‘बिना जिम्मेदारी समाज नहीं चलता’ लिव-इन रिश्तों पर मोहन भागवत की टिप्पणी

RSS सरसंघचालक ने कहा कि परिवार केवल व्यक्तिगत संतुष्टि का माध्यम नहीं, बल्कि समाज की मूल इकाई है; जनसंख्या, विवाह और जिम्मेदारी पर भी रखे स्पष्ट विचार।

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  • लिव-इन रिलेशनशिप को जिम्मेदारी से बचने की प्रवृत्ति बताया
  • कहा—शादी और परिवार समाज को स्थिरता देने वाली व्यवस्था हैं
  • बच्चों की संख्या पर कोई तय फॉर्मूला नहीं, यह निजी और सामाजिक निर्णय
  • घटती जन्म दर को दीर्घकालिक सामाजिक जोखिम बताया

समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली | 21 दिसंबर: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत ने लिव-इन रिलेशनशिप और पारिवारिक जिम्मेदारी को लेकर तीखी टिप्पणी की है। रविवार को एक कार्यक्रम में उन्होंने कहा कि यदि कोई व्यक्ति जिम्मेदारी उठाने को तैयार नहीं है, तो समाज सुचारु रूप से नहीं चल सकता। उनका कहना था कि परिवार और विवाह केवल शारीरिक संतुष्टि तक सीमित नहीं हैं, बल्कि यही वह आधार है जहाँ व्यक्ति सामाजिक जीवन के मूल मूल्य सीखता है।

भागवत ने कहा कि यदि कोई विवाह नहीं करना चाहता, तो वह संन्यास का मार्ग चुन सकता है, लेकिन न विवाह करना और न ही जिम्मेदारी लेना—यह दृष्टिकोण समाज के लिए उचित नहीं है। उन्होंने जोर देकर कहा कि परिवार समाज की बुनियादी इकाई है और इसके माध्यम से ही सामाजिक अनुशासन और मूल्यों का विकास होता है।

बच्चों की संख्या पर निजी फैसला
आरएसएस प्रमुख ने स्पष्ट किया कि किसी दंपती के कितने बच्चे होने चाहिए, यह कोई सरकारी या वैचारिक आदेश नहीं हो सकता। यह निर्णय परिवार, पति-पत्नी और सामाजिक परिस्थितियों के अनुसार होना चाहिए। उन्होंने चिकित्सकों और मनोवैज्ञानिकों से मिली जानकारी का हवाला देते हुए कहा कि कम उम्र में विवाह और पर्याप्त पारिवारिक संतुलन से स्वास्थ्य और सामाजिक व्यवहार पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है।

जन्म दर और भविष्य की चुनौती
भागवत ने जनसांख्यिकी विशेषज्ञों के हवाले से कहा कि यदि जन्म दर 2.1 से नीचे जाती है, तो यह दीर्घकालिक रूप से खतरनाक स्थिति बन सकती है। उन्होंने यह भी कहा कि देश में जनसंख्या केवल बोझ नहीं, बल्कि सही नीति और प्रबंधन के साथ एक बड़ी संपत्ति हो सकती है।

उनका सुझाव था कि भारत को पर्यावरण, बुनियादी ढांचे, महिलाओं के स्वास्थ्य और सामाजिक जरूरतों को ध्यान में रखते हुए अगले 50 वर्षों के लिए ठोस जनसंख्या नीति पर काम करना चाहिए।

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