भारत में महिला सुरक्षा चुनौती, घरेलू हिंसा सबसे बड़ा अपराध

एनसीआरबी और एनसीडब्ल्यू की रिपोर्ट में खुलासा: घरेलू हिंसा सबसे बड़ा अपराध, अधिकांश घटनाएँँ पुलिस तक नहीं पहुंच पातीं

कृपया इस पोस्ट को साझा करें!

प्रतिज्ञा राय

भारत में महिलाओं की सुरक्षा 2025 में भी एक जटिल चुनौती बनी हुई है, जहाँ आधिकारिक अपराध आंकड़े स्थिरता दिखाते हैं, लेकिन जमीनी स्तर पर अनरिपोर्टेड हिंसा और असुरक्षा की भावना व्यापक है।राष्ट्रीय अपराध अभिलेख ब्यूरो (NCRB) की 2023 की रिपोर्ट बताती है कि महिलाओं के खिलाफ अपराध के 4,48,211 मामले दर्ज किए गए। 2022 की तुलना में यह संख्या थोड़ी बढ़ी है, लेकिन सवाल यह नहीं कि आंकड़े बढ़े या घटे—सवाल यह है कि कितनी घटनाएं कभी दर्ज ही नहीं होतीं। प्रति लाख महिलाओं पर अपराध दर 66.2 रही और सबसे बड़ा अपराध आज भी वही है जो घर की चार दीवारों के भीतर होता है—पति या रिश्तेदारों द्वारा क्रूरता, जो कुल मामलों का लगभग 30 प्रतिशत है। यानी महिला के लिए सबसे असुरक्षित जगह अब भी उसका अपना घर है।

शहर भी महिलाओं के लिए सुरक्षित नहीं

राष्ट्रीय महिला आयोग की नेशनल एनुअल रिपोर्ट एंड इंडेक्स ऑन विमेंस सेफ्टी (NARI) 2025 इस सच्चाई को और बेनकाब करती है। 31 शहरों में 12,770 महिलाओं से बातचीत के बाद सामने आया कि भले ही राष्ट्रीय सुरक्षा स्कोर 65% हो, लेकिन 40% महिलाएँ खुद को शहरों में असुरक्षित महसूस करती हैं। यह सिर्फ भावना नहीं, अनुभव है।

2024 में 7% महिलाओं ने सार्वजनिक स्थानों पर उत्पीड़न झेला, जबकि 18–24 वर्ष की उम्र की महिलाओं में यह आंकड़ा 14% तक पहुँच जाता है। सबसे डरावना तथ्य यह है कि 67% घटनाएं रिपोर्ट ही नहीं होतीं—क्योंकि शिकायत करना आज भी महिलाओं के लिए एक और लड़ाई है।

घरेलू हिंसा: सबसे बड़ा और सबसे छुपा अपराध

राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 (NFHS-5) के अनुसार, 32% विवाहित महिलाएँ अपने जीवन में कभी न कभी पति द्वारा शारीरिक, यौन या मानसिक हिंसा का शिकार हुई हैं। यह आंकड़ा बताता है कि घरेलू हिंसा कोई अपवाद नहीं, बल्कि एक सामान्यीकृत सच्चाई है।
महिलाएँ इसलिए नहीं बोलतीं क्योंकि समाज “समझौते” को संस्कार कहता है, परिवार “इज़्ज़त” का हवाला देता है, और कानून की लंबी प्रक्रिया उन्हें फिर से पीड़ित बना देती है।

रिपोर्टिंग बढ़ी है, भरोसा नहीं

यह सच है कि महिला हेल्पलाइन, वन-स्टॉप सेंटर और ऑनलाइन शिकायत पोर्टल्स के कारण रिपोर्टिंग में कुछ सुधार हुआ है। लेकिन क्षेत्रीय आंकड़े सिस्टम की असमानता दिखाते हैं। दिल्ली (133.6), तेलंगाना (124.9) और राजस्थान (114.8) में अपराध दर राष्ट्रीय औसत से कहीं ज़्यादा है।
उत्पीड़न के सबसे आम स्थान आज भी पड़ोस (38%) और सार्वजनिक परिवहन (29%) हैं—यानी वह जगहें, जहाँ महिला का होना “सामान्य” माना जाता है।

2025: हर दिन की लड़ाई

महिला सुरक्षा को केवल कानूनों और आंकड़ों से नहीं मापा जा सकता। असली सवाल यह है कि क्या महिला बिना डर के बाहर निकल सकती है? क्या वह घर के भीतर सुरक्षित है? क्या उसकी शिकायत सुनी जाएगी?
2025 में महिला सुरक्षा अब भी एक रोज़ की जंग है—जहाँ चुप्पी अक्सर न्याय से बड़ी हो जाती है। जरूरत है पुलिस सुधार, संवेदनशील जाँच तेज़ न्याय और सबसे ज़्यादा सामाजिक सोच में बदलाव की।
क्योंकि जब तक हिंसा को “निजी मामला” कहा जाता रहेगा, तब तक हर आंकड़ा अधूरा और हर दावा खोखला रहेगा।

कृपया इस पोस्ट को साझा करें!
Leave A Reply

Your email address will not be published.