कोलकाता अग्निकांड: बीजेपी का टीएमसी पर साजिश का आरोप, अवैध घुसपैठ

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पूनम शर्मा
न्यू टाउन, कोलकाता स्थित घुनी झुग्गी बस्ती में लगी भीषण आग ने सैकड़ों परिवारों को बेघर कर दिया। सौ से अधिक झोपड़ियां जलकर राख हो गईं। लेकिन इस मानवीय त्रासदी के तुरंत बाद मामला सिर्फ राहत और पुनर्वास तक सीमित नहीं रहा, बल्कि यह पश्चिम बंगाल की राजनीति का एक बड़ा मुद्दा बन गया। भारतीय जनता पार्टी ने इस अग्निकांड को लेकर ममता बनर्जी सरकार पर गंभीर आरोप लगाए हैं। बीजेपी का दावा है कि यह आग एक “राजनीतिक रूप से असहज सच्चाई” को उजागर कर सकती थी, इसलिए राज्य सरकार जानबूझकर मामले को दबाने की कोशिश कर रही है।

बीजेपी का आरोप: सच्चाई छुपाने की कोशिश

बीजेपी नेताओं का कहना है कि घुनी झुग्गी बस्ती में बड़ी संख्या में अवैध बांग्लादेशी नागरिक रह रहे हैं। पार्टी के अनुसार, आग के बाद यदि निष्पक्ष जाँच  और सत्यापन होता, तो कई ऐसे नाम सामने आ सकते थे जिनके पास वैध भारतीय दस्तावेज नहीं हैं। बीजेपी का आरोप है कि स्थानीय प्रशासन ने न तो पूरी सूची तैयार की और न ही प्रभावित परिवारों की नागरिकता से जुड़े सवालों को गंभीरता से लिया। पार्टी इसे वोट बैंक की राजनीति से जोड़कर देख रही है।

SIR और आग का समय

इस पूरे विवाद को विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) प्रक्रिया से जोड़कर देखा जा रहा है। यह प्रक्रिया मतदाता सूची की शुद्धता सुनिश्चित करने के लिए चल रही है। बीजेपी का दावा है कि जैसे ही अवैध नामों की पहचान का दबाव बढ़ा, वैसे ही यह आग लगने की घटना सामने आई। बीजेपी नेताओं के अनुसार, आग के बाद यदि पहचान और दस्तावेजों की जांच होती, तो कई “असुविधाजनक तथ्य” उजागर हो सकते थे।

टीएमसी का पलटवार

तृणमूल कांग्रेस ने बीजेपी के आरोपों को सिरे से खारिज किया है। टीएमसी का कहना है कि बीजेपी एक दुखद घटना को सांप्रदायिक और राजनीतिक रंग देने की कोशिश कर रही है। पार्टी नेताओं के अनुसार, न्यू टाउन क्षेत्र में देश के अलग-अलग हिस्सों से आए श्रमिक रहते हैं, और बिना ठोस प्रमाण किसी को अवैध घुसपैठिया कहना अमानवीय है।

एक आग, कई सवाल

घुनी अग्निकांड ने एक बार फिर पश्चिम बंगाल में अवैध घुसपैठ, मतदाता सूची और शासन की पारदर्शिता पर बहस छेड़ दी है। यह सिर्फ एक आग नहीं, बल्कि एक ऐसा मुद्दा बन गया है जिसने राज्य और केंद्र की राजनीति को आमने-सामने खड़ा कर दिया है।

निष्कर्ष

राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप के बीच असली पीड़ित वे परिवार हैं, जिन्होंने सब कुछ खो दिया। लेकिन यह भी सच है कि यह घटना राज्य की राजनीति में लंबे समय तक गूंजती रहेगी। घुनी की आग बुझ गई हो सकती है, पर उससे उठे सवाल अभी जल रहे हैं।

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