डॉ कल्पना बोरा
ज्ञात हुआ, पिछले दिनों एक छात्रा अपने सहपाठी से पूछ रही थी – तुम्हारे हिंदू धर्म में इतने सारे भगवान क्यों ? वानर-मुख, हाथी-मुख भगवान क्यों? वह सहपाठी उत्तर नहीं दे पाई! कथित रूप से, भारत के आदिवासी क्षेत्रों में हिंदुओं को लुभावने और झूठे-प्रचार से अन्य धर्मों में परिवर्तित किया जा रहा है, जैसे भगवान राम की मूर्ति पानी में डूब जाती है (उन्होंने इसे धातु से बनाया), जबकि अन्य धर्मों के भगवान की नहीं (उन्होंने इसे लकड़ी से बनाया)। खुद को श्रेष्ठ साबित करने की कोशिश में दूसरों को गलत साबित करने की आवश्यकता नहीं। किंतु आत्मसम्मान और आत्म-गौरव का गहन ज्ञान होना चाहिए -“स्व-बोध” आवश्यक है, हम कौन और क्या हैं। तभी हम अपने जीवन को सम्मानपूर्वक, गर्व और स्वाभिमान सहित जी सकेंगे”
माता-पिता की भूमिका
यदि माता-पिता स्वयं सनातन धर्म (हिंदुत्व) के मूल्यों को गहराई से न समझें और उन पर गर्व ही न करें, तो वे अपने बच्चों को कैसे उनका बोध तथा पालन कैसे करवा सकेंगे? यही कारण है कि लाखों हिंदू अवैध-तरीकों द्वारा अन्य धर्मों में परिवर्तित किए जा रहे हैं। यदि हम अपने बच्चों और युवाओं को हमारी प्राचीन भारतीय संस्कृति के पीछे के वैज्ञानिक तर्कों को समझा सकें, तो वे इसे पसंद करेंगे और अपने जीवन में उसका अनुसरण भी करेंगे ।आज की तेजी से चलने वाली प्रतिस्पर्धी दुनिया में, क्या किसी बच्चे के लिए वेद, उपनिषद, पुराण, संहिताएँ , गीता, रामायण, महाभारत, महाभागवत पुराण आदि सभी प्राचीन ग्रंथ पूर्णतः पढ़ना संभव है?
नहीं। तो, क्या करें?
हमारे शास्त्रों में, प्रत्येक व्यक्ति और समाज के हर वर्ग का स्व-धर्म अच्छी तरह परिभाषित है। ग्रंथ पढ़ना, रचना करना ऋषि-मुनि, किसी ज्ञानवान व्यक्ति, संस्कृत-पंडित, धर्म-गुरुओं आदि का धर्म है। यदि कोई इन सभी को न भी पढ़ सके (क्योंकि यह कलियुग है), असम के महान संत श्रीमंत शंकरदेव जी ने कहा – “केवल हरि नाम का जाप और भागवत महापुराण पढ़ना पर्याप्त होगा और यह हमें मोक्ष की ओर ले जाएगा।” हर अवधारणा का एक सिद्धांत भाग होता है, और एक व्यावहारिक भाग। हमें हजारों प्राचीन ग्रंथों से ज्ञान-विज्ञान-प्रज्ञा का सार निकाल इसे अपने दैनिक जीवन में व्यावहारिक रूप से लागू करना चाहिए। सांसारिक लोगों के लिए, हरि नाम का जाप, रामायण, भागवत महापुराण पढ़ना पर्याप्त होना चाहिए। हालांकि, यदि कोई भक्त वेद, पुराण, उपनिषद, गीता आदि को पूर्ण रूप से पढ़ और समझ सके – तो ‘सोने पे सुहागा’!
