शिखर पुरुषों की 65 फीट ऊँची 3 मूर्तियां, यह सिर्फ स्मारक नहीं, विचारों की घोषणा है
राष्ट्र प्रेरणा स्थल के जरिए भाजपा ने अपने वैचारिक मूल को दी स्थायी पहचान
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लखनऊ में बने राष्ट्र प्रेरणा स्थल में भाजपा के तीन प्रमुख विचार स्तंभों की 65 फीट ऊंची कांस्य प्रतिमाएं स्थापित
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श्यामा प्रसाद मुखर्जी के राष्ट्रवादी संकल्प, कश्मीर दृष्टि और वैचारिक संघर्ष को स्मरण
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दीनदयाल उपाध्याय की अंत्योदय सोच और समाज के अंतिम व्यक्ति तक विकास का संदेश
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अटल बिहारी वाजपेयी के संतुलित नेतृत्व, लोकतांत्रिक मर्यादा और स्वीकार्यता की
समग्र समाचार सेवा
लखनऊ, 25 दिसंबर: लखनऊ में बने राष्ट्र प्रेरणा स्थल में खड़ी 65 फीट ऊंची तीन कांस्य प्रतिमाएं किसी सजावटी निर्णय का नतीजा नहीं हैं। यह भारतीय राजनीति में विचारों को स्थायी रूप देने की एक सोची-समझी कोशिश है। भारतीय जनता पार्टी ने अपने तीन वैचारिक स्तंभों को एक ही परिसर में स्थापित कर यह संकेत दिया है कि उसका वर्तमान और भविष्य, उसके अतीत से कटा हुआ नहीं है।
यह पहली बार है जब पार्टी के तीन “शिखर पुरुष” अटल बिहारी वाजपेयी, श्यामा प्रसाद मुखर्जी और दीनदयाल उपाध्याय एक साथ, समान ऊंचाई पर, एक ही वैचारिक कथा का हिस्सा बनते दिखाई देते हैं।
स्मारक नहीं, राजनीतिक भाषा
उत्तर प्रदेश में विशाल प्रतिमाओं और पार्कों की परंपरा पहले भी देखी जा चुकी है, लेकिन यहां संदर्भ अलग है। यह स्थल केवल अतीत को याद करने के लिए नहीं, बल्कि यह बताने के लिए बनाया गया है कि पार्टी किन विचारों को अपनी जड़ मानती है। 65 एकड़ में फैला यह परिसर, सत्ता की भव्यता से ज्यादा, विचारों की निरंतरता को दर्शाने की कोशिश करता है।
श्यामा प्रसाद मुखर्जी: अधूरा सपना, पूरा एजेंडा
श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने जिस “एक राष्ट्र” की कल्पना की थी, वह उनके जीवनकाल में पूरी नहीं हो सकी। लेकिन जनसंघ से लेकर भाजपा तक, यह विचार एक धुरी बना रहा। कश्मीर को लेकर उनका रुख पार्टी की वैचारिक पहचान में गहराई से शामिल रहा। वर्षों बाद, जब केंद्र में मजबूत सरकार बनी, तो उसी सोच को नीति के स्तर पर लागू किया गया। प्रतिमा यहां उस अधूरे सपने की याद नहीं, बल्कि उसकी पूर्ति का प्रतीक बनती है।
दीनदयाल उपाध्याय: सत्ता से पहले समाज
दीनदयाल उपाध्याय की राजनीति सत्ता-केंद्रित नहीं थी। उनका जोर समाज के सबसे कमजोर व्यक्ति पर था। “एकात्म मानववाद” के जरिए उन्होंने विकास को केवल आर्थिक नहीं, बल्कि मानवीय दृष्टि से देखने की बात कही। आज जब सरकार गरीब, ग्रामीण और हाशिए पर खड़े वर्गों के नाम पर योजनाओं का हवाला देती है, तो पार्टी इसे दीनदयाल की सोच की जमीन पर खड़ा करती है।
अटल बिहारी वाजपेयी: स्वीकार्यता का चेहरा
अटल बिहारी वाजपेयी भाजपा की उस छवि का प्रतिनिधित्व करते हैं, जिसने विरोधियों के बीच भी सम्मान पाया। उनकी राजनीति में संवाद था, कठोरता के साथ संवेदनशीलता भी। तीन बार प्रधानमंत्री रह चुके अटल, पार्टी के लिए यह संदेश हैं कि विचारधारा और लोकतांत्रिक मर्यादा साथ-साथ चल सकती हैं।
तीन प्रतिमाएंँ, एक कहानी
इन तीनों नेताओं को एक ही स्थान पर खड़ा करना दरअसल भाजपा की वैचारिक टाइमलाइन को सार्वजनिक मंच पर रखना है—शुरुआत, संघर्ष और विस्तार। यह कहना कि पार्टी केवल चुनावी राजनीति कर रही है, अधूरा सच होगा। ये प्रतिमाएं बताती हैं कि भाजपा खुद को एक लंबी वैचारिक यात्रा का परिणाम मानती है।