मैसी के भारत दौरे से आखिर किस चीज का प्रमोशन हुआ?
तमाशे, टिकट और तालियों के बीच जमीनी खेल विकास फिर रह गया पीछे
अजय बोकिल
अर्जेंटीना के दिग्गज फुटबॉल खिलाड़ी लियोनेल मैसी के हालिया भारत दौरे और उन्हें देखने के लिए उमड़ी भारी भीड़ से एक बात तो साफ साबित हुई कि दुनिया के लिए हम भारतीय सच्चे खेल प्रशंसक से ज़्यादा एक भीड़ हैं और भारत एक विशाल बाज़ार है, जिसका जब चाहे, जैसा चाहे दोहन किया जा सकता है। हम मैसी जैसे वर्ल्ड क्लास खिलाड़ी तैयार करने की बजाय विदेशी खिलाड़ियों की आरती उतारकर ही संतुष्ट हो जाते हैं।
भारत के पांच शहरों—कोलकाता, हैदराबाद, मुंबई, दिल्ली और जामनगर—के सद्भावना दौरे के समापन पर भले ही लियोनेल मैसी ने भारत को शानदार मेहमाननवाज़ी और प्यार के लिए ‘थैंक यू’ कहा हो, लेकिन यह दौरा हमें आत्ममंथन के लिए मजबूर करता है। क्योंकि सवाल यही है कि इस दौरे से आखिर किस चीज़ का प्रमोशन हुआ?
कई नामी भारतीय खिलाड़ियों ने भी इस प्रायोजित दौरे के औचित्य पर सवाल उठाए हैं। उनका कहना है कि इस आयोजन से भारत को हासिल क्या हुआ, सिवाय एक भव्य तमाशे के? यह दौरा कोलकाता के एक खेल प्रशंसक और इवेंट कंपनी के मालिक शतद्रु (सतलुज नदी का प्राचीन नाम) दत्ता द्वारा आयोजित किया गया था। 38 वर्षीय मैसी अमेरिकी फुटबॉल क्लब इंटर मियामी को पहली बार एमएलएस कप जिताने के बाद इस प्रमोशनल दौरे पर निकले थे।
इस दौरे को ‘GOAT इंडिया 2025’ के तहत आयोजित किया गया, जहां GOAT का मतलब ‘ग्रेटेस्ट ऑफ ऑल टाइम’ बताया गया। कोलकाता के अलावा इस दौरे में संबंधित राज्यों की सरकारों की भी भागीदारी रही। हैदराबाद में मैसी ने मुख्यमंत्री रेवंत रेड्डी के साथ एक प्रदर्शन मैच खेला और लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी से भी मुलाकात की।
मुंबई में मैसी ने महाराष्ट्र सरकार के ‘प्रोजेक्ट महादेव’ का शुभारंभ किया, जिसका उद्देश्य राज्य में जमीनी स्तर पर फुटबॉल को मजबूत करना बताया गया। दिल्ली में उनके साथ फुटबॉल खिलाड़ी लुइस सुआरेज और रोड्रिगो डी पॉल भी मौजूद थे। तीनों ने आईसीसी अध्यक्ष जय शाह, दिल्ली की मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता और डीडीसीए अध्यक्ष रोहन जेटली से मुलाकात की। जय शाह ने उन्हें टी-20 विश्व कप में आने का न्योता भी दिया।
भारत प्रवास के दौरान मैसी ‘क्रिकेट के भगवान’ सचिन तेंदुलकर और भारतीय फुटबॉल खिलाड़ी सुनील छेत्री से भी मिले। दौरे के अंत में वह जामनगर पहुंचे, जहां उन्होंने अंबानी के निजी चिड़ियाघर ‘वनतारा’ का भी दौरा किया। लेकिन पूरे दौरे में सबसे ज़्यादा चर्चा कोलकाता में हुए भारी हंगामे की रही, जिसे देश में फुटबॉल की राजधानी कहा जाता है।
कोलकाता में दर्शकों ने मैसी से समुचित मुलाकात न कराए जाने पर जमकर गुस्सा जताया और भारी तोड़फोड़ की। दर्शकों का आरोप है कि आयोजकों ने मैसी से मुलाकात के नाम पर उन्हें खुले तौर पर ठगा। साल्ट लेक स्टेडियम में आयोजित कार्यक्रम का टिकट 4,300 रुपये का था, जिसे 50 हजार से अधिक लोगों ने ब्लैक में 25 हजार रुपये तक में खरीदा। इसके बदले मैसी महज़ 10 मिनट के लिए आए, हाथ हिलाया और चले गए।
इस बवाल के राजनीतिक परिणामों को भांपते हुए और आगामी विधानसभा चुनावों को देखते हुए पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने ताबड़तोड़ डैमेज कंट्रोल की कोशिश की। उन्होंने मामले की जांच एसआईटी को सौंपी और राज्य के खेल मंत्री अरूप बिस्वास से इस्तीफा ले लिया। उधर आयोजक शतद्रु दत्ता धोखाधड़ी के आरोप में 14 दिन की पुलिस हिरासत में हैं।
लेकिन बड़ा सवाल यही है कि मैसी के इस दौरे के पीछे असली मकसद क्या था? क्या यह भारत में फुटबॉल को नए सिरे से लोकप्रिय बनाने का कोई गंभीर अभियान था, या फिर ‘ग्रेट प्लेयर टूरिज्म’ का नया दिखावटी प्रयोग? या फिर नामी खिलाड़ियों के ज़रिये भारतीयों की जेब ढीली करवाने का एक और तरीका?
