संघ को बीजेपी के नजरिये से समझना बड़ी भूल-मोहन भागवत

आरएसएस शताब्दी समारोह में सरसंघचालक ने कहा—संघ का मूल उद्देश्य समाज निर्माण है, न कि सत्ता या दलगत राजनीति।

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  • संघ को किसी राजनीतिक दल से जोड़कर देखना गलत धारणा को जन्म देता है
  • आरएसएस की प्रकृति सामाजिक और सांस्कृतिक है, राजनीतिक नहीं
  • स्वयंसेवक अलग-अलग क्षेत्रों में कार्यरत, लेकिन संगठन स्वायत्त
  • भारत को एक सभ्यता और निरंतर परंपरा के रूप में देखने पर जोर

समग्र समाचार सेवा
कोलकाता | 21 दिसंबर: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत ने कोलकाता में आयोजित संघ के शताब्दी समारोह के दौरान संगठन की भूमिका को लेकर चल रही राजनीतिक व्याख्याओं पर सीधी बात कही। उन्होंने कहा कि संघ को किसी राजनीतिक दल, विशेषकर भारतीय जनता पार्टी, के संदर्भ में समझने की कोशिश करना वास्तविकता से दूर ले जाता है।

भागवत ने कहा कि संघ की कार्यप्रणाली को बाहर से देखकर आंकना आसान है, लेकिन इससे उसकी मूल भावना को समझा नहीं जा सकता। उनके अनुसार, संघ को समझने के लिए उसके काम, अनुशासन और सामाजिक जुड़ाव को करीब से देखना जरूरी है, न कि तुलना या आरोपों के आधार पर राय बनाना।

“संघ की पहचान सत्ता से नहीं”
आरएसएस प्रमुख ने साफ किया कि संघ की स्थापना किसी चुनावी या राजनीतिक लक्ष्य के साथ नहीं हुई थी। उन्होंने कहा कि संगठन न तो सत्ता की प्रतिस्पर्धा करता है और न ही किसी राजनीतिक परिस्थिति की प्रतिक्रिया में बना है। इसका मुख्य उद्देश्य समाज को संगठित करना और उसे अपने दायित्वों के प्रति सजग बनाना है।

स्वयंसेवक राजनीति में, संघ नहीं
भागवत ने यह भी कहा कि संघ के स्वयंसेवक समाज के हर क्षेत्र में काम कर रहे हैं—शिक्षा, सेवा, प्रशासन और राजनीति में भी। लेकिन इससे यह निष्कर्ष निकालना कि संघ स्वयं एक राजनीतिक संगठन है, गलत होगा। उन्होंने कहा कि अलग-अलग क्षेत्रों में कार्यरत स्वयंसेवकों की पहचान को संगठन की प्रकृति से जोड़ना भ्रम पैदा करता है।

गलतफहमियों को दूर करने का प्रयास
उन्होंने बताया कि संघ को लेकर फैली धारणाओं को समझने और संवाद बढ़ाने के लिए पहले भी प्रयास किए गए हैं। उद्देश्य कभी यह नहीं रहा कि हर व्यक्ति संघ से सहमत हो, बल्कि यह कि लोग बिना पूर्वाग्रह के संघ के काम को जान सकें।

भारत को सभ्यता के रूप में देखने की अपील
अपने संबोधन के अंत में मोहन भागवत ने कहा कि भारत को केवल वर्तमान राजनीतिक ढांचे तक सीमित करके नहीं देखा जाना चाहिए। यह एक प्राचीन सभ्यता है, जो समय के साथ आगे बढ़ती रही है। समाज के प्रति जिम्मेदारी और निरंतरता की यही भावना संघ की सोच का आधार है।

कोलकाता में दिया गया यह वक्तव्य संघ की वैचारिक स्वतंत्रता और उसके गैर-राजनीतिक स्वरूप को रेखांकित करता है, जिसे लेकर लंबे समय से सार्वजनिक बहस होती रही है।

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