जस्टिस स्वामीनाथन के खिलाफ महाभियोग पर पूर्व जजों की आपत्ति
36 पूर्व न्यायाधीशों ने महाभियोग प्रस्ताव की निंदा की, संसद और आम जनता से सुरक्षा और स्वतंत्रता सुनिश्चित करने की अपील की
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36 पूर्व जजों ने महाभियोग की कोशिश को लोकतंत्र और न्यायपालिका की स्वतंत्रता पर हमला बताया
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पूर्व न्यायाधीशों का कहना है कि जजों को राजनीतिक दबाव में काम करने के लिए मजबूर करना संविधान की भावना के खिलाफ है
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जस्टिस स्वामीनाथन के आदेश के बाद डीएमके सांसदों ने महाभियोग प्रस्ताव शुरू किया
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पूर्व जजों ने जनता, सांसदों और वकीलों से इस खतरनाक प्रवृत्ति का विरोध करने की अपील की
समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली | 20 दिसंबर: 36 पूर्व न्यायाधीशों ने मद्रास हाईकोर्ट के जस्टिस जी. आर. स्वामीनाथन के खिलाफ महाभियोग लाने की विपक्षी कोशिश की कड़ी निंदा की है। उनका कहना है कि यह कदम न्यायपालिका की स्वतंत्रता और संविधान के लोकतांत्रिक मूल्यों पर सीधा हमला है। पूर्व जजों ने संसद, वकीलों, नागरिक समाज और आम जनता से इस कदम की खुलकर निंदा करने और विरोध करने की अपील की।
संयुक्त बयान में पूर्व न्यायाधीशों ने कहा कि अगर महाभियोग की यह प्रवृत्ति आगे बढ़ी, तो न्यायाधीशों को राजनीतिक और वैचारिक दबाव में फैसले लेने के लिए मजबूर किया जाएगा, जो संविधान की मूल भावना के खिलाफ है। उन्होंने जोर देकर कहा कि न्यायपालिका में फैसलों की समीक्षा केवल अपील और कानूनी प्रक्रिया के माध्यम से होती है, महाभियोग की धमकियों से नहीं।
पूर्व न्यायाधीशों ने यह भी चेतावनी दी कि यह कोई नई घटना नहीं है। उन्होंने 2018 में तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा के खिलाफ और बाद में सीजेआई रंजन गोगोई, एस. ए. बोबड़े और डी. वाई. चंद्रचूड़ के खिलाफ महाभियोग प्रयासों का उल्लेख किया। वर्तमान में सीजेआई जस्टिस सूर्यकांत पर हो रहे हमलों को भी इस प्रवृत्ति का हिस्सा बताया।
क्या है स्वामीनाथन मामले की पृष्ठभूमि?
1 दिसंबर को जस्टिस स्वामीनाथन ने आदेश दिया था कि तमिलनाडु के अरुलमिघु सुब्रमणिया स्वामी मंदिर में दीपथून के दौरान दीप जलाना मंदिर की जिम्मेदारी है। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि इससे पास स्थित दरगाह या मुस्लिम समुदाय के अधिकारों का उल्लंघन नहीं होता। इसके बाद विवाद पैदा हुआ और 9 दिसंबर को डीएमके सांसदों ने लोकसभा अध्यक्ष को नोटिस देकर महाभियोग प्रक्रिया शुरू करने की मांग की।
पूर्व जजों ने कहा कि लोकतंत्र में जजों की स्वतंत्रता सुरक्षित रहनी चाहिए, और संसद या किसी राजनीतिक दल द्वारा किसी फैसले को डराने या प्रभावित करने का प्रयास संविधान के खिलाफ है। उन्होंने जनता और नागरिक संगठनों से इस तरह की कोशिशों का विरोध करने और न्यायपालिका की स्वतंत्रता बनाए रखने की अपील की।