GOAT दौरे के आयोजक शतद्रु दत्ता के बारे में कहा जाता है कि वे इवेंट मैनेजमेंट कंपनी चलाते हैं, खेलों के शौकीन हैं और इससे पहले भी ऐसे आयोजन कर चुके हैं। उन्हें पूर्व भारतीय क्रिकेट कप्तान सौरव गांगुली का करीबी भी बताया जाता है। उनकी व्यक्तिगत संपत्ति का खुलासा अभी नहीं हुआ है, लेकिन मैसी के इस दौरे में अरबों रुपये के लेन-देन हुए, इसमें कोई संदेह नहीं।
भारत में फुटबॉल का इतिहास डेढ़ सौ साल से भी पुराना है। देश का पहला फुटबॉल क्लब 1872 में कोलकाता में पंजीकृत हुआ था। इसके बावजूद फुटबॉल का विकास उस स्तर तक कभी नहीं पहुंच पाया, जिसकी अपेक्षा थी। 1948 के लंदन ओलंपिक में भारतीय फुटबॉल टीम नंगे पैर मैदान में उतरी थी, क्योंकि उसके पास ज़रूरी जूते तक नहीं थे। बाद में इसी कारण टीम पर प्रतिबंध भी लगाया गया।
आज भारत में फुटबॉल एक लोकप्रिय खेल है और देश में 122 फुटबॉल स्टेडियम मौजूद हैं, लेकिन खेल का स्तर बेहद कमजोर है। फीफा वर्ल्ड रैंकिंग में भारत 142वें स्थान पर है। भारतीय टीम न तो फीफा वर्ल्ड कप और न ही एशिया कप के लिए नियमित रूप से क्वालिफाई कर पाती है।
GOAT इंडिया आयोजन पर कुल कितनी राशि खर्च हुई, यह तो जांच के बाद ही सामने आएगा, लेकिन यह जानकर हैरानी होती है कि भारत सरकार ने पिछले साल फुटबॉल के लिए केवल 8.78 करोड़ रुपये का बजट रखा था। इसमें से भी अखिल भारतीय फुटबॉल महासंघ पूरे साल में महज़ 4 करोड़ रुपये ही खर्च कर पाया, जबकि मैसी के एक दौरे पर इससे कई गुना अधिक राशि खर्च हो गई।
इसमें कोई शक नहीं कि लियोनेल मैसी दुनिया के महानतम फुटबॉल खिलाड़ियों में से एक हैं। वह अब तक 46 टीम ट्रॉफियां जीत चुके हैं और करीब 600 मिलियन डॉलर की संपत्ति के मालिक हैं। वे परोपकारी भी हैं, हालांकि अर्जेंटीना में अपने पिता के साथ टैक्स फ्रॉड के मामले में फंस चुके हैं।
बेहतर होता कि मैसी के नाम पर यह महंगा तमाशा करने की बजाय यही पैसा भारत में फुटबॉल के जमीनी स्तर के विकास पर खर्च किया जाता। क्रिकेट की तर्ज पर एक व्यापक फुटबॉल नेटवर्क खड़ा कर ग्रामीण प्रतिभाओं को तराशने और उन्हें राष्ट्रीय टीम तक पहुंचाने का ठोस कार्यक्रम बनाया जाता। गांव-गांव में फुटबॉल क्लब और अकादमियां खोलकर स्थानीय, राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर नियमित टूर्नामेंट आयोजित किए जाते।
ऐसा नहीं है कि भारत में कुछ भी नहीं हो रहा, लेकिन जो हो रहा है, वह बेहद नाकाफी है। यही वजह है कि मैसी के इस प्रायोजित दौरे की कई नामी भारतीय खिलाड़ियों ने खुलकर आलोचना की। ओलंपिक स्वर्ण पदक विजेता शूटर अभिनव बिंद्रा ने सवाल उठाया कि क्या हम एक समाज के रूप में खेल संस्कृति बना रहे हैं या किसी दूसरे देश की खेल शख्सियत का उत्सव मना रहे हैं?
ओलंपियन पहलवान विनेश फोगाट ने कहा कि उन्हें उम्मीद है कि कोई ऐसा वक्त आएगा, जब हम सिर्फ एक दिन के लिए नहीं, बल्कि हर दिन खेल के लिए जागेंगे। भारतीय फुटबॉल टीम के पूर्व कप्तान बाइचुंग भूटिया ने भी कोलकाता आयोजन की तीखी आलोचना की।
सवाल यह भी है कि हमने भले ही मैसी को भारत बुला लिया हो, लेकिन क्या अर्जेंटीना ने कभी किसी नामी भारतीय खिलाड़ी को इसी तरह बुलाकर सम्मानित किया? वहां क्रिकेट नहीं खेला जाता, लेकिन क्या कोई भारतीय हॉकी या अन्य खेलों का खिलाड़ी इस लायक भी नहीं समझा गया?
दरअसल, जहां वैश्विक स्तर के खिलाड़ी तैयार किए जाते हैं, वहां ऐसे तमाशों की जगह ठोस और दीर्घकालिक काम को प्राथमिकता दी जाती है। वहां की जनता भी तमाशबीन बनने की बजाय नायक पैदा करने में भरोसा करती है। बेहतर तो यही होता कि मैसी जैसे महान खिलाड़ी को भारतीय फुटबॉल खिलाड़ियों के लिए कोच या मार्गदर्शक की भूमिका में जोड़ा जाता।