पूनम शर्मा
देश की राजनीति में इन दिनों एक रहस्यमय “बड़े खुलासे” को लेकर अटकलों का दौर तेज हो गया है। महाराष्ट्र के वरिष्ठ कांग्रेस नेता और पूर्व मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण के एक सोशल मीडिया बयान ने एक बार फिर विपक्ष के गैरजिम्मेदार नजरिए को दर्शाया है है। चव्हाण ने संकेत दिया कि एक तय तारीख के बाद मराठी अस्मिता से जुड़ा कोई बड़ा राजनीतिक बदलाव देखने को मिल सकता है और इसके साथ ही “एब्स” (लॉबी फाइल/एक्सपोज़र) के सार्वजनिक होते ही देश की राजनीति में भूचाल आ जाएगा।
इस बयान के बाद शिवसेना (उद्धव ठाकरे गुट) की ओर से भी तीखी प्रतिक्रिया सामने आई। पार्टी सांसद संजय राउत ने दावा किया कि 19 दिसंबर के आसपास अमेरिका के भीतर कुछ बड़ा “फटेगा” और उसका असर सीधे भारतीय राजनीति पर पड़ेगा। उन्होंने यहाँ तक कह दिया कि इस खुलासे के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी पहले जैसी राजनीतिक पकड़ बनाए रखने में सक्षम नहीं रहेंगे। इन बयानों ने एक संभावित विपक्ष की बेसिरपैर की राजनीति को जन्म दिया है ।
अमेरिका में यह मामला लंबे समय से सत्ता, पूंजी और प्रभावशाली वर्ग की काली परतों को उजागर करता रहा है। लेकिन अब अचानक भारत में विपक्षी नेताओं और शिवसेना (उद्धव ठाकरे गुट) के बयानों के जरिए इसे भारतीय राजनीति से जोड़कर देखा जा रहा है।
जेफरी एप्सटीन: एक नाम, कई राज़
जेफरी एप्सटीन सिर्फ एक व्यक्ति नहीं था, बल्कि वह एक ऐसा नेटवर्क था, जिसमें राजनीति, कॉरपोरेट दुनिया, मीडिया और सत्ता प्रतिष्ठान के बड़े-बड़े नाम जुड़े बताए जाते हैं। तकनीकी रूप से कहा जाए तो इस फाइल की जड़ें 2008 तक जाती हैं, जब इसे दबाने की कोशिश की गई। फिर 2019 में, जब इसके खुलने का समय आया, तब इसे फिर से “लॉक” कर दिया गया।
अमेरिका में यह आम धारणा बन चुकी है कि अगर एप्सटीन फाइल पूरी तरह सार्वजनिक हो गई, तो कई पूर्व और वर्तमान राष्ट्रपति, उद्योगपति और वैश्विक हस्तियां बेनकाब हो सकती हैं। यही कारण है कि इसे “राजनीतिक परमाणु बम” कहा जा रहा है।
एलन मस्क, ट्रंप और ‘एफबीआई बम’
इस फाइल को दोबारा सुर्खियों में लाने में एलन मस्क की भूमिका को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। मस्क ने सार्वजनिक मंच से डोनाल्ड ट्रंप को चेतावनी देते हुए कहा था कि “अगर यह फाइल खुली, तो आपके ऊपर एफबीआई बम गिरेगा।” यह कोई सामान्य बयान नहीं था। यह संकेत था कि सत्ता के भीतर कुछ ऐसा छिपा है, जो बाहर आते ही राजनीतिक भूचाल ला सकता है।
मस्क जैसे व्यक्ति का यह कहना कि ट्रंप को सत्ता छोड़नी पड़ सकती है, यह साबित करता है कि मामला केवल नैतिकता का नहीं, बल्कि सत्ता संतुलन का है।
भारत में एंट्री: बयान, संकेत और सियासी गणित
यहाँ सबसे बड़ा सवाल यही है कि क्या वाकई 19 दिसंबर को कोई ऐसा दस्तावेज सामने आने वाला है, जो भारतीय सत्ता संरचना को हिला देगा? या फिर यह सिर्फ विपक्ष का दबाव बनाने का तरीका है?
इतिहास गवाह है कि भारत में कई बार अंतरराष्ट्रीय घटनाओं को घरेलू राजनीति में हथियार की तरह इस्तेमाल किया गया है। लेकिन इस बार मामला अलग है, क्योंकि यह सिर्फ बयानबाजी नहीं, बल्कि वैश्विक स्तर पर चल रही जाँच से जुड़ा है।
हरदीप सिंह पुरी और कनेक्शन की चर्चा
इस पूरे विवाद में केंद्रीय मंत्री हरदीप सिंह पुरी का नाम सामने आना सत्तापक्ष के लिए असहज स्थिति पैदा करता है। विपक्षी दावे कर रहे हैं कि एप्सटीन से जुड़ी लॉबी फाइलों में उनका नाम किसी न किसी रूप में दर्ज हो सकता है।
पुरी एक वरिष्ठ राजनयिक रहे हैं और संयुक्त राष्ट्र में भारत का प्रतिनिधित्व कर चुके हैं। उस दौर के कुछ ई-मेल्स और बैठकों को लेकर सवाल उठाए जा रहे हैं। विपक्ष का आरोप है कि अगर किसी मौजूदा मंत्री का नाम इस फाइल में आता है, तो सरकार को जवाब देना ही पड़ेगा। परंतु यह तब की बात है जब यू पी ए सरकार थी । मौजूदा सरकार का इस बात से कोई दूर दूर तक का लेना देना ही नहीं है । हालांकि सरकार का बचाव स्पष्ट है—जिस समय की बात हो रही है, उस समय केंद्र में यूपीए सरकार थी और पुरी एक राजनयिक के रूप में काम कर रहे थे, न कि भाजपा नेता के तौर पर।