सरल भाषा में आज के युवाओं के लिए हिंदुत्व
माता-पिता और बुजुर्गों को हिंदुत्व के कुछ बुनियादी-मूल्यों को समझना चाहिए, जो दुनिया का एकमात्र धर्म है (बाकी सब विश्वास या संप्रदाय हैं; धर्म और religion एक नहीं ), जो भूमि, वायुमंडल, आकाश, पाताल द्वारा धारण किया जाता है – सनातन धर्म स्थान-काल की सीमाओं को पार करता है, जो पूरे विश्व की शांति और कल्याण की प्रार्थना करता है। इसलिए, आइए सनातन धर्म/हिंदुत्व के कुछ मूल्यों को सरल-अनुकरणीय प्रणाली में समझें – जोकि घरों में रामायण, भागवत पुराण पढ़ने और अनुभवजन्य शिक्षा से ग्रहण किया गया हो तथा हमारी दैनिक-जीवन में देखा जाता है:
1. हमारे हनुमान जी वानर-मुख वाले हैं – प्राचीन काल में वन्यमानव (हनुमान जी) और नगरवासियों (भगवान राम) के बीच पूर्ण सामंजस्य था, और यह हमें वन (जंगलों) की रक्षा सिखाता है। साथ ही, वानरों के गुणों – चपलता, बुद्धिमत्ता को हमें अपने जीवन में अपनाना चाहिए। हमारे भगवान गणेश हाथी मुख वाले हैं – हाथी बहुत बुद्धिमान और कुलीन होता है, और उनसे हमें जीवन में हाथी के इन गुणों को अपनाने की शिक्षा मिलती है । हमारे पास इतने सारे भगवान हैं जो एक परम भगवान (ब्रह्म) से सृजित हैं, उन सबके अपने विशेष गुण हैं, वे सभी अद्वितीय और भिन्न हैं।
2. हम भगवान कृष्ण, राम, शिव, गणेश, देवी सरस्वती, लक्ष्मी, दुर्गा और कई अन्य भगवानों की पूजा करते हैं, क्योंकि हम उनके उपदेशों का सम्मान करते हैं, न कि केवल इसलिए कि वे हमें मोक्ष दिलाएँगे। हमारे गणेश-भगवान बुद्धि के प्रतीक, कृष्ण – कर्म और ज्ञान, राम – मर्यादा पुरुषोत्तम, लक्ष्मी – समृद्धि की देवी, सरस्वती – विद्या की देवी, दुर्गा – अधर्मियों का नाश करने वाली देवी आदि हैं । इसके अतिरिक्त, हम कभी नहीं कहते कि केवल हमारे भगवान ही मोक्ष दिला सकते हैं, और इसलिए हम कभी अन्य धर्मों के लोगों को हिंदू धर्म में जबरन परिवर्तित करने की माँग नहीं करते।
3. एकं अहं बहुस्याम्’ (छांदोग्य उपनिषद्) : मैं (ब्रह्म, परम प्रभु) ही एकमात्र हूँ , मुझसे सभी प्राणी सृजित हुए हैं। हमारे सभी भगवान एक ब्रह्म से सृजित हैं, और इस तरह एक ही हैं – विविधता में एकता। यह विश्व की सृष्टि (बिग बैंग) की भी व्याख्या करता है। प्रभु ‘नानत्व’ के रूप में प्रकट होते हैं, नाना का अर्थ – कोई दो समान नहीं, प्रत्येक अद्वितीय है। ‘एकमेव द्वितीयो नास्ति’ – अर्थात, कोई दो प्राणी समान नहीं हैं। हम सभी जैविक रूप से एक-दूसरे से जुड़े हैं, जैसे एक वृक्ष की शाखाएँ वृक्ष से अलग नहीं हो सकतीं। इसलिए, हमें अपने सभी साथी मनुष्यों से प्रेम और सबका सम्मान करना चाहिए।
4. सनातन का अर्थ है : जो हमेशा रहता है, शाश्वत है, अनादि है। वाल्मीकि रामायण कम से कम 9,000 वर्ष पुरानी है (वाल्मीकि रामायण में उल्लिखित ग्रहों और नक्षत्रों की स्थिति के अनुसार)। और हमारी संस्कृति इससे भी कहीं अधिक पुरानी है। सनातन धर्म सत्य, न्याय, दान, करुणा और त्याग का पालन करने का जीवन-पथ है। हिंदुत्व विचारधाराओं, ज्ञान का विकास है, इसमें कोई एकल नियम-पुस्तक नहीं है। हिंदुत्व केवल मंदिर जाना और तिलक लगाना नहीं है – यह ज्ञान, विचारधारा, बुद्धि, प्रज्ञा, ज्ञान का प्रवाह है जो सभी को एकजुट करता है, विविधता (नाना) का सम्मान करता है।
