आरएसएस 100: अनुशासन, राष्ट्रीय जागरण और सांस्कृतिक पुनर्जागरण की एक सदी

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समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली,16 मार्च।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) अपनी स्थापना के सौ वर्षों के सफर में अनुशासन, राष्ट्रभक्ति और सांस्कृतिक पुनर्जागरण का प्रतीक बन चुका है। 1925 में विजयदशमी के दिन डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार द्वारा नागपुर में स्थापित यह संगठन आज भारत की सामाजिक और राजनीतिक संरचना में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है।

आरएसएस की सबसे बड़ी विशेषता इसका अनुशासन और संगठन क्षमता है। शाखाओं के माध्यम से संघ ने लाखों स्वयंसेवकों को देशसेवा की भावना से जोड़ा। नित्य शाखाओं में योग, शारीरिक व्यायाम, बौद्धिक चर्चा और सांस्कृतिक गतिविधियों के जरिए चरित्र निर्माण पर जोर दिया गया। इस अनुशासन ने संघ को हर संकट की घड़ी में राष्ट्र के प्रति समर्पित रहने की ताकत दी।

आरएसएस ने देश की एकता और अखंडता को मजबूत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। स्वतंत्रता संग्राम के दौरान संघ ने राष्ट्रवादी भावना को बढ़ावा दिया और बाद में विभिन्न सामाजिक आंदोलनों में सक्रिय रहा। 1947 के विभाजन के दौरान राहत कार्यों से लेकर 1975 में आपातकाल के खिलाफ संघर्ष तक, संघ ने हर मोर्चे पर राष्ट्रवाद को जीवंत बनाए रखा।

संघ का एक महत्वपूर्ण उद्देश्य भारतीय संस्कृति, परंपराओं और मूल्यों को पुनर्जीवित करना रहा है। देश में हिंदू समाज को संगठित करना, गौरवशाली इतिहास को पुनर्स्थापित करना और स्वदेशी विचारों को बढ़ावा देना संघ के प्रमुख लक्ष्यों में से रहा है। संघ से प्रेरित संगठनों ने शिक्षा, साहित्य, कला और धर्म के क्षेत्र में सांस्कृतिक चेतना को पुनः स्थापित करने में उल्लेखनीय कार्य किया है।

आरएसएस केवल एक विचारधारा नहीं, बल्कि सेवा का एक संगठित आंदोलन भी है। प्राकृतिक आपदाओं में राहत कार्यों से लेकर ग्रामीण विकास, स्वास्थ्य और शिक्षा तक संघ की पहल ने समाज के विभिन्न वर्गों को सशक्त किया है। सेवा भारती, विद्या भारती और अन्य संगठनों के माध्यम से संघ ने लाखों लोगों के जीवन में सकारात्मक परिवर्तन लाए हैं।

आज जब आरएसएस अपने 100 वर्षों की यात्रा पूरी करने के करीब है, तब यह न केवल एक सांस्कृतिक संगठन बल्कि एक विचारधारा के रूप में भारतीय राजनीति और समाज को प्रभावित कर रहा है। इसकी प्रेरणा से अनेक संगठन उभर कर आए हैं, जिन्होंने राष्ट्रवाद और स्वाभिमान की भावना को बल दिया है।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने बीते सौ वर्षों में अनुशासन, राष्ट्रीय जागरण और सांस्कृतिक पुनर्जागरण के सिद्धांतों को अपनाते हुए राष्ट्रनिर्माण में अपना योगदान दिया है। भारत की आत्मा को जीवंत रखने और समाज को संगठित करने की इसकी भूमिका आने वाले वर्षों में और भी अधिक महत्वपूर्ण होने वाली है। संघ की यात्रा यह सिद्ध करती है कि संगठित समाज ही सशक्त राष्ट्र की नींव रख सकता है।

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