पूनम शर्मा
पाकिस्तान आज एक ऐसे मोड़ पर खड़ा है जहाँ सरहदें केवल भूगोल नहीं, बल्कि हताशा और उम्मीद के बीच की लकीर बन गई हैं। हालिया सरकारी आंकड़े एक भयावह तस्वीर पेश कर रहे हैं: पिछले 24 महीनों में पाकिस्तान ने अपने 5,000 डॉक्टर, 11,000 इंजीनियर और 13,000 अकाउंटेंट्स को खो दिया है। यह केवल संख्या नहीं है; यह उस ‘ब्रेन ड्रेन’ (प्रतिभा पलायन) की दास्तां है जिसने पाकिस्तान के सामाजिक और पेशेवर ढांचे की नींव हिला दी है।
आंकड़ों का जाल और जमीनी हकीकत
‘ब्यूरो ऑफ इमिग्रेशन एंड ओवरसीज एम्प्लॉयमेंट’ की रिपोर्ट के अनुसार, 2024 में 7.27 लाख से अधिक पाकिस्तानियों ने विदेश जाने के लिए पंजीकरण कराया, और 2025 में नवंबर तक यह आंकड़ा 6.87 लाख को पार कर चुका है। पहले यह पलायन खाड़ी देशों में मजदूरी करने वाले श्रमिकों तक सीमित था, लेकिन अब पाकिस्तान का ‘व्हाइट कॉलर’ तबका—पढ़े-लिखे डॉक्टर और इंजीनियर—देश को अलविदा कह रहे हैं।
‘ब्रेन गेन’ बनाम ‘ब्रेन ड्रेन’: जनरल मुनीर का विवादास्पद दावा
इस संकट के बीच, पाकिस्तान के सेना प्रमुख जनरल आसिम मुनीर का एक बयान आग में घी का काम कर रहा है। उन्होंने इस बड़े पैमाने पर हो रहे पलायन को ‘ब्रेन ड्रेन’ मानने से इनकार करते हुए इसे ‘ब्रेन गेन’ करार दिया। उनके अनुसार, विदेशों में बसे पाकिस्तानी देश के लिए एक संपत्ति हैं।
हालांकि, युवाओं के लिए यह तर्क किसी क्रूर मजाक से कम नहीं है। सोशल मीडिया पर ‘जेहनी मरीज’ (मानसिक रोगी) जैसे शब्दों के साथ जनरल के दावों की खिल्ली उड़ाई जा रही है। पूर्व सीनेटर मुस्तफा नवाज खोखर ने तीखी टिप्पणी करते हुए कहा, “राजनीति ठीक करो, तभी अर्थव्यवस्था ठीक होगी।” हकीकत यह है कि जब प्रतिभा वापस आने के बजाय पलायन को ही एकमात्र विकल्प मान ले, तो वह ‘गेन’ (लाभ) नहीं बल्कि राष्ट्रीय क्षति है।
डिजिटल दीवारें और टूटते सपने
पाकिस्तान दुनिया का चौथा सबसे बड़ा फ्रीलांसिंग हब है, लेकिन यहाँ की सरकार ने ही इस संभावना पर ताला लगा दिया है। ‘नेशनल फायरवॉल’ और बार-बार इंटरनेट शटडाउन के कारण देश को 1.62 अरब डॉलर का नुकसान हुआ है, जिससे 23.7 लाख फ्रीलांसिंग नौकरियां खतरे में हैं। एक इंजीनियर के लिए पाकिस्तान में रहने का मतलब अब केवल कम वेतन नहीं, बल्कि ‘डिजिटल फ्रिक्शन’ (तकनीकी बाधाएं) और अनिश्चितता बन गया है।
ऐतिहासिक और संवैधानिक संकट
ऐतिहासिक रूप से, पाकिस्तान के संविधान का अनुच्छेद 18 हर नागरिक को उसकी पसंद के व्यवसाय और व्यापार की स्वतंत्रता की गारंटी देता है। लेकिन जब राज्य रोजगार के अवसर पैदा करने में विफल हो जाए और शोध संस्थानों (Labs) को खाली छोड़ दे, तो यह संवैधानिक वादों का उल्लंघन है। पाकिस्तान के पीएचडी धारक आज खाली प्रयोगशालाओं और बंद पड़े बाजारों की ओर देख रहे हैं।
एक पीढ़ी का मौन विलाप
पलायन का सबसे दुखद पहलू इसका मानवीय चेहरा है। लोग केवल बेहतर वेतन के लिए नहीं भाग रहे, बल्कि वे उस ‘हार्ड स्टेट’ (कठोर राज्य) से डर रहे हैं जहाँ राय में अंतर होने पर अपहरण और प्रताड़ना का डर सताता है। जब डॉक्टर अस्पताल छोड़ते हैं, तो पीछे एक जर्जर स्वास्थ्य व्यवस्था रह जाती है। जब इंजीनियर निकलते हैं, तो देश की नवाचार (Innovation) की क्षमता दम तोड़ देती है।
पाकिस्तान आज केवल अपनी प्रतिभा नहीं, बल्कि अपनी साख (Credibility) भी खो रहा है। सरकार हवाई अड्डों पर सख्ती बढ़ाकर या ‘पेशेवर भिखारियों’ पर प्रतिबंध लगाकर इस लहर को नहीं रोक सकती। प्रतिभा को रोकने के लिए ‘अवसर’ चाहिए, ‘अपमान’ नहीं।