समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली | 23 दिसंबर :Centre for Democracy, Pluralism and Human Rights (CDPHR) ने बांग्लादेश में 25 वर्षीय हिंदू युवक दीपू चंद्र दास की नृशंस लिंचिंग की कड़े शब्दों में निंदा करते हुए इसे मानवाधिकारों, न्याय व्यवस्था और राज्य संरक्षण की “गंभीर विफलता” करार दिया है। संगठन ने इस घटना को बांग्लादेश में बढ़ती भीड़-हिंसा और दंडमुक्ति (mob impunity) का भयावह उदाहरण बताया।
ब्लासफेमी के आरोप और भीड़ की हिंसा
सोमवार को जारी बयान में संगठन ने कहा कि 18 दिसंबर को मयमनसिंह के भालुका इलाके में दीपू दास को कथित तौर पर अप्रमाणित ईशनिंदा (blasphemy) के आरोप में भीड़ ने पीट-पीटकर मार डाला। प्रारंभिक पुलिस रिपोर्ट के अनुसार, लगभग 140–150 लोगों की भीड़ ने पहले उन्हें बेरहमी से पीटा, फिर शव को पेड़ से बांधकर सार्वजनिक रूप से जला दिया।
अधिकार समूह ने स्पष्ट किया कि दीपू दास द्वारा धार्मिक भावनाएँ आहत करने के किसी भी आरोप का कोई विश्वसनीय प्रमाण नहीं है—यह बात उनके परिवार ने भी दोहराई है।
राजनीतिक अशांति के बीच बढ़ता अल्पसंख्यक संकट
यह घटना ऐसे समय हुई है जब बांग्लादेश राजनीतिक कार्यकर्ता शरीफ उस्मान हादी की मौत के बाद व्यापक अशांति से गुजर रहा है। CDPHR ने कहा कि यह हत्या कोई अपवाद नहीं, बल्कि अगस्त 2024 के राजनीतिक उथल-पुथल के बाद से अल्पसंख्यकों के खिलाफ हिंसा के खतरनाक पैटर्न का हिस्सा है।
आंकड़े जो सच्चाई बयान करते हैं
संगठन के अनुसार, 2024 में बांग्लादेश में हिंदुओं के खिलाफ लगभग 2,200 हिंसक घटनाएं दर्ज की गईं, जबकि 2023 में यह संख्या 302 और 2022 में मात्र 47 थी। इनमें हमले, धमकियां, भीड़-हिंसा और मंदिरों का अपवित्रीकरण शामिल है।
इसके अलावा, अगस्त 2024 से जुलाई 2025 के बीच धार्मिक अल्पसंख्यकों के खिलाफ 2,400 से अधिक घटनाएं दर्ज हुईं—जिनमें हत्याएं, यौन हिंसा, लूटपाट और पूजा स्थलों पर लक्षित हमले शामिल हैं। संगठन ने जुलाई 2025 में गंगाछड़ा के हिंदू मोहल्ले पर हमले का भी उल्लेख किया, जहां परिवारों को घर छोड़ने पर मजबूर होना पड़ा।
“चयनात्मक वैश्विक आक्रोश” पर सवाल
CDPHR ने अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रिया पर सवाल उठाते हुए कहा कि जहां शरीफ उस्मान हादी की हत्या पर वैश्विक मंचों से कड़ी निंदा हुई, वहीं दीपू दास की लिंचिंग पर तुलनीय प्रतिक्रिया का अभाव चिंताजनक है।
संगठन की अध्यक्ष डॉ. प्रेरणा मल्होत्रा ने कहा, “मानवाधिकार सार्वभौमिक और अविभाज्य हैं। ऐसी क्रूरता पर चुप्पी, सहभागिता के समान है।”
जवाबदेही और सुधार की माँग
संगठन ने सरकारों, अंतरराष्ट्रीय संस्थानों और नागरिक समाज से इस हत्या की स्पष्ट निंदा, स्वतंत्र जाँच, दोषियों व संरक्षकों की जवाबदेही, और ईशनिंदा के दुरुपयोग व भीड़-हिंसा से अल्पसंख्यकों की रक्षा के लिए कानूनी सुधारों की माँग की है