पूनम शर्मा
भारत की अर्थव्यवस्था एक ऐसे दौर से गुजर रही है जहाँ केवल विकास दर के आँकड़े पर्याप्त नहीं हैं, बल्कि विकास की दिशा, संरचना और आत्मनिर्भरता पर गंभीर मंथन की आवश्यकता है। इसी संदर्भ में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा देश के प्रमुख अर्थशास्त्रियों और नीति-विशेषज्ञों के साथ की गई हालिया बैठक केवल एक औपचारिक संवाद नहीं थी, बल्कि भारत के आर्थिक भविष्य की रूपरेखा गढ़ने की एक महत्वपूर्ण कड़ी साबित हुई।
यह संवाद ऐसे समय पर हुआ है जब वैश्विक अर्थव्यवस्था अनिश्चितता, भू-राजनीतिक तनाव, आपूर्ति श्रृंखला में बदलाव और तकनीकी संक्रमण के दौर से गुजर रही है। प्रधानमंत्री मोदी ने इस बैठक में न केवल विशेषज्ञों की राय सुनी, बल्कि भारत को आत्मनिर्भर (Aatmanirbhar) बनाने के लक्ष्य को लेकर सरकार की सोच और रणनीति को भी स्पष्ट किया।
आत्मनिर्भरता: नारा नहीं, रणनीति
प्रधानमंत्री मोदी ने बैठक में स्पष्ट किया कि आत्मनिर्भर भारत का अर्थ दुनिया से कट जाना नहीं है, बल्कि वैश्विक प्रतिस्पर्धा में अपनी शर्तों पर खड़ा होना है। उन्होंने कहा कि भारत को आयात-निर्भरता से बाहर निकालकर एक मजबूत उत्पादन-आधारित अर्थव्यवस्था बनाना समय की मांग है।
अर्थशास्त्रियों के साथ चर्चा में यह बात उभरकर सामने आई कि बीते एक दशक में भारत ने बुनियादी ढांचे, डिजिटल सार्वजनिक ढांचे (Digital Public Infrastructure) और विनिर्माण क्षेत्र में जो आधार तैयार किया है, वही आत्मनिर्भरता की असली नींव है। मेक इन इंडिया, पीएलआई (PLI) योजनाएँ और स्टार्टअप इकोसिस्टम को लेकर किए गए सुधारों ने भारत को केवल उपभोक्ता बाजार नहीं, बल्कि निर्माता राष्ट्र के रूप में स्थापित करने की दिशा दी है।
संरचनात्मक परिवर्तन पर जोर
इस बैठक का एक अहम पहलू था—Structural Transformation यानी अर्थव्यवस्था की संरचना में बुनियादी बदलाव। प्रधानमंत्री मोदी ने इस बात पर जोर दिया कि भारत को कृषि-आधारित निर्भरता से आगे बढ़ते हुए उद्योग, सेवाओं और उभरती तकनीकों में संतुलित विकास करना होगा।
विशेषज्ञों ने इस बात पर सहमति जताई कि भारत की जनसंख्या संरचना (Demographic Dividend) तभी लाभकारी होगी, जब युवाओं को कौशल, रोजगार और उद्यमिता के अवसर मिलें। इस संदर्भ में स्किल इंडिया, नई शिक्षा नीति और तकनीकी प्रशिक्षण कार्यक्रमों की भूमिका को रेखांकित किया गया।
MSME और स्टार्टअप्स: विकास की रीढ़
बैठक में सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्योगों (MSME) को भारत की आर्थिक रीढ़ बताते हुए इनके लिए वित्तीय पहुँच, तकनीकी उन्नयन और बाजार विस्तार पर चर्चा हुई। प्रधानमंत्री ने कहा कि आत्मनिर्भर भारत की सफलता छोटे उद्यमियों और स्टार्टअप्स की सफलता से जुड़ी है।
विशेषज्ञों ने यह भी माना कि डिजिटल भुगतान, जीएसटी सुधार और औपचारिक अर्थव्यवस्था के विस्तार ने MSME सेक्टर को नई पहचान दी है। अब आवश्यकता है कि इन इकाइयों को वैश्विक मूल्य श्रृंखला (Global Value Chain) से जोड़ा जाए।
वैश्विक अनिश्चितता में भारत की स्थिरता
प्रधानमंत्री मोदी ने बैठक में यह भी कहा कि जब दुनिया आर्थिक अस्थिरता से जूझ रही है, तब भारत एक स्थिर, भरोसेमंद और सुधारोन्मुख अर्थव्यवस्था के रूप में उभरा है। विदेशी निवेशकों का भरोसा, मजबूत बैंकिंग प्रणाली और नियंत्रित मुद्रास्फीति भारत की आर्थिक मजबूती का संकेत है।
अर्थशास्त्रियों ने इस बात को स्वीकार किया कि भारत की नीति निरंतरता (Policy Continuity) और दीर्घकालिक दृष्टिकोण उसे अन्य उभरती अर्थव्यवस्थाओं से अलग बनाता है।
भविष्य की राह: संवाद से समाधान
यह बैठक इस बात का संकेत है कि सरकार केवल निर्णय थोपने के बजाय संवाद के माध्यम से नीति निर्माण में विश्वास रखती है। प्रधानमंत्री मोदी ने विशेषज्ञों से खुले मन से सुझाव आमंत्रित किए और कहा कि भारत को 2047 तक विकसित राष्ट्र बनाने का लक्ष्य तभी साकार होगा, जब नीतियाँ ज़मीनी हकीकत से जुड़ी हों। अंततः यह संवाद केवल अर्थशास्त्रियों और प्रधानमंत्री के बीच की बैठक नहीं थी, बल्कि भारत की आर्थिक आत्मा को दिशा देने वाला मंथन था—जहाँ आत्मनिर्भरता, संरचनात्मक सुधार और समावेशी विकास एक साथ आगे बढ़ने की बात कही गई।
भारत की विकास यात्रा अब केवल तेज़ चलने की नहीं, बल्कि सही दिशा में टिकाऊ कदम रखने की यात्रा बन चुकी है।