भारत ने पॉक्सो के लंबित मामलों का बोझ किया कम
न्यायिक प्रणाली में ऐतिहासिक मोड़, 2025 में पॉक्सो मामलों की निपटान दर 109 प्रतिशत तक पहुंची
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वर्ष 2025 में 80,320 पॉक्सो मामले दर्ज, जबकि 87,754 मामलों का निपटारा हुआ
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देशभर में पॉक्सो मामलों की निपटान दर 109 प्रतिशत, 24 राज्यों में 100 प्रतिशत से अधिक
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सभी लंबित मामलों को चार साल में खत्म करने के लिए 600 अतिरिक्त ई-पॉक्सो अदालतों की सिफारिश
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पांच साल से ज्यादा पुराने लंबित मामलों में उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र और पश्चिम बंगाल की सबसे बड़ी हिस्सेदारी
समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली | 19 दिसंबर: भारत की न्यायिक व्यवस्था में बच्चों के यौन शोषण से जुड़े मामलों को लेकर एक ऐतिहासिक बदलाव सामने आया है। पहली बार ऐसा हुआ है जब एक ही वर्ष में दर्ज किए गए पॉक्सो मामलों से अधिक मामलों का निपटारा किया गया। सेंटर फॉर लीगल एक्शन एंड बिहेवियर चेंज फॉर चिल्ड्रन (सी-लैब) की रिपोर्ट ‘पेंडेंसी टू प्रोटेक्शन’ के अनुसार वर्ष 2025 में देशभर में 80,320 पॉक्सो मामले दर्ज हुए, जबकि 87,754 मामलों का निपटारा किया गया। इससे निपटान दर 109 प्रतिशत तक पहुंच गई है।
रिपोर्ट के मुताबिक 24 राज्यों में पॉक्सो मामलों की निपटान दर 100 प्रतिशत से अधिक रही है, जो यह संकेत देती है कि न्यायिक व्यवस्था अब केवल लंबित मामलों को संभाल नहीं रही, बल्कि उन्हें सक्रिय रूप से कम करने की दिशा में आगे बढ़ रही है। वर्ष 2023 तक देश में पॉक्सो के 2,62,089 मामले लंबित थे, जिसे लेकर अक्सर “तारीख पर तारीख” की आलोचना होती रही है।
हालांकि रिपोर्ट ने कुछ गंभीर चिंताओं की ओर भी इशारा किया है। लगभग आधे लंबित मामले दो साल से अधिक समय से अटके हुए हैं। पांच साल से ज्यादा पुराने लंबित मामलों में उत्तर प्रदेश की हिस्सेदारी 37 प्रतिशत के साथ सबसे अधिक है, जबकि महाराष्ट्र (24 प्रतिशत) और पश्चिम बंगाल (11 प्रतिशत) इसके बाद हैं। कुल मिलाकर तीन-चौथाई से अधिक पुराने मामले इन्हीं तीन राज्यों में केंद्रित हैं।
रिपोर्ट में सभी लंबित पॉक्सो मामलों को चार वर्षों में समाप्त करने के लिए 600 अतिरिक्त ई-पॉक्सो अदालतें स्थापित करने की सिफारिश की गई है। इसके लिए करीब 1,977 करोड़ रुपये के प्रावधान की जरूरत बताई गई है, जिसमें निर्भया फंड के उपयोग का सुझाव भी दिया गया है।
इंडिया चाइल्ड प्रोटेक्शन के निदेशक (शोध) पुरुजीत प्रहराज ने कहा कि जब दर्ज मामलों से अधिक मामलों का निपटारा होता है, तो यह केवल आंकड़ों की उपलब्धि नहीं, बल्कि बच्चों के न्याय व्यवस्था पर भरोसे की वापसी है। उन्होंने जोर देकर कहा कि न्याय में हर दिन की देरी बच्चों के मानसिक आघात को और गहरा करती है।
रिपोर्ट में यह भी सुझाव दिया गया है कि राज्यों को हर वर्ष 100 प्रतिशत से अधिक निपटान दर बनाए रखनी चाहिए। साथ ही तकनीकी और प्रशासनिक सहयोग बढ़ाने, दोषसिद्धि व बरी होने की दरों की नियमित निगरानी और एआई आधारित कानूनी शोध व दस्तावेज प्रबंधन प्रणालियों के उपयोग पर भी बल दिया गया है। यह रिपोर्ट 2 दिसंबर 2025 तक उपलब्ध एनजेडीजी, एनसीआरबी और संसदीय आंकड़ों के विश्लेषण पर आधारित है।