यूक्रेन युद्ध पर मियामी में गुप्त संवाद: कूटनीति, दबाव हकीकत की टकराहट

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पूनम शर्मा
यूक्रेन युद्ध को लेकर एक बार फिर अंतरराष्ट्रीय कूटनीति की हलचल तेज हो गई है। इस बार मंच बना है अमेरिका का मियामी शहर, जहां रूस और अमेरिका के शीर्ष प्रतिनिधियों के बीच सीधी बातचीत हुई। रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के विशेष दूत किरिल दिमित्रिएव और अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के विशेष दूत स्टीव विटकॉफ के बीच यह मुलाकात ऐसे समय में हुई है, जब युद्ध लगभग चार साल पूरे करने की ओर है और थकान, टूटन और अनिश्चितता हर पक्ष पर साफ दिखने लगी है।

रूसी पक्ष ने बातचीत को “रचनात्मक” बताया है और संकेत दिया है कि यह संवाद केवल एक बैठक तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि आगे भी जारी रहेगा। दिमित्रिएव का यह बयान अपने आप में महत्वपूर्ण है, क्योंकि हाल के महीनों में रूस ने कूटनीतिक नरमी के बहुत कम संकेत दिए हैं। वहीं, अमेरिकी विदेश मंत्री मार्को रुबियो ने भी स्वीकार किया कि बातचीत में कुछ प्रगति हुई है, लेकिन रास्ता अभी लंबा है।

कूटनीति की मेज और युद्ध का मैदान

मियामी में हो रही बातचीत उस समय हो रही है, जब यूक्रेन के शहरों पर रूसी हमले जारी हैं। ओडेसा क्षेत्र में हालिया बैलिस्टिक मिसाइल हमले में कम से कम आठ लोगों की मौत और दर्जनों के घायल होने की खबर आई है। बंदरगाह ढांचे, पुलों, बिजली और हीटिंग सिस्टम पर हुए हमलों ने कड़ाके की सर्दी में आम नागरिकों की मुश्किलें और बढ़ा दी हैं।

यह विरोधाभास इस युद्ध की सबसे बड़ी सच्चाई बन चुका है—एक तरफ शांति की बातें, दूसरी तरफ मिसाइलों की बारिश। कूटनीति और हिंसा साथ-साथ चल रही हैं, जैसे एक दूसरे की परीक्षा ले रही हों।

जेलेंस्की की दो टूक: सिर्फ बातों से काम नहीं चलेगा

कीव से यूक्रेनी राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की ने साफ शब्दों में कहा है कि अमेरिका-नेतृत्व वाली शांति प्रक्रिया का वह समर्थन करते हैं, लेकिन केवल बातचीत काफी नहीं है। उनके अनुसार, रूस पर वास्तविक दबाव डाले बिना पुतिन को रुकने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता।

जेलेंस्की का यह बयान उस निराशा को दर्शाता है, जो यूक्रेन लंबे समय से महसूस कर रहा है। उसे लगता है कि रूस युद्ध को लंबा खींचकर थकान की राजनीति खेल रहा है—यूरोप में राजनीतिक मतभेद बढ़ रहे हैं, सहायता को लेकर बहसें तेज हो रही हैं और इसी बीच मॉस्को अपने सैन्य लाभ को स्थायी बनाना चाहता है।

ट्रंप की 20-सूत्रीय शांति योजना और उसकी सीमाएँ

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के दूत पिछले कुछ हफ्तों से यूक्रेन, रूस और यूरोपीय अधिकारियों के साथ एक कथित 20-सूत्रीय शांति योजना पर बातचीत कर रहे हैं। हालांकि इस योजना के ब्योरे सार्वजनिक नहीं हैं, लेकिन इतना साफ है कि सबसे बड़ा विवाद दो मुद्दों पर अटका है—क्षेत्रीय नियंत्रण और यूक्रेन के लिए सुरक्षा गारंटी।

यूक्रेन चाहता है कि उसकी संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता पर कोई समझौता न हो, जबकि रूस उन इलाकों को छोड़ने को तैयार नहीं दिखता, जिन पर उसने सैन्य कब्जा कर लिया है। यही वजह है कि बातचीत आगे बढ़ते हुए भी ठहर-सी जाती है।

त्रिपक्षीय बातचीत का प्रस्ताव: उम्मीद या औपचारिकता?

वॉशिंगटन ने एक नए प्रारूप का सुझाव भी दिया है—यूक्रेन, रूस और अमेरिका के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकारों के बीच त्रिपक्षीय वार्ता। जेलेंस्की इस प्रस्ताव को लेकर उत्साहित तो नहीं हैं, लेकिन उन्होंने कहा है कि अगर इससे युद्धबंदियों की अदला-बदली या शीर्ष नेतृत्व की बैठक का रास्ता खुलता है, तो यूक्रेन इसका विरोध नहीं करेगा।

यह बयान बताता है कि कीव अब छोटे-छोटे व्यावहारिक कदमों को भी बड़ी उपलब्धि मानने को तैयार है, क्योंकि पूर्ण शांति फिलहाल दूर की कौड़ी लगती है।

पुतिन का संदेश: युद्ध जारी रहेगा

इन तमाम कूटनीतिक कोशिशों के बीच पुतिन ने साफ कर दिया है कि रूस अपने सैन्य अभियान से पीछे हटने वाला नहीं है। उन्होंने हालिया प्रेस कॉन्फ्रेंस में रूसी सेना की प्रगति की सराहना की और संकेत दिया कि मॉस्को खुद को मजबूत स्थिति में मानता है।

हालांकि उन्होंने यह भी कहा कि यूक्रेन में राष्ट्रपति चुनाव कराने के लिए रूस अपने हमले अस्थायी रूप से रोक सकता है, लेकिन जेलेंस्की ने इस प्रस्ताव को सिरे से खारिज कर दिया। उनके अनुसार, यह प्रस्ताव शांति नहीं बल्कि राजनीतिक दबाव बनाने की रणनीति है।

निष्कर्ष: शांति की राह अभी धुंधली है

मियामी में हुई बातचीत यह दिखाती है कि युद्धविराम की कोशिशें पूरी तरह मरी नहीं हैं। लेकिन यह भी उतना ही सच है कि जमीन पर हालात अभी शांति के अनुकूल नहीं हैं। रूस सैन्य लाभ छोड़ने को तैयार नहीं, यूक्रेन दबाव के बिना समझौता नहीं चाहता, और पश्चिमी दुनिया खुद आंतरिक मतभेदों से जूझ रही है। ऐसे में यह युद्ध सिर्फ टैंकों और मिसाइलों का नहीं रह गया है, बल्कि धैर्य, संसाधनों और राजनीतिक इच्छाशक्ति की लंबी परीक्षा बन चुका है। मियामी की बैठक शायद इस परीक्षा का एक छोटा-सा अध्याय है—न तो अंतिम समाधान, न ही निर्णायक मोड़। शांति अभी भी दूर कहीं क्षितिज पर टिमटिमाती एक अनिश्चित-सी रोशनी बनी हुई है।

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