समग्र समाचार सेवा
कोलकत्ता, 28दिसंबर।
जहां एक तरफ पश्चिम बंगाल में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव की तैयारी जोरों पर है वहीं अब ममता सरकार की मुश्किलें बढ़ती हुई जनजर आ रही है। जी हां शारदा चिटफंड घोटाले में सीबीआई ने सुप्रीम कोर्ट में एक अवमानना याचिका दायर की है। इसमें सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री राहत कोष से तारा टीवी के कर्मचारियों को नियमित रूप से 23 महीने तक भुगतान किया गया। तारा टीवी शारदा समूह के हिस्से के रूप में जांच के दायरे में था।
सीबीआई ने कहा कि सीएम राहत कोष से नियमित रूप से राशि का भुगतान किया गया – प्रति माह 27 लाख रुपये – मई 2013 से अप्रैल 2015 के बीच. आवेदन में कहा गया कि ये राशि कथित तौर पर मीडिया कंपनी के कर्मचारियों के वेतन भुगतान के लिए दी गई, जो जांच के तहत शारदा ग्रुप ऑफ कंपनीज का हिस्सा थी। पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री राहत कोष से तारा टीवी कर्मचारी कल्याण संघ को कुल 6.21 करोड़ रुपये का भुगतान किया गया।
याचिका में कहा गया, “अदालत के आदेश में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि कर्मचारियों को कंपनी के फंड से भुगतान किया जाना है. सीएम रिलीफ फंड से भुगतान एक बड़ी साजिश और सांठगांठ की ओर इशारा करती है.” घोटाले में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी पर शक की सुई की ओर इशारा करते हुए, सीबीआई ने कहा, “सीबीआई और राज्य प्राधिकरणों के बीच हुए पत्राचार से पता चलेगा कि कानून की प्रक्रिया से बचने के लिए एक ठोस प्रयास किया गया।”
सीबीआई ने 2013 में पूर्व राज्यसभा सांसद कुणाल कुमार घोष से पूछताछ का हवाला देते हुए कहा कि मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और शारदा समूह के प्रमोटर- सुदीप्त सेन के दो नंबरों के कॉल डिटेल रिकॉर्ड से पता चलता है कि उनके बीच एक नंबर पर 298 बार और दूसरे नंबर पर 9 बार बातचीत हुई थी।
पूर्व कोलकाता कमिश्नर राजीव कुमार से हिरासत में पूछताछ की मांग करते हुए सीबीआई ने कहा कि जांच से यह भी पता चला है कि पश्चिम बंगाल के सत्तारूढ़ त्रिणमूल और शारदा समूह के साथ मिलकर बिधाननगर पुलिस ने राजीव कुमार के कहने पर सबूत छुपाए।
प्रवर्तन निदेशालय द्वारा गवाह के रूप में घोष से पूछताछ अक्टूबर 2013 में हुई थी, जिसमें पता चला कि राजीव कुमार गिरफ्तार अभियुक्तों, सुदीप्त सेन, देबयानी मुखर्जी और अन्य गवाहों की पूछताछ के दौरान ईडी अधिकारियों के संपर्क में थे. ये पूछताछ सितंबर से नवंबर 2013 के दौरान हुई थी. “अधिकारियों द्वारा यह सुनिश्चित किया गया था कि इन आरोपी व्यक्तियों या गवाहों द्वारा दिए गए सबूत रिकॉर्ड में नहीं लिए जाने चाहिए, क्योंकि जांच का एक हिस्सा प्रभावशाली व्यक्तियों को बचाने के उद्देश्य से था.”
सीबीआई ने कहा कि मामले में काफी सारे सबूत उभर कर सामने आए हैं, जिसके बाद पुलिस के तत्कालीन कमिश्नर की भूमिका की पुष्टि हुई है, जो प्रभावशाली सह-अभियुक्तों को बचाने में सफल रहे. इन्होंने पोंजी कंपनियों की अवैध व्यावसायिक गतिविधियों को बढ़ावा दिया और इससे लाभान्वित हुए।