शिक्षकों हेतु उत्कृष्टता का नया प्रतिमान: हंसराज कॉलेज, दिल्ली में प्रो. एम.एम. गोयल द्वारा प्रस्तुत गीता-प्रेरित नीडोनॉमिक्स
एफआईपी कार्यक्रम में बोले प्रो. गोयल— शिक्षा केवल आजीविका नहीं, जीवन को अर्थ और संतोष देने का माध्यम
प्रो. मदन मोहन गोयल
नई दिल्ली | 18 दिसंबर: नीडोनॉमिक्स विचारधारा के प्रवर्तक, तीन बार कुलपति रह चुके तथा कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के सेवानिवृत्त प्रोफेसर प्रो. मदन मोहन गोयल ने फैकल्टी इंडक्शन प्रोग्राम (FIP) के दौरान दो व्याख्यान दिए “परिवर्तित आर्थिक परिदृश्य में शिक्षकों के लिए उत्कृष्टता के मॉडल” तथा“भारतीय ज्ञान प्रणाली: गीता-निर्देशित नीडोनॉमिक्स और अनु-गीता की प्रासंगिकता”।
यह एफआईपी महात्मा हंसराज मालवीय मिशन शिक्षक प्रशिक्षण केंद्र (एम.एच.–एमएमटीटीसी), हंसराज कॉलेज द्वारा मिरांडा हाउस, दिल्ली विश्वविद्यालय के सहयोग से आयोजित किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता डॉ. अशुतोष यादव, निदेशक, एम.एच.–एमएमटीटीसी ने की।
एफआईपी की समन्वयक डॉ. ऋतु पांडेय ने स्वागत भाषण दिया तथा उच्च शिक्षा में प्रो. एम.एम. गोयल के विशिष्ट अकादमिक योगदान और नेतृत्व को रेखांकित करते हुए प्रशस्ति-पत्र प्रस्तुत किया।
प्रो. गोयल ने कहा कि गीता के अनुसार वास्तविक बुद्धिमान वही है जो “कर्म में अकर्म और अकर्म में कर्म” को देख सके, तथा अहंकार, आसक्ति और कर्मफल से मुक्त रहकर अपने कर्तव्य का पालन करे।
उन्होंने हितोपदेश में वर्णित प्राकृतिक क्रम को पुनः स्थापित करने की आवश्यकता पर बल दिया—ज्ञान से विनय, विनय से पात्रता, पात्रता से धन, धन से धर्म और धर्म से सुख। प्रो. गोयल ने स्पष्ट किया कि नीडोनॉमिक्स शिक्षकों, शैक्षणिक संस्थानों और नीति-निर्माताओं से शिक्षा के वास्तविक उद्देश्य को पुनर्जीवित करने का आह्वान करता है—केवल आजीविका कमाने के लिए नहीं, बल्कि जीवन को अर्थपूर्ण और संतोषजनक बनाने के लिए।
प्रो. गोयल ने कहा कि वास्तविक प्रतिभा वही है जो यह सही ढंग से पहचान सके कि क्या करना चाहिए और क्या नहीं करना चाहिए।
उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि शिक्षकों को धरातल से जुड़े, विनम्र, संवेदनशील और संतुलित रहना चाहिए, साथ ही स्ट्रीट स्मार्ट भी होना चाहिए—सरल , नैतिक , कर्मोन्मुख , संवेदनशील और पारदर्शी ।
उन्होंने यह भी कहा कि मूल्यों से प्रेरित एक सामान्य व्यक्ति उस तथाकथित प्रतिभाशाली व्यक्ति से कहीं श्रेष्ठ है जो दूसरों को नुकसान पहुँचाता है।
प्रो. गोयल ने आगे गीता-प्रेरित नीडोनॉमिक्स की व्याख्या की, जो नैतिक आचरण, पर्यावरणीय मित्रता और आध्यात्मिकता पर आधारित है।
भारतीय जीवन बीमा निगम (LIC) के आदर्श वाक्य “योगक्षेमं वहाम्यहम्” (गीता 9.22) से प्रेरणा लेते हुए उन्होंने कहा कि नीडोनॉमिक्स एक सामान्य-बुद्धि पर आधारित, मानव-केंद्रित दृष्टिकोण है, जो सतत सुख और सामाजिक कल्याण के लिए अनिवार्य है।