पूनम शर्मा
चीन के खिलाफ नया ‘अदृश्य मोर्चा’: अल-कायदा, ईटीआईपी और वैश्विक शक्ति संतुलन का खतरनाक खेल
दुनिया अक्सर युद्ध को टैंकों, मिसाइलों और सैनिकों की संख्या से आंकती है। लेकिन इक्कीसवीं सदी का सबसे खतरनाक युद्ध वह है, जो बिना औपचारिक घोषणा के, अंदर से किसी देश को खोखला करने के लिए लड़ा जाता है। आज चीन ठीक ऐसे ही एक अदृश्य युद्ध के मुहाने पर खड़ा दिखाई देता है।
हाल के महीनों में अल-कायदा से जुड़ी गतिविधियों और बयानों ने एक नया और चौंकाने वाला संकेत दिया है—अब चीन भी सीधे तौर पर वैश्विक जिहादी नेटवर्क के रडार पर है। सवाल उठता है: आखिर ऐसा क्या बदल गया कि जिन आतंकी संगठनों ने वर्षों तक चीन को लगभग नजरअंदाज किया, वे अब उसे खुली चेतावनी देने लगे हैं?
ईटीआईपी: चीन की सबसे संवेदनशील नस
इस पूरी कहानी की जड़ शिनजियांग प्रांत में है, जहां ईस्ट तुर्किस्तान इस्लामिक पार्टी (ETIP) लंबे समय से सक्रिय रही है। उइगर मुद्दे को लेकर चीन का सख्त रुख अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहले ही विवादों में रहा है। लेकिन अब यही मुद्दा आतंकवादी नेटवर्क के लिए एक रणनीतिक हथियार बनता जा रहा है।
सीरिया में ईटीआईपी के हजारों लड़ाकों की मौजूदगी कोई नई बात नहीं है। 2017 से 2022 के बीच इसके कई वीडियो सामने आए, जिनमें ये लड़ाके न केवल संगठित दिखे बल्कि आधुनिक ड्रोन, स्नाइपर और युद्ध रणनीतियों में भी प्रशिक्षित नजर आए। यह प्रशिक्षण स्थानीय नहीं था—इसके पीछे अंतरराष्ट्रीय नेटवर्क और प्रॉक्सी सपोर्ट साफ झलकता है।
अल-कायदा का बदला हुआ रुख
अल-कायदा की खास बात हमेशा यही रही है कि वह अलग-अलग क्षेत्रों में अलग रणनीति अपनाता है। अफ्रीका में उसका एजेंडा अलग है, अरब प्रायद्वीप में अलग और सीरिया में अलग। लेकिन चीन के मामले में अब उसकी विभिन्न शाखाओं के सुर एक-जैसे सुनाई देने लगे हैं।
अरब पेनिनसुला की शाखा हो या इस्लामिक मघरेब—अचानक चीन को “दमनकारी शक्ति” और “वैध लक्ष्य” के रूप में पेश किया जाने लगा है। यह बदलाव यूं ही नहीं आया। यह उस बड़े भू-राजनीतिक खेल का हिस्सा है, जिसमें सीधे युद्ध की जगह आंतरिक अस्थिरता को हथियार बनाया जाता है।
पाकिस्तान: असहज सहयोगी या रणनीतिक समस्या?
चीन-पाकिस्तान संबंधों की मजबूती किसी से छिपी नहीं है, लेकिन हालिया घटनाओं ने इस रिश्ते में तनाव के संकेत दिए हैं। कराची, ग्वादर और दासू जैसे इलाकों में चीनी नागरिकों और परियोजनाओं पर हुए हमलों ने बीजिंग को साफ संदेश दे दिया है कि “आयरन ब्रदरहुड” के बावजूद जमीन पर हालात काबू में नहीं हैं।
ETIP की जड़ें पाकिस्तान में पनपना, फिर अफगानिस्तान और सीरिया तक फैलना—यह सब आईएसआई की भूमिका पर सवाल खड़े करता है। यही वजह है कि पहली बार चीन ने सार्वजनिक तौर पर पाकिस्तान से सख्त सुरक्षा गारंटी की मांग की। यह बीजिंग के लिए असामान्य लेकिन मजबूरी भरा कदम था।
रेड सी से लेकर मध्य एशिया तक खतरे की चेन
चीन के लिए खतरा सिर्फ शिनजियांग तक सीमित नहीं है। रेड सी में हूती गतिविधियां, अफ्रीका में अल-कायदा के हमले, और मध्य एशिया में आईएसआईएस की बढ़ती मौजूदगी—ये सब चीन की सप्लाई चेन और बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) को घेरने की रणनीति का हिस्सा लगते हैं।
रूस में हालिया आतंकी हमलों ने यह भी दिखा दिया कि जब कोई देश पारंपरिक युद्ध में उलझता है, तो उसकी आंतरिक सुरक्षा एजेंसियां दबाव में आ जाती हैं। यही मॉडल चीन के लिए भी तैयार किया जा रहा है—ताइवान तनाव के साथ-साथ आंतरिक आतंकवादी दबाव।
क्या भारत सिर्फ दर्शक रहेगा?
इस पूरे परिदृश्य में भारत की भूमिका बेहद संवेदनशील है। शिनजियांग, म्यांमार, बांग्लादेश और नॉर्थ-ईस्ट भारत—ये सभी इलाके एक ही रणनीतिक चाप में आते हैं। रोहिंग्या मूवमेंट, ड्रग ट्रैफिकिंग और आतंकी नेटवर्क का ओवरलैप भारत के लिए भी चेतावनी है।
हालांकि भारत की स्थिति चीन से अलग है—लोकतांत्रिक ढांचा, मजबूत आंतरिक खुफिया नेटवर्क और आतंकी संगठनों के खिलाफ लंबा अनुभव—फिर भी यह मानना भोलेपन होगा कि यह आग भारत तक नहीं पहुंचेगी।
निष्कर्ष: बिना गोलियों की जंग
आज दुनिया एक ऐसे दौर में प्रवेश कर चुकी है जहाँ युद्ध की शुरुआत बम से नहीं, बल्कि भ्रम, अस्थिरता और प्रॉक्सी नेटवर्क से होती है। चीन के खिलाफ अल-कायदा और ईटीआईपी का सक्रिय होना इसी रणनीति का हिस्सा है।
यह सिर्फ चीन की समस्या नहीं है। यह उस वैश्विक व्यवस्था की परीक्षा है, जहां आर्थिक ताकत, रणनीतिक गलियारे और आंतरिक स्थिरता—तीनों को एक साथ निशाना बनाया जा रहा है। आने वाले वर्षों में यह साफ होगा कि कौन इस अदृश्य युद्ध को समझ पाया और कौन सिर्फ पारंपरिक सोच में उलझा रह गया।
दुनिया की सबसे बड़ी सीख शायद यही है—असली युद्ध अक्सर तब शुरू होता है, जब हमें लगता है कि अभी शांति है।