पूनम शर्मा
विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) ने छात्रों और अभिभावकों को कड़ा अलर्ट जारी करते हुए चेतावनी दी है कि तीन संस्थान बिना किसी वैधानिक मान्यता के “विश्वविद्यालय” के रूप में संचालित हो रहे हैं, जिनसे जारी की जा रही सभी डिग्रियां अमान्य और गैर-कानूनी हैं। यूजीसी ने स्पष्ट किया है कि इन संस्थानों में प्रवेश लेने वाले छात्रों को भविष्य में नौकरी, उच्च शिक्षा और सरकारी मान्यता से वंचित होना पड़ सकता है।
यूजीसी नोटिस के अनुसार जिन संस्थानों के नाम सामने आए हैं—
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NIMS, दिल्ली
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सर्व भारतीय शिक्षा पीठ, तुमकुर जिले के विजयनगर क्षेत्र में स्थित है
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नेशनल बैकवर्ड कृषि विद्यापीठ, सोलापुर (महाराष्ट्र )
यूजीसी ने कहा है कि ये संस्थान UGC Act, 1956 का उल्लंघन कर रहे हैं और इनके खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जा सकती है। आयोग ने छात्रों से अपील की है कि किसी भी विश्वविद्यालय में प्रवेश से पहले यूजीसी की आधिकारिक वेबसाइट पर मान्यता की जाँच अवश्य करें।
यूजीसी का सख्त संदेश:
शिक्षा के नाम पर धोखाधड़ी बर्दाश्त नहीं की जाएगी। छात्र अपने भविष्य के साथ समझौता न करें और केवल मान्यता प्राप्त संस्थानों में ही दाख़िला लें।
डिग्री नहीं, धोखा
यूजीसी की हालिया चेतावनी केवल एक प्रशासनिक सूचना नहीं है—यह देश की शिक्षा व्यवस्था पर लगा गंभीर आरोप है। बिना मान्यता के संचालित विश्वविद्यालय न केवल कानून तोड़ रहे हैं, बल्कि लाखों युवाओं के भविष्य से भी खिलवाड़ कर रहे हैं।
फर्जी संस्थानों का जाल
NIMS दिल्ली, सर्वहित और अन्य संस्थान शिक्षा का मुखौटा पहनकर ठगी का धंधा चला रहे हैं। ये संस्थान वैध डिग्री, सरकारी नौकरी और सामाजिक सम्मान का सपना बेचते हैं—जो अंततः कागज़ का टुकड़ा बनकर रह जाता है।
संवैधानिक दृष्टि से अपराध
अनुच्छेद 21A शिक्षा को मौलिक अधिकार मानता है। फर्जी विश्वविद्यालय इस अधिकार का सीधा उल्लंघन हैं। यह केवल धोखाधड़ी नहीं, बल्कि संवैधानिक विश्वासघात है।
नैतिक पतन और दुर्भाग्य
जो लोग इस प्रकार की धोखाधड़ी में शामिल हैं, वे केवल कानून नहीं तोड़ रहे—वे सामाजिक पतन के प्रतीक हैं। शिक्षा जैसे पवित्र क्षेत्र को बाजार बनाना दुर्भाग्यपूर्ण ही नहीं, शर्मनाक है।
छात्रों की पीड़ा
ग्रामीण, गरीब और प्रथम-पीढ़ी के विद्यार्थी सबसे अधिक शिकार बनते हैं। वर्षों की मेहनत, परिवार की जमा-पूंजी और सपने—सब बर्बाद हो जाते हैं।
राज्य और समाज की जिम्मेदारी
यूजीसी की चेतावनी स्वागतयोग्य है, लेकिन पर्याप्त नहीं। कठोर दंड, सार्वजनिक ब्लैकलिस्ट और आपराधिक मुकदमे जरूरी हैं। साथ ही समाज को भी जागरूक होना होगा।
निष्कर्ष: शिक्षा को ठगी से मुक्त करना होगा
अगर शिक्षा ही खोखली हो गई, तो राष्ट्र का भविष्य अंधकारमय होगा। फर्जी विश्वविद्यालयों के खिलाफ कठोर कार्रवाई केवल नीति नहीं—राष्ट्रीय कर्तव्य है।