जी-राम जी विधेयक के विरोध में विपक्ष का संसद परिसर में मार्च

खड़गे ने कहा इस बिल के ख़िलाफ़ संसद से सड़क तक लड़ेंगे महात्मा गांधी एनआरईजीए के समर्थन में गांधी प्रतिमा से मकर द्वार तक निकाला गया विरोध मार्च

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  • विपक्षी सांसदों ने संसद भवन परिसर में जी-राम जी विधेयक के खिलाफ मार्च किया।
  • मल्लिकार्जुन खरगे ने कहा कि सरकार महात्मा गांधी के विचारों को खत्म कर रही है।
  • सोनिया गांधी सहित कई विपक्षी दलों के नेता प्रदर्शन में शामिल हुए।
  • विपक्ष ने नए कानून को मनरेगा की भावना के खिलाफ बताया।

समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली | 18 दिसंबर: गुरुवार को संसद भवन परिसर के भीतर विपक्षी दलों के सांसदों ने जी-राम जी विधेयक के खिलाफ जोरदार विरोध दर्ज कराया। सांसदों ने इस विधेयक को वापस लेने की मांग करते हुए ‘महात्मा गांधी एनआरईजीए’ के बैनर के साथ गांधी प्रतिमा से मकर द्वार तक मार्च निकाला और सरकार के खिलाफ नारेबाजी की।

इस विरोध प्रदर्शन में कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे, पार्टी महासचिव केसी वेणुगोपाल, डीएमके सांसद कन्हीमोझी, टीआर बल्लू, ए राजा, आईयूएमएल के ईटी मोहम्मद बशीर, शिवसेना (यूबीटी) के अरविंद सावंत, आरएसपी के एनके प्रेमचंद्रन समेत कई विपक्षी दलों के प्रतिनिधि शामिल हुए। मकर द्वार पर हुए प्रदर्शन में कांग्रेस नेता सोनिया गांधी की मौजूदगी ने विरोध को और मजबूती दी।

विरोध मार्च के बाद मल्लिकार्जुन खरगे ने सोशल मीडिया पर सरकार पर निशाना साधते हुए कहा कि मोदी सरकार राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का अपमान कर रही है। उन्होंने आरोप लगाया कि सरकार ग्रामीण भारत में सामाजिक और आर्थिक बदलाव लाने वाले काम के अधिकार को कमजोर करने की कोशिश कर रही है। खरगे ने स्पष्ट किया कि विपक्ष इस फैसले के खिलाफ संसद के अंदर और बाहर दोनों जगह संघर्ष करेगा।

कांग्रेस महासचिव केसी वेणुगोपाल ने पत्रकारों से बातचीत में कहा कि संसद में लोकतांत्रिक मूल्यों को चोट पहुंचाई जा रही है। उन्होंने कहा कि एनआरईजीए से महात्मा गांधी का नाम हटाना केवल कानून में बदलाव नहीं है, बल्कि यह गांधीवादी सोच को समाप्त करने का प्रयास है।

उल्लेखनीय है कि यूपीए सरकार के दौर में लागू महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम, 2005 की जगह विकसित भारत गारंटी रोजगार और आजीविका मिशन (ग्रामीण) यानी वीबी-जी रैम जी विधेयक पेश किया गया है। विपक्ष का कहना है कि यह नया ढांचा मनरेगा की मूल भावना और कानूनी सुरक्षा को कमजोर करता है।

नए प्रस्ताव के तहत ग्रामीण परिवारों को साल में 125 दिनों के रोजगार की गारंटी देने की बात कही गई है। इसके साथ ही राज्यों को कानून लागू होने के छह महीने के भीतर नई योजनाएं तैयार करने का निर्देश दिया गया है।

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