5. माता भूमिः पुत्रोऽहं पृथिव्याः (अथर्ववेद के भूमि सूक्त ) : भूमि मेरी माता है, और मैं उसका पुत्र/पुत्री। और यही कारण है कि हमें पृथ्वी-माता और उसके पर्यावरण की रक्षा करनी चाहिए। माँ और मातृभूमि दोनों को स्वर्ग से भी ऊँचा स्थान दिया जाता है, क्योंकि हमने स्वर्ग को कभी देखा नहीं है! और इसलिए, रामायण में ऋषि वाल्मीकि ने सही लिखा – ‘जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी।’
6. धर्म और राजनीति को अलग नहीं किया जा सकता, और धर्म और विकास को भी अलग नहीं किया जा सकता। यही कारण है कि हम भगवान राम की पूजा करते हैं, जिन्होंने अपने सभी कार्यों और क्रियाओं में धर्म का पालन किया। रामायण में इतने सारे आदर्श हैं, जिन्होंने अपना स्व-धर्म का पालन किया। जब हम पुत्र, भाई, पति, मित्र, राजा के व्यवहार की बात करते हैं, तो हम मर्यादा-पुरुषोत्तम भगवान राम की ओर देखते हैं। माता कौशल्या, राम, लक्ष्मण, भरत, माता सीता, हनुमान, सुग्रीव – सभी ने अपना धर्म पालन किया। ऐसे भगवान राम हमारे आदर्श हैं, जो हमारे संस्कार और आचार (कार्य, व्यवहार) को परिभाषित करते हैं, और हमारा चरित्र उसी आदर्श जैसा बनता है जिसका हम अनुसरण करते हैं।
7. भगवान महावीर ने सह-अस्तित्व की बात की : भारतीय संस्कृति कभी दूसरों का शोषण और अतिक्रमण सिखाती नहीं। हम सह-अस्तित्व में विश्वास करते हैं, न कि प्रतिस्पर्धा में। हम स्थिरता और संतोष में विश्वास करते हैं। हम सभी की शांति और कल्याण में विश्वास करते हैं (विश्व का कल्याण हो, वसुधैव कुटुम्बकम्, सर्वे भवन्तु सुखिनः)।
8. आनो भद्राः क्रतवो यन्तु विश्वतो (ऋग्वेद) : सभी दिशाओं से अच्छे विचार हम तक आएँ विचारों के प्रति यह खुलापन सनातन धर्म, हमारी संस्कृति और लोकतंत्र का मूल है।
9. सनातन धर्म अभ्युदय (कल्याण, सूर्योदय, उत्थान) में विश्वास करता है : और अभ्युदय के माध्यम से हम मोक्ष प्राप्त कर सकते हैं।
10. अहिंसा परमो धर्मः, धर्मः हिंसा तथैव च (महाभारत) : अहिंसा हमारा धर्म है (भगवान बुद्ध), लेकिन अधर्मियों का नाश करना भी धर्म है। एक हाथ से हमारे देवी-देवता आशीर्वाद देते हैं, और दूसरे हाथ में उनके पास धर्म की रक्षा के लिए कोई न कोई शस्त्र है।
11. आज, दुनिया में सभी संघर्षों का मूल कारण यह है कि “सभी अपने तरीके को सही ठहराना चाहते हैं”। केवल मैं सही हूँ , अन्य गलत हैं। लेकिन हिंदुत्व कहता है- “एकं सत् विप्राः बहुधा वदन्ति”, अर्थ – एक सत्य को विभिन्न लोग विभिन्न तरीकों से कह सकते हैं।
12. स्वामी विवेकानंद ने कहा – “हम सहिष्णु नहीं हैं।” हम किसी अन्य धर्म को सहन नहीं करते, हम अन्य धर्मों को सत्य के रूप में स्वीकार करते हैं।” सहिष्णु बनना असहायता है।
13. उद्यमेन ही सिद्ध्यन्ति कार्याणि न मनोरथा (हितोपदेश) : प्रयास से कार्य सिद्ध होते हैं, न कि केवल इच्छाओं से, और कड़ी मेहनत का कोई शॉर्टकट नहीं है।
14. कृण्वन्तो विश्वं आर्यं (ऋग्वेद) : आइए इस दुनिया को एक महान स्थान बनाएँ । आर्य शब्द का अर्थ – जो अपने गुणों को बढ़ाता है, चरित्र और व्यक्तित्व का निर्माण करता है, मन और बुद्धि में सर्वश्रेष्ठ बनता है और फिर राष्ट्र की सेवा के लिए समर्पित होता है। जो सर्वश्रेष्ठ होने पर भी राष्ट्र की सेवा में समर्पित होता है, वही आर्य है।
सनातन धर्म में ज्ञान अनंत है। यह निरंतर अनुसंधान और नई ज्ञान व विज्ञान की खोज का मार्ग भी प्रशस्त करता है। इस प्रकार, यदि हमारे युवा उपरोक्त गुणों और सनातन धर्म के सार को आत्मसात कर सकें और अपने जीवन में उनका पालन करें, तो यह वास्तव में उनके जीवन में शांति, खुशी और सफलता ला सकता है, और राष्ट्र-निर्माण में योगदान दे सकता है।