावीर का जन्म आज से लगभग ढाई हजार वर्ष पहले बिहार के कुंडलग्राम (वर्तमान कुंडलपुर) में हुआ था। इतिहासकार और धार्मिक मान्यताएँ उनके जन्म वर्ष को लेकर भले ही अलग हों—श्वेतांबर परंपरा के अनुसार 599 ईसा पूर्व और दिगंबर परंपरा के अनुसार 615 ईसा पूर्व—लेकिन दोनों समुदायों के लिए उनका जीवन एक आदर्श और प्रकाशपुंज बना हुआ है।

महावीर के बचपन का नाम वर्धमान था। उनके पिता राजा सिद्धार्थ और माता रानी त्रिशला वैशाली राज्य के प्रमुख शासक वर्ग से थे। मान्यता है कि रानी त्रिशला ने वर्धमान के जन्म से पूर्व 14 विशेष स्वप्न देखे थे, जिनकी ज्योतिषियों ने यह भविष्यवाणी करते हुए व्याख्या की थी कि यह बालक या तो एक महान सम्राट बनेगा या फिर एक महान ऋषि।

तीस वर्ष की आयु में वर्धमान ने सांसारिक जीवन का त्याग कर सत्य की खोज में वनवास और कठोर तपस्या का मार्ग चुना। उन्होंने बारह वर्षों तक कठिन तप किया, और इस दौरान अहिंसा, अपरिग्रह, ब्रह्मचर्य, सत्य और अचौर्य जैसे सिद्धांतों का पालन करते हुए आत्म-ज्ञान की दिशा में बढ़ते गए। उनकी तपस्या और संयम के कारण ही उन्हें ‘महावीर’ की उपाधि प्राप्त हुई।

महावीर जयंती के दिन जैन मंदिरों में विशेष कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। भगवान महावीर की मूर्ति को रथ पर विराजमान कर भव्य रथ यात्रा निकाली जाती है। मंदिरों को रंग-बिरंगे झंडों और फूलों से सजाया जाता है, और धार्मिक प्रवचनों का आयोजन होता है। जैन भिक्षु और साध्वी इस दिन महावीर के उपदेशों का पाठ करते हैं, जिससे समाज में शांति, सहिष्णुता और करुणा के संदेश का प्रसार होता है।

महावीर की शिक्षाएँ आज भी उतनी ही प्रासंगिक हैं जितनी उनके जीवनकाल में थीं। उन्होंने न केवल हिंसा का विरोध किया, बल्कि जीवन के हर क्षेत्र में संयम और नैतिकता को प्राथमिकता दी। उनका यह सिद्धांत कि “अहिंसा परमो धर्मः” आज के समय में वैश्विक शांति और सौहार्द का मार्गदर्शन करता है।

महावीर जयंती का पर्व एक सामाजिक और आध्यात्मिक चेतना का उत्सव बन चुका है, जिसमें जैन समुदाय के लोग बड़े पैमाने पर धर्मार्थ कार्य करते हैं—जरूरतमंदों को भोजन, वस्त्र और दान देते हैं, साथ ही पशु हिंसा के खिलाफ जन-जागरूकता फैलाते हैं।

इस वर्ष 2025 में महावीर जयंती एक बार फिर से सभी को यह याद दिलाने का अवसर है कि आंतरिक शांति और आत्म-ज्ञान का मार्ग केवल संयम, अहिंसा और सत्य के मार्ग पर चलकर ही संभव है। भगवान महावीर की शिक्षाएँ न केवल जैन धर्मावलंबियों के लिए, बल्कि पूरी मानवता के लिए एक अमूल्य धरोहर हैं।

कृपया इस पोस्ट को साझा करें!
Leave A Reply

Your email address will not be published.