कोरोना स्ट्रेन काल-राजस्थान में शिक्षण संस्थानो को खोलने का फ़ैसला कितना सही ?

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*मनीषा सिंह

राजस्थान में  नव वर्ष के शुरूवाती दौर में कोरोना मरीज़ों का ग्राफ लगातार घटता दिखने लगा था,जो राहत का विषय था,परन्तु कोरोना के नए स्ट्रेन ने राज्य में कई प्रकार की नयी चिंताएं खड़ी कर दी है .स्थिति में अभी तक अपेक्षाकृत संतोषजनक सुधार भी नहीं दिख रहा है .

 

कोरोना के नये स्ट्रेन के बावजूद 5 जनवरी की सरकारी बैठक के दौरान राज्य सरकार का एक नया फ़ैसला आया है,जो चौकाने वाला हैं . नया स्ट्रेन चिंता भी चिंता का बड़ा मसला है.उसको हम नकार नहीं सकते.उस नए स्ट्रेन के बावजूद  मुख्यमंत्री ने विशेष सतर्कता के साथ 18 जनवरी से स्कूल ,कॉलेज ,कोचिंग सेंटर और 11 जनवरी से पैरामेडीकल कॉलेज , नर्सिंग कॉलेज ,खोलने का फ़ैसला कर लिया है .जिसके बारे में अंतिम फैसला कोविड-19 की समीक्षा बैठक में लिया गया  हैं .

 

मुख्यमंत्री अशोक गहलोत  का कहना है कि राजस्थान में बेहतरीन प्रबंधन व प्रदेशवासियों के सहयोग से कोरोना की स्थिति काफ़ी नियंत्रण में है, इसलिए इस दावे के तहत स्थिति को पहले से बेहतर होने के आंकड़े गिनाकर शिक्षण संस्थाओं को खोलने के लिए हरी झंडी मिल गई है| शिक्षकों को संक्रमण के रोकथाम के लिए स्वास्थ्य विभाग द्वारा परीक्षण का प्रावधान भी रखा गया है.आदेश दिए गए हैं कि सभी हेल्थ प्रोटोकॉल का ध्यान रखा जाए वही वैक्सीनेशन से जुड़ी तैयारियों के बारे में भी सभी को अवगत कराया जाना है ।

 

वैस तो सबको पता हैं कि कोरोना महामारी के बीच राजस्थान में पिछले दिनों से सामान्य होता जनजीवन इस तरफ़ इशारा कर रहा है. लोगों ने अब कोरोना महामारी को अपने जीवन का हिस्सा बनाकर आगे बढ़ने का फ़ैसला कर लिया है ।जिस प्रकार कोरोना महामारी के समय कोरोनर वारियर्स के रूप में आगे आएँ डॉक्टर्स ,मीडिया, पुलिस, सफ़ाई कर्मचारी, सरकारी संगठनों साथ साथ सामाजिक संस्थाओं ने जो अपनी भूमिका अदा की.वे सब तारीफ़ के क़ाबिल है.

 

मुख्यमंत्री के तमाम मनभावन कई दावों एक बीच पिछले एक साल में राज्य में शिक्षा के प्रति कोई बंदोबस्त न हो पाना, शिक्षा के प्रति सरकारी स्कूलों के आठ लाख बच्चों के लिए कोई भी ऑनलाइन बंदोबस्त नहीं किया जाना,सबकी नज़रों में अखरता रहा हैं .अभिभावक गणों में उदासीनता देखी गयी हैं.बच्चे भी हतोत्साहित देखे गए हैं . उन बच्चों के लिए मुख्यमंत्री ने तो अपने स्तर पर कई मनमोहक घोषणाएं की थी ,पर शिक्षा मंत्री कुछ नहीं कर पाए.सरकारी मशीनरी करीब अरीब ठप्प सा ही रहा.

 

जो कोरोना काल के लॉकडाउन में पढ़ना – लिखना – सीखना चाहते थे ,लाखों सरकारी शिक्षकों के होते हुए भी.वो कुछ नहीं कर सके .इसे मेरे विचार से देश व अपने राज्य के लिए बड़ा नुक्सान माना जाना चाहिए.देश के भविष्य का नुकसान.हम सबका नुकसान.पर मुख्यमंत्री व उनके सिपहसालरों पर कोई असर नहीं दिख रहा.वो तो बस अपनी स्वार्थपरक राजनीति के खेल में व्यस्त दिखे.राजस्थान जैसे गौरवशाली प्रदेश के लिए ये एक अजीब विडम्बना कही जा सकती है.

 

देश जहाँ एक तरफ़ जहाँ नई शिक्षा नीति के लागू करने के लिए तैयार है ,वही प्रदेश में इस बारे में किसी भी प्रकार की कोई चर्चा सुनने को नहीं मिल रही है .अगर ऐसी ही  ढिलाई रही तो अगले पाँच सालों में भी इसे प्रायोगिक स्तर पर स्थापित पाने के कम आसार हैं |

अब देखना है कि बच्चों के लिए किया गया यह राजस्थान सरकार का फ़ैसला कितना सही साबित होता है ,अब ये सब तो आगे आने वाले दिनों में ही पता चलेगा| हम तो सबके लिए यही मंगलकामनाएं   कर सकते हैं कि आने वाला साल सभी के लिए शुभ हो

*मनीषा सिंह,जयपुर.

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