बांग्लादेश में खुद ही शामिल हो सकता है असम- हिमंता बिस्वा सरमा का बयान

अनियंत्रित प्रवासन पर फिर चेतावनी, जनसांख्यिकी बदलाव को बताया बड़ा खतरा

कृपया इस पोस्ट को साझा करें!
  • असम में बांग्लादेशी मूल की आबादी को लेकर मुख्यमंत्री ने जताई गंभीर चिंता
  • बांग्लादेश के नेता के पूर्वोत्तर पर बयान के जवाब में आया सरमा का बयान
  • मुस्लिम आबादी 50% से ऊपर जाने पर सामाजिक संतुलन बिगड़ने का दावा
  • पहचान की राजनीति को बताया “अस्तित्व की मजबूरी”

समग्र समाचार सेवा
गुवाहाटी, 24 दिसंबर: असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा ने अनियंत्रित प्रवासन को लेकर एक बार फिर सख्त चेतावनी दी है। गुवाहाटी में एक आधिकारिक कार्यक्रम के बाद पत्रकारों से बातचीत में उन्होंने कहा कि यदि राज्य में बांग्लादेशी मूल की आबादी और बढ़ती है, तो असम की पहचान पर गंभीर संकट खड़ा हो सकता है। उन्होंने दावा किया कि वर्तमान में असम की लगभग 40 प्रतिशत आबादी बांग्लादेशी मूल की है और यदि इसमें 10 प्रतिशत की और वृद्धि होती है, तो “हम खुद ही बांग्लादेश में शामिल होने जैसी स्थिति में पहुँच सकते हैं।”

मुख्यमंत्री का यह बयान बांग्लादेश के एक नेता की उस कथित टिप्पणी के संदर्भ में आया है, जिसमें भारत के पूर्वोत्तर राज्यों को अलग-थलग करने की बात कही गई थी। सरमा ने कहा कि वह पिछले पाँच वर्षों से लगातार अनियंत्रित प्रवासन को लेकर आगाह करते रहे हैं, लेकिन समस्या दिन-ब-दिन गंभीर होती जा रही है।

बांग्लादेश के नेता के बयान पर प्रतिक्रिया

इस महीने की शुरुआत में बांग्लादेश की नवगठित नेशनल सिटिजन पार्टी (एनसीपी) के नेता हसनत अब्दुल्ला ने कथित तौर पर कहा था कि यदि नई दिल्ली बांग्लादेश को अस्थिर करने की कोशिश करती है, तो ढाका को भारत के पूर्वोत्तर राज्यों को अलग-थलग कर देना चाहिए और अलगाववादी तत्वों का समर्थन करना चाहिए। उन्होंने यह भी कहा था कि पूर्वोत्तर क्षेत्र भौगोलिक रूप से असुरक्षित है क्योंकि यह भारत की मुख्य भूमि से केवल संकरे सिलीगुड़ी कॉरिडोर के जरिए जुड़ा है, जिसे ‘चिकन नेक’ कहा जाता है।

मुस्लिम आबादी को लेकर चिंता

हिमंता बिस्वा सरमा ने हाल ही में एक अन्य कार्यक्रम में कहा था कि यदि असम में मुस्लिम आबादी 50 प्रतिशत से अधिक हो जाती है, तो अन्य समुदायों के लिए राज्य में टिके रहना मुश्किल हो जाएगा। उन्होंने दावा किया कि दशकों से चले आ रहे अनियंत्रित प्रवासन के कारण असम की मूल आबादी अस्तित्व के संकट का सामना कर रही है।

मुख्यमंत्री के अनुसार, 2021 में असम की मुस्लिम आबादी लगभग 38 प्रतिशत आंकी गई थी। 1961 से लगातार 4–5 प्रतिशत की दशकीय वृद्धि दर को देखते हुए यह आंकड़ा 2027 तक 40 प्रतिशत तक पहुँच सकता है। सरमा ने तर्क दिया कि ऐसी स्थिति में असम में पहचान की राजनीति कोई विकल्प नहीं, बल्कि अस्तित्व की आवश्यकता बन चुकी है।

कृपया इस पोस्ट को साझा करें!
Leave A Reply

Your email address will not be published.