पूनम शर्मा
दिल्ली इस समय केवल राजधानी नहीं, बल्कि भारत की आंतरिक सुरक्षा का सबसे संवेदनशील केंद्र बन चुकी है। हाल के दिनों में दिल्ली पुलिस द्वारा चलाया जा रहा ‘ऑपरेशन आकार’ इसी बदले हुए सुरक्षा परिदृश्य की ओर इशारा करता है। 600 से अधिक गिरफ्तारियां—वह भी एक साथ—सिर्फ रूटीन पुलिसिंग नहीं मानी जा सकतीं। सवाल उठता है कि क्या यह केवल अपराध नियंत्रण है, या इसके पीछे किसी बड़े खतरे की आशंका छिपी है?
प्रिवेंटिव एक्शन या इंटेलिजेंस-ड्रिवन ऑपरेशन?
सुरक्षा एजेंसियों की कार्यप्रणाली को समझने वाले जानते हैं कि इतनी बड़ी संख्या में गिरफ्तारियां बिना ठोस इनपुट के नहीं होतीं। यह कल्पना करना भोलेपन के बराबर होगा कि एजेंसियां केवल फोन टैप कर या दो-चार संदिग्धों की बातचीत सुनकर 3000 किलोमीटर तक फैले नेटवर्क, विस्फोटक सामग्री, मॉड्यूल और लॉजिस्टिक्स को ट्रैक कर लेती हैं।
हकीकत यह है कि ऐसे ऑपरेशन लगातार सर्विलांस, ह्यूमन इंटेलिजेंस (HUMINT), डिजिटल ट्रेल और ग्राउंड-लेवल इनपुट के संयोजन से चलते हैं। दिल्ली में पहले भी अल-कायदा और आईएसआईएस मॉड्यूल के खुलासे हो चुके हैं। संभव है कि उन्हीं गिरफ्तारियों से मिले सुरागों के आधार पर यह मौजूदा कार्रवाई आगे बढ़ाई जा रही हो।
बाहरी मोर्चे पर तनाव, अंदरूनी मजबूती अनिवार्य
भारत इस समय दोनों सीमाओं—पश्चिम और पूर्व—पर दबाव झेल रहा है। पाकिस्तान तो पारंपरिक खतरा है ही, लेकिन बांग्लादेश की दिशा से उकसावे की गतिविधियों, बयानबाज़ी और संदिग्ध नेटवर्क की चर्चा भी सुरक्षा विमर्श में शामिल हो चुकी है।
अमेरिका और वैश्विक शक्तियों की रणनीति भी किसी से छिपी नहीं है—भारत को किसी न किसी तरह क्षेत्रीय संघर्ष में उलझाए रखना। ऐसे में यदि भारत सीमाओं पर सक्रिय होता है, तो वह आंतरिक अस्थिरता का जोखिम नहीं उठा सकता। यही कारण है कि इंटरनल सिक्योरिटी को पहले ‘सैनिटाइज’ करना रणनीतिक मजबूरी बन जाती है।
राजधानी की संवेदनशीलता और एयर डिफेंस
दिल्ली केवल प्रशासनिक राजधानी नहीं, बल्कि राजनीतिक, सैन्य और कूटनीतिक केंद्र है। हाल के समय में ‘आकाश तीर’ जैसे एयर डिफेंस सिस्टम की तैनाती इस बात का संकेत है कि खतरे की परिभाषा केवल जमीन तक सीमित नहीं रही।
ड्रोन, मिसाइल, या हाइब्रिड वारफेयर—आज के युद्ध पारंपरिक नहीं होते। यदि किसी भी स्तर पर हवाई या आतंरिक हमला होता है, तो उसका मनोवैज्ञानिक असर पूरे देश पर पड़ता है। इसलिए राजधानी को “हिट-प्रूफ” बनाना किसी भी जिम्मेदार सरकार की प्राथमिकता होती है।
राजनीति, अपराध और भय का समीकरण
दिल्ली में लंबे समय तक एक ऐसी स्थिति बनी रही जहाँ अपराधियों में कानून का भय कम और राजनीतिक संरक्षण का भरोसा अधिक था। आरोप यह भी रहे कि गिरफ्तारियां तो होती थीं, लेकिन मजबूत कानूनी कार्रवाई नहीं हो पाती थी। ‘ऑपरेशन आकार’ इस मानसिकता को तोड़ने की कोशिश के रूप में भी देखा जा रहा है।
जब 600 लोगों को एक साथ हिरासत में लिया जाता है, तो यह संदेश जाता है कि राज्य अब केवल प्रतिक्रिया नहीं दे रहा, बल्कि प्री-एम्प्टिव स्ट्राइक कर रहा है—चाहे वह संगठित अपराध हो, अवैध घुसपैठ हो या संभावित स्लीपर सेल।
अवैध बस्तियां, घुसपैठ और सुरक्षा जोखिम
एक संवेदनशील लेकिन अनदेखा किया गया पहलू है—अवैध बस्तियों और अनियंत्रित जनसंख्या प्रवाह का सुरक्षा से संबंध। दिल्ली, मुंबई या अन्य महानगरों में स्लम क्लस्टर्स केवल सामाजिक-आर्थिक मुद्दा नहीं, बल्कि सुरक्षा चुनौती भी बनते जा रहे हैं।
लगातार नए लोगों का बिना सत्यापन बसना, सरकारी जमीनों पर कब्ज़ा, और स्थानीय प्रशासन की कमजोरी—ये सभी मिलकर ऐसे ‘ग्रे ज़ोन’ बनाते हैं, जहाँ अपराधी और कट्टरपंथी नेटवर्क छिप सकते हैं।
मनोवैज्ञानिक युद्ध और सांस्कृतिक मोर्चा
सिर्फ बंदूक और बम ही युद्ध के हथियार नहीं होते। सिनेमा, सोशल मीडिया और नैरेटिव बिल्डिंग भी आज के युद्ध का हिस्सा हैं। जनता को डराना, भ्रमित करना या राज्य संस्थाओं के प्रति अविश्वास पैदा करना—ये सभी रणनीतियाँ हाइब्रिड वारफेयर का हिस्सा हैं।
यदि कभी भी सॉफ्ट टार्गेट्स—जैसे सिनेमा हॉल, भीड़भाड़ वाले इलाके—को निशाना बनाया जाता है, तो उसका उद्देश्य सैन्य नहीं, बल्कि मनोवैज्ञानिक होता है। यही कारण है कि सुरक्षा एजेंसियों की सतर्कता केवल सीमाओं तक सीमित नहीं रह सकती।
निष्कर्ष: खतरे वास्तविक हैं, तैयारी आवश्यक
‘ऑपरेशन आघात ’ को केवल राजनीतिक चश्मे से देखना एक गंभीर भूल होगी। चाहे सभी 600 गिरफ्तारियां किसी एक बड़े षड्यंत्र से जुड़ी हों या नहीं—यह साफ है कि राज्य किसी संभावित खतरे को हल्के में नहीं ले रहा।
इतिहास गवाह है कि भारत पर हमले अक्सर “अचानक” नहीं होते—उनके संकेत पहले मिलते हैं। फर्क सिर्फ इतना है कि कभी उन्हें नज़रअंदाज़ किया गया, और कभी समय रहते कार्रवाई हुई।आज जो हो रहा है, वह उसी समय रहते की गई कार्रवाई का संकेत देता है। खतरे बहुत हैं, लेकिन सतर्कता ही सुरक्षा की पहली शर्त है।