17 साल बाद घर लौटे बीएनपी के कार्यवाहक अध्यक्ष तारिक रहमान

कट्टरपंथी ताकतों के उभार के बीच तारिक रहमान की वापसी से बांग्लादेश की राजनीति में संतुलन की उम्मीद, भारत की सुरक्षा और कूटनीति पर भी असर

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  • बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी के नेता तारिक रहमान की वापसी से कट्टरपंथी दल जमात-ए-इस्लामी की बढ़त को चुनौती मिलने की संभावना
  • अवामी लीग के बाहर होने के बाद भारत के लिए बीएनपी अपेक्षाकृत संतुलित और लोकतांत्रिक विकल्प के रूप में उभरती दिख रही है
  • जमात की सत्ता में वापसी से भारत-विरोधी माहौल और सीमा सुरक्षा पर खतरा बढ़ सकता है, जिसे तारिक रहमान की सक्रिय राजनीति सीमित कर सकती है
  • चुनाव से पहले बीएनपी और भारत के बीच बढ़ती राजनीतिक नरमी से क्षेत्रीय स्थिरता और संवाद के नए रास्ते खुलने की उम्मीद

समग्र समाचार सेवा
ढाका | 25 दिसंबर: बांग्लादेश की प्रमुख विपक्षी पार्टी बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) के कार्यवाहक अध्यक्ष तारिक रहमान 17 वर्षों के आत्म-निर्वासन के बाद अपने देश लौट आए हैं। वे पूर्व प्रधानमंत्री खालिदा जिया के पुत्र हैं और फरवरी 2026 में होने वाले आम चुनाव में प्रधानमंत्री पद के प्रमुख दावेदार माने जा रहे हैं।
उनकी वापसी ऐसे समय हुई है, जब बांग्लादेश राजनीतिक अस्थिरता, हिंसा और कट्टरपंथी गतिविधियों से जूझ रहा है। यही कारण है कि यह घटनाक्रम भारत के लिए भी महत्वपूर्ण माना जा रहा है।

अवामी लीग बाहर, कट्टरपंथी ताकतों की सक्रियता

भारत समर्थक अवामी लीग के चुनावी परिदृश्य से बाहर हो जाने और पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना के भारत में शरण लेने के बाद बांग्लादेश की राजनीति में एक खालीपन पैदा हो गया है।
इस खालीपन का लाभ उठाने की कोशिश जमात-ए-इस्लामी कर रही है। जमात को पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई के करीब माना जाता है। उसने अन्य इस्लामी दलों के साथ गठबंधन बनाकर चुनाव में बढ़त लेने की तैयारी कर ली है।
यदि जमात सत्ता में आती है, तो भारत-विरोधी माहौल और सीमा सुरक्षा से जुड़ी चुनौतियां बढ़ सकती हैं।

भारत के लिए बीएनपी अपेक्षाकृत संतुलित विकल्प

इतिहास में बीएनपी और नई दिल्ली के संबंध तनावपूर्ण रहे हैं, लेकिन वर्तमान हालात में भारत के सामने विकल्प सीमित हैं। जमात की तुलना में बीएनपी को आज भारत अपेक्षाकृत उदार और लोकतांत्रिक विकल्प के रूप में देख रहा है।
तारिक रहमान की वापसी से बीएनपी के कार्यकर्ताओं में उत्साह बढ़ा है और पार्टी की चुनावी स्थिति मजबूत हो सकती है। भारत के दृष्टिकोण से यह स्थिति “दो कठिन विकल्पों में से कम जोखिम वाला विकल्प” जैसी है।

अंतरिम शासन और भारत-विरोधी रुख

अंतरिम प्रमुख मुहम्मद यूनुस के नेतृत्व में भारत-विरोधी बयानबाज़ी और हिंसक घटनाओं में वृद्धि देखी गई है। हाल के महीनों में सांप्रदायिक हिंसा, एक हिंदू युवक की पीट-पीटकर हत्या और कुछ सामाजिक नेताओं की हत्या ने चिंता बढ़ाई है।
इन घटनाओं पर बीएनपी ने सार्वजनिक रूप से आलोचना की है, जबकि जमात जैसे दलों से इस तरह की प्रतिक्रिया की उम्मीद कम ही की जाती है।

भारत की कूटनीतिक पहल

दिसंबर की शुरुआत में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने खालिदा जिया के स्वास्थ्य को लेकर चिंता जताई और भारत की ओर से सहयोग की बात कही। बीएनपी की ओर से इसका सकारात्मक जवाब आया।
यह घटनाक्रम यह संकेत देता है कि भारत चुनाव से पहले बीएनपी को मुख्यधारा में बनाए रखना चाहता है, ताकि कट्टरपंथी ताकतों का प्रभाव सीमित रहे।

भारत के लिए क्यों अहम है तारिक रहमान की वापसी
  • कट्टरपंथी प्रभाव पर रोक लगने की संभावना
  • भारत-बांग्लादेश सीमा सुरक्षा के लिए अपेक्षाकृत संतुलित माहौल
  • पाकिस्तान के बढ़ते प्रभाव को सीमित करने का अवसर
  • क्षेत्रीय स्थिरता और लोकतांत्रिक प्रक्रिया को सहारा

निष्कर्ष, तारिक रहमान की वापसी बांग्लादेश की राजनीति में संतुलन लाने वाला कदम मानी जा रही है। भारत के लिए यह इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि इससे सबसे अधिक अस्थिर और भारत-विरोधी परिदृश्य बनने की आशंका कुछ हद तक कम होती दिखाई दे रही है।

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