सुनील अग्रवाल
भागलपुर, बिहार।
पंडित जवाहरलाल नेहरू के गलत नीतियों की देन है पाकिस्तान। खुद के स्वार्थ सिद्धि के लिए नेहरू ने पाकिस्तान बनवा दिया। इसके लिए लाखों हिन्दुओं और मुस्लिमों का कत्लेआम किया गया,तब कहीं जाकर पाकिस्तान बना। हालांकि राष्ट्रपिता महात्मा गांधी कभी नहीं चाहते थे कि भारत का विभाजन हो, मगर उनकी एक नहीं चली। आज आलम यह है कि मुल्लाओं ने पूरे पाकिस्तान को आतंकवादियों का शरणस्थली बना दिया है। सऊदी अरब जैसे मुस्लिम देश भी पाकिस्तान की कारगुज़ारियों से नफ़रत करने लगे हैं। अरेबियन कंट्री के टुकड़ों पर पलने वाले पाकिस्तानी मुल्लाओं ने उन्हें भी आंखें दिखाने से बाज नहीं आते। स्थिति यह है कि लोग दाने दाने तक को मोहताज हो गये हैं।वहां से बढ़िया हालात भारत में मुसलमानों का है, जहां लोगों को अभिव्यक्ति की आजादी मिली हुई है, तभी तो देश में यह नारा गुंजता है कि इंशा अल्ला भारत तेरे टुकड़े होंगे। नेहरू की ही देन है कि भारत का एक बड़ा भू-भाग आज चीन के कब्जे में चला गया। नेहरू का मुस्लिम तुष्टिकरण जगजाहिर है। इतिहास गवाह है कि नेहरू भारत के सर्वमान्य प्रधानमंत्री नहीं थे बल्कि जबरन थोपें गये। सर्वमान्य प्रधानमंत्री तो सरदार वल्लभ भाई पटेल थे, मगर साजिशतन उन्हें प्रधानमंत्री पद से अलग होना पड़ा और एक अय्याश प्रवृत्ति के व्यक्ति को देश का प्रधानमंत्री बना दिया गया और वे स्वयंभू बच्चों के चाचा बन गये, जबकि उन्हें प्रधानमंत्री बनाने के एवज में मोहन दास करमचंद गांधी को देश का पिता बना दिया गया। कश्मीर में लाखों हिन्दुओं का कत्लेआम किया गया और माताओं बहनों की अस्मतें लूटी गई,तब कहां सोया पड़ा था देश का छद्म धर्मनिरपेक्षता। नेहरू के कारिस्तानी के कारण ही कश्मीर भारत का अभिन्न अंग होने के बावजूद दोयम दर्जे के कानून का राज चलता रहा और हिन्दुस्तान के सीने पर पाकिस्तानी झंडा फहराया जाता रहा है अब जबकि 60-65 बरसों बाद किसी शेर दिल प्रधानमंत्री ने कश्मीर पर थोपा गया काला कानून धारा 370और 35ए समाप्त कर कश्मीर से कन्याकुमारी तक एक भारत नेक भारत की आवाजें बुलंद की तो देश के मुठ्ठी भर गद्दारों को नागवार गुजरने लगा और उनके सीने पर सांपे लोटने लगी।
देश की आजादी के लिए बनाई गई कांग्रेस पार्टी की उपयोगिता उसी वक्त समाप्त हो गई जब देश अंग्रेजों की गिरफ्त से मुक्त हो गया। महात्मा गांधी ने भी कहा था कि अब कांग्रेस पार्टी को भंग कर देना चाहिए, मगर नेहरू ने ऐसा नहीं होने दिया। कारण साफ है कि इसके पीछे नेहरू की मानसिकता यह रहीं होगी कि उनकी पुश्तें बरसों तक देश पर शासन करता रहे। यही कारण है कि कांग्रेस आज तक एक ही परिवार की जागीर बनी रही है। अब तो कांग्रेस की कमान विदेश में जन्म लेने वाली महिला एंटोनियो माइनों उर्फ सोनिया गांधी की गिरफ्त में है जिससे इतनी आसानी से मुक्ति संभव नहीं जान पड़ती। अगर खुदा न खास्ते वो हट भी गई तो पार्टी के अध्यक्ष पद पर पहला जन्मसिद्ध अधिकार उनके पुत्र राहुल गांधी या पुत्री प्रियंका गांधी वाड्रा का बनता है। अगर किसी ने इसका विरोध किया तो वो हासिये पर खड़ा कर दिए जाएंगे।जैसा की विरोध का स्वर बोलने वाले गुलाम नबी आजाद,कपिल सिब्बल आदि का हुआ है।
मुझे वो दिन याद आता है जब जनमत से बनी अटल बिहारी वाजपेई की सरकार को छल प्रपंच कर कांग्रेस ने महज अंकों के गणित में उलझाकर गिरा दिया और जोड़ तोड़ की राजनीति को हवा देकर खुद की सरकार बना ली थी।तब अटल जी ने साफ लहजे में कहा था कि भले ही आज मेरी सत्ता गिरा दी गई हो मगर एक दिन ऐसा आएगा जब देश में कश्मीर से कन्याकुमारी तक चारों दिशाओं में कमल ही कमल खिलेगा।अटल जी का वह सपना आज साकार होता दिख रहा है। दक्षिण में भी भगवा शान से लहराने लगा है। जबकि कांग्रेस आज हासिये पर चली गई है। आज आलम यह है कि पूरी की पूरी कांग्रेस पार्टी एक ही परिवार के चार कांधे पर सवार होकर रह गई है।अपनी खोई जनाधार वापस पाने के लिए कांग्रेस हर किसी से हाथ मिलाने को तैयार हैं। सत्ता की छटपटाहट में कांग्रेस को देश विरोधी ताकतों से भी गुरेज नहीं।तभी तो कहा जाता है कि हर देश विरोधी ताकतों के साथ कांग्रेस का हाथ। पिछले छह वर्षों से कांग्रेस अपनी हार पचा नहीं पा रही है।