धूल से जुड़े कुछ रोचक तथ्य….

कृपया इस पोस्ट को साझा करें!

क्या आप जानते हैं कि आपके शरीर के प्रत्येक वर्ग सेंटीमीटर हिस्से से हर घण्टे लगभग 1000 स्किन सेल्स झडती हैं। अब एक एडल्ट व्यक्ति के शरीर का एवरेज सरफेस एरिया अगर 2 वर्ग मीटर माना जाए तो इसका अर्थ यह है कि हर घण्टे लगभग 2 करोड़ कोशिकाएं आपके शरीर का साथ छोड़ कर वातावरण में विलीन हो जाती हैं, एक साल में यह आंकड़ा 180 अरब के पार हो जाता है। अर्थात, हर साल, आपके शरीर से मुक्त होने वाली बेजान कोशिकाओं की संख्या मिल्की वे आकाशगंगा में मौजूद सितारों की कुल संख्या से भी कहीं अधिक है। अपने घर के रोशनदान से आती प्रकाश की लहर पर लहराते तंतुओं से युक्त धूल को देखिए। इस धूल का आधे से ज्यादा हिस्सा आपके शरीर की कोशिकाओं से आया है।

इन्ही बेजान कोशिकाओं को खा कर डस्ट माइट नामक सूक्ष्मजीवी पलते हैं, जिनका आकार एक चींटी से भी 10 गुना छोटा होता है। इन्हें नंगी आंखों से देख पाना भले ही आपके लिए संभव न हो पर आपके बेडशीट पर इस समय एक करोड़ से ज्यादा डस्ट माइट मौजूद हैं, जो आपके या आपके पालतू जीवों के शरीर से झड़ने वाली कोशिकाओं पर जीवित रहते हैं, प्रजनन करते हैं, कभी-कभी आपको खुजली या एलर्जी प्रदान करते हैं और खुशी-खुशी आपके बेडशीट या आपके घर की धूल को ही अपना समूचा ब्रह्मांड समझ जीवित रहते हैं।

आपके घर की धूल में आपके और आपके पालतू जानवरों के शरीर की बेजान कोशिकाएं, डैंड्रफ तो होते ही हैं। इसके अतिरिक्त इस धूल में उद्योगों से रिलीज होने वाला सीमेंट पाउडर, चट्टानों के घिसने से उत्पन्न हुई मिट्टी, रेत, ज्वालामुखियों से निकली हुई राख, कोयले के अवशेष समेत वस्त्रों के रेशे इत्यादि भी पाए जाते हैं। फिंगरप्रिंट की ही तरह हम सबके घर की धूल में एक यूनिक पैटर्न पाया जाता है। भविष्य में उम्मीद है कि घटनास्थल की धूल मात्र का विश्लेषण कर फोरेंसिक एक्सपर्ट्स बहुत से अनसुलझे केसेस की गुत्थियां सुलझा सकेंगे। है न कमाल की बात? बहरहाल, उससे भी ज्यादा कमाल की बात यह है कि इस सिर्फ इस लोक की ही नहीं, बल्कि पृथ्वी से परे मौजूद लोकों के अवशेष भी इस धूल में शामिल हैं।

हमारे सूर्य से कहीं अधिक भारी एक सितारा अपने जीवनकाल के अंत में अपने केंद्र में भारी तत्वों – ऑक्सीजन, कार्बन से लेकर लोहे तक – का निर्माण करता है। सूर्य की आयु खत्म होने पर वह एक सुपरनोवा बन जाता है और एक प्रचंड विस्फोट के साथ उसकी कोर में बने ये आर्गेनिक तत्व ब्रह्मांड में दूर-दूर तक छितर जाते हैं और धूल के बादल बन कर अंतरिक्ष में परवाज करते रहते हैं। मिल्की वे आकाशगंगा के केंद्र का चक्कर लगाती पृथ्वी अक्सर इन बादलों के बीच से होकर गुजरती है और इन बादलों में मौजूद दुर्लभ तत्व पृथ्वी के वातावरण में प्रवेश करते रहते हैं।

हो सकता है कि शायद पृथ्वी के शुरुआती दिनों में जीवन निर्माण के लिए आवश्यक ऑर्गेनिक तत्व ऐसे ही किसी धूल के बादल से पृथ्वी पर पहुंचे हों। और उन तत्वों ने पृथ्वी पर जीवन की प्रक्रिया को आरंभ किया हो। आज भी हर साल 40000 टन ऐसी धूल पृथ्वी के वातावरण में प्रवेश करती रहती है। अधिकतम 10 वर्षों में ये धूल सेटल होकर पृथ्वी के कोरियोलिस इफ़ेक्ट के कारण वातावरण में अच्छे से घुलमिल जाती है और अक्सर इस सोलर धूल का एक ठीक-ठाक हिस्सा आपके घर में प्रवेश कर आपके घर की धूल का हिस्सा बन जाता है।

अपने घर की धूल को हथेली से उठाइए और इस धूल को ध्यान से देखिए…..
इस धूल में पृथ्वीलोक भी है, और द्युलोक भी…
इसमें दैनिक जीवन का भी अंश है, और सार्वजनिक जीवन का भी…
इसी धूल में जीवन भी है, और जैविक मृतांश भी…
सूक्ष्म से लेकर विराट ब्रह्मांड तक के अवशेष इस धूल के रूप में आपकी मुट्ठी में कैद हैं।

धूल से प्रारंभ हुआ जीवन एक दिन धूल में ही मिल जाएगा।

कृपया इस पोस्ट को साझा करें!
Leave A Reply

Your email address will not be published.