बांग्लादेश में हिंदू युवक की पीटकर हत्या, फिर शव को पेड़ पर लटकाकर लगाई आग
दिल दहला देने वाली घटना से उठे सवाल, अंतरिम सरकार की अपीलों के बावजूद अल्पसंख्यक असुरक्षित
- बांग्लादेश में हिंदू युवक दीपू चंद्र दास की पीट-पीटकर हत्या।
- हत्या के बाद शव को पेड़ पर लटकाकर आग लगा दी गई।
- हिंसा के बीच यूनुस सरकार ने बयान जारी कर निंदा की।
- भारत में बांग्लादेश सरकार की कानून-व्यवस्था पर गंभीर सवाल।
समग्र समाचार सेवा
ढाका | 19 दिसंबर: बांग्लादेश में हिंदू युवक की हत्या ने एक बार फिर यह सवाल खड़ा कर दिया है कि क्या पड़ोसी देश में अल्पसंख्यक सुरक्षित हैं। मैमनसिंह जिले में एक हिंदू युवक को भीड़ ने बेरहमी से पीट-पीटकर मार डाला और फिर उसके शव को पेड़ पर लटकाकर आग के हवाले कर दिया। यह घटना ऐसे समय सामने आई है जब देश पहले से ही राजनीतिक हिंसा और अराजकता की आग में झुलस रहा है।
जानकारी के अनुसार, मृतक की पहचान 30 वर्षीय दीपू चंद्र दास के रूप में हुई है, जो मैमनसिंह के भालुका उपजिला में एक निजी फैक्ट्री में काम करता था। आरोप है कि फैक्ट्री में आयोजित एक कार्यक्रम के दौरान उस पर इस्लाम और पैगंबर मुहम्मद के अपमान की अफवाह फैलाई गई, जिसके बाद उग्र भीड़ ने उस पर हमला कर दिया।
स्थानीय प्रत्यक्षदर्शियों और बांग्लादेशी मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, गुस्साई भीड़ ने पहले दीपू चंद्र दास को बेरहमी से पीटा, फिर उसके शव को पेड़ से लटकाया और अंत में आग लगा दी। इस अमानवीय घटना ने पूरे इलाके में दहशत फैला दी।
यह घटना ऐसे वक्त हुई है जब बांग्लादेश में इंकलाब मंच के छात्र नेता शरीफ उस्मान हादी की मौत के बाद कई शहरों में हिंसा भड़क चुकी है। राजधानी ढाका समेत कई इलाकों में आगजनी, सरकारी संपत्तियों को नुकसान और ऐतिहासिक इमारतों पर हमले किए गए हैं।
मोहम्मद यूनुस के नेतृत्व वाली अंतरिम सरकार ने इस हिंदू युवक की हत्या की निंदा तो की है, लेकिन भारत और अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संगठनों में यह सवाल उठ रहा है कि केवल बयान जारी करना काफी है या नहीं। बांग्लादेश सरकार ने कहा कि “नए बांग्लादेश में हिंसा के लिए कोई जगह नहीं है”, लेकिन जमीनी हकीकत इसके उलट नजर आ रही है।
भारत में विशेषज्ञों का कहना है कि बांग्लादेश में हिंदुओं पर लगातार हो रहे हमले वहां की प्रशासनिक विफलता और कट्टरपंथी तत्वों के बढ़ते प्रभाव को दर्शाते हैं। बार-बार हिंसा की घटनाएं यह साबित करती हैं कि अंतरिम सरकार अल्पसंख्यकों की सुरक्षा सुनिश्चित करने में नाकाम रही है।