पूनम शर्मा
केरल के हालिया शहरी निकाय चुनावों ने राज्य की राजनीति में एक साफ़ रेखा खींच दी है। यह चुनाव केवल नगर निगमों की जीत-हार तक सीमित नहीं रहा, बल्कि इसने यह भी उजागर किया कि केरल का शहरी मतदाता अब किस दिशा में सोच रहा है। मतदाता ने यह संकेत दिया है कि अब भावनात्मक अपील नहीं, बल्कि ठोस प्रशासन और ज़मीनी कामकाज उसकी प्राथमिकता है।
यूडीएफ की बढ़त और शहरी भरोसा
इन चुनावों में यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (यूडीएफ) शहरी इलाकों में सबसे बड़ी राजनीतिक शक्ति बनकर उभरा। राज्य की छह नगर निगमों में से चार—कोच्चि, कोल्लम, त्रिशूर और कन्नूर—में उसकी जीत ने यह साफ कर दिया कि शहरी मतदाता ने बदलाव के पक्ष में मतदान किया है। यह सफलता केवल सत्ता विरोधी लहर नहीं, बल्कि शहरी असंतोष का संगठित रूप है।
एलडीएफ और कल्याणकारी राजनीति की सीमा
लेफ्ट डेमोक्रेटिक फ्रंट (एलडीएफ) ने वर्षों से केरल में कल्याणकारी मॉडल को राजनीति की धुरी बनाया है। शिक्षा, स्वास्थ्य और सामाजिक सुरक्षा में उसकी उपलब्धियाँ निर्विवाद हैं। लेकिन शहरी इलाकों में मतदाता अब पूछ रहा है कि क्या केवल कल्याण योजनाएँ ही पर्याप्त हैं, जब शहरों की बुनियादी समस्याएँ जस की तस बनी हुई हैं।
शहरों की ज़मीनी समस्याएँ: असली मुद्दा
कोच्चि जैसे महानगरों में जलभराव, ट्रैफिक जाम, कचरा प्रबंधन और अनियोजित विकास लोगों की रोज़मर्रा की ज़िंदगी को प्रभावित कर रहे हैं। कोल्लम और कन्नूर जैसे शहरों में भी रोजगार, शहरी नियोजन और प्रशासनिक पारदर्शिता को लेकर असंतोष है। मतदाता का संदेश साफ है—घोषणाओं से नहीं, समाधान से वोट मिलेगा।
कोझिकोड: जहाँ भरोसा कायम रहा
एलडीएफ के लिए कोझिकोड एक अपवाद के रूप में सामने आया, जहाँ जनता ने उसका साथ नहीं छोड़ा। यह जीत दर्शाती है कि जहाँ स्थानीय प्रशासन अपेक्षाओं पर खरा उतरा और ज़मीनी काम दिखाई दिया, वहाँ मतदाता ने विचारधारा से ऊपर उठकर भरोसा बनाए रखा।
एनडीए की उपस्थिति: बदलते राजनीतिक संकेत
बीजेपी-नेतृत्व वाले एनडीए की त्रिशूर में मिली सफलता भले ही सीमित हो, लेकिन इसे नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता। यह संकेत है कि केरल की शहरी राजनीति अब केवल कांग्रेस और वाम दलों के बीच सिमटी नहीं रही। एक वर्ग ऐसा भी है जो नए विकल्पों की तलाश में है।
कल्याण बनाम शासन: मतदाता की स्पष्ट रेखा
इन चुनावों का सबसे बड़ा संदेश यही है कि शहरी मतदाता ने कल्याण और शासन के बीच फर्क करना सीख लिया है। मुफ्त सुविधाएँ और सामाजिक सुरक्षा योजनाएँ सराही जाएँगी, लेकिन वे कुशल प्रशासन का विकल्प नहीं बन सकतीं। जब सड़कों पर पानी भरा हो और नौकरशाही सुस्त हो, तो नाराज़गी स्वाभाविक है।
आगे की राजनीति के लिए सबक
केरल के सभी राजनीतिक दलों के लिए यह चुनाव एक चेतावनी और अवसर दोनों है। केवल नीतिगत इरादे नहीं, बल्कि प्रभावी क्रियान्वयन, जवाबदेही और शहरी जीवन की गुणवत्ता पर काम करना होगा। जो दल इस संतुलन को समझेगा, वही आने वाले समय में शहरी केरल का विश्वास जीत पाएगा।