रूसी संघ के राष्ट्रपति सम्माननीय श्री व्लादिमीर पुतिन 4-5 दिसंबर 2025 के दौरान भारत में राजकीय-यात्रा पर आए थे, जो 23वें भारत-रूस वार्षिक शिखर-सम्मेलन के लिए थी। 2022 में रूस-यूक्रेन युद्ध शुरू होने के बाद ये पुतिन की पहली भारत यात्रा थी।प्रधानमंत्री मोदी ने स्वयं हवाई अड्डे पर पुतिन का स्वागत किया, और फिर उनके साथ प्रधानमंत्री आवास पर निजी भोज के लिए गए – यह संदेश देता है कि राष्ट्रपति पुतिन भारत के कितने घनिष्ठ मित्र हैं, भले ही पश्चिमी देशों ने उन्हें अलग-थलग करने की कोशिश की हो। प्रधानमंत्री मोदी ने भारत-रूस संबंध को ध्रुव तारे की तरह स्थिर बताया।
पुतिन की भारत यात्रा का महत्व –
पहला –
रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण पश्चिमी देशों ने राष्ट्रपति पुतिन को अलग-थलग कर दिया है, और भारत तथा रूस दोनों को अमेरिका द्वारा व्यापार शुल्कों का बोझ झेलना पड़ रहा है, क्योंकि भारत रूस से तेल खरीदना जारी रखे हुए है। इस प्रकार भारत रूस के साथ आर्थिक रूप से जुड़ने के नए वैकल्पिक तरीके खोजने के प्रयास में है। भारत-रूस का वर्तमान व्यापार 68.72 अरब डॉलर का है, जो 2020 के 8.1 अरब डॉलर से बढ़ा है, जो मुख्य रूप से भारत द्वारा रूस के तेल की खरीद पर निर्भर है। चीन भी रूस से तेल का प्रमुख खरीदार है, किंतु अमेरिका ने भारत पर व्यापार शुल्क लगाने में अधिक कठोरता बरती है। इसके अलावा, अमेरिका स्वयं रूस से उर्वरक, पैलेडियम और यूरेनियम आयात करता है। अतः भारत-रूस के बीच द्विपक्षीय व्यापार को रणनीतिक रूप से बढ़ाना मोदी-पुतिन के इस शिखर सम्मेलन के प्रमुख उद्देश्यों में से एक है।
दूसरा –
यूक्रेन में युद्ध के कारण स्थिति ठीक नहीं है। युद्ध मानवता और सभ्यताओं को नष्ट करते हैं और किसी की भलाई नहीं करते, सिवाय जब वे अधर्म का संहार करने और शांति लाने के लिए हों। पश्चिमी दुनिया द्वारा युद्ध समाप्त करने के प्रयासों के अब तक कोई ठोस परिणाम नहीं निकल पाए हैं। क्षेत्र के प्रमुख राष्ट्र के रूप में, भारत अपनी जिम्मेदारी को समझता है कि रूस और यूक्रेन दोनों के साथ जुड़कर रूस-यूक्रेन संकट को समाप्त करने के लिए प्रभावी पहल करे। जुलाई 2024 में मॉस्को में मुलाकात के दौरान प्रधामंत्री मोदी ने पुतिन से कहा था कि “समाधान युद्धक्षेत्र पर नहीं मिल सकते”। प्रधानमंत्री मोदी वैश्विक शांति के पक्षपाती हैं, तथा भारत रूस और यूक्रेन दोनों के लिए स्वीकार्य समाधान खोजने के इच्छुक है। पुतिन के साथ बातचीत के दौरान मोदीजी की नवीनतम टिप्पणियां, अगस्त 2024 में मोदीजी की यूक्रेन यात्रा के दौरान जेलेंस्की के साथ ववक्तव्यों की प्रतिध्वनि हैं – “…हम तटस्थ नहीं हैं, हम शांति के पक्ष में हैं। हम बुद्ध और गांधी की भूमि से शांति का संदेश लेकर आते हैं।” प्रधानमंत्री मोदी ने 5 दिसंबर 2025 को पुतिन से मुलाकात के बाद यह प्रस्ताव दोहराते हुए कहा – “भारत ने यूक्रेन के संबंध में हमेशा शांति की वकालत की है… भारत आशावादी योगदान देने को तैयार रहा है और सदैव रहेगा।” इस प्रकार, क्षेत्र में शांति लाने के प्रयास मोदी-पुतिन शिखर सम्मेलन का एक अन्य प्रमुख बिंदु है। भारत सावधानीपूर्वक कूटनीतिक संतुलन कार्य में अगले कदम की ओर अग्रसर प्रतीत होता है – यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की की आगामी महीनों में भारत यात्रा को संभावित बनाने के प्रयास चल रहे हैं।
तीसरा –
इस यात्रा के दौरान और एक जो अत्यंत महत्वपूर्ण दृष्टिकोण उभरता है, वह है पश्चिमी दुनिया की कुछ संसाधन नियंत्रण नीतियों – उपनिवेशवाद और आर्थिक एकाधिकार का मुकाबला करने का है । दुनिया के कई देश इन अनुचित पश्चिमी विचारधाराओं के कारण पीड़ित होते रहे हैं। स्मरण रहे कि
“भारत ‘सह-अस्तित्व’ में विश्वास करता है न कि प्रतिस्पर्धा में रूस ‘परस्पर सहयोग’ में विश्वास करता है जबकि पश्चिमी दुनिया प्रतिस्पर्धा और ‘सर्वाइवल ऑफ द फिटेस्ट’ में विश्वास करती है”
भारत और रूस दोनों अपनी प्राचीन सभ्यताओं की आत्मा के रूप में उपरोक्त दार्शनिक सोच का अनुसरण करते आ रहे हैं। दोनों राष्ट्रों के नेता दुनिया में शांति, असमानताओं को दूर करके आर्थिक समानता और सद्भाव लाने की आकांक्षा रखते हैं, और सभी देशों के स्वदेशी संस्कृति एवं परंपरा पर गर्व करने के अधिकार में विश्वास करते हैं। ब्रिक्स मुद्रा को मजबूत करना डी-डॉलरीकरण की ओर एक कदम हो सकता है। हवाई अड्डे से मर्सिडीज के बजाय स्वदेशी टोयोटा-फॉर्च्यूनर में यात्रा करना, दिल्ली में पुतिन की यात्रा के दौरान स्वागत साइन-बोर्ड हिंदी और रूसी में लिखे जाना (अंग्रेजी में नहीं) – इसका स्पष्ट संदेश है।
मोदी-पुतिन शिखर-सम्मेलन के परिणामी बिंदु-
दोनों नेताओं ने 2030 तक द्विपक्षीय व्यापार को 100 अरब डॉलर के लक्ष्य तक पहुंचाने वाले पांच वर्षीय आर्थिक ढांचे पर चर्चा की। भारत और रूस ने अपनी राष्ट्रीय मुद्राओं के उपयोग से द्विपक्षीय निपटान प्रणालियों को विकसित करने पर सहमति जताई ताकि द्विपक्षीय व्यापार की निरंतरता सुनिश्चित रहे । अधिकारियों ने श्रम-गतिशीलता समझौते, रूस में यूरिया संयंत्र संयुक्त रूप से स्थापित करने के लिए MoU और मोदी की 2024 मॉस्को यात्रा के दौरान शुरू की गई आर्थिक रोडमैप को अपनाने पर प्रकाश डाला। रोडमैप में अधिक व्यापार को प्रोत्साहन, समुद्री गलियारों का उपयोग कर कनेक्टिविटी विकसित करना, और प्रतिबंधों से बचने के लिए राष्ट्रीय मुद्रा भुगतान प्रणाली के तंत्र शामिल हैं। जहाज निर्माण, भारतीय समुद्री यात्रियों को polar जल में संचालन के लिए प्रशिक्षण, नई शिपिंग-लेनों में निवेश, सिविल न्यूक्लियर ऊर्जा, वीजा-मुक्त यात्रा और महत्वपूर्ण खनिजों में सौदे और ज्ञापनों पर हस्ताक्षर किए गए। महत्वपूर्ण खनिजों और आपूर्ति श्रृंखलाओं, फार्मास्यूटिकल्स से जुड़े समझौते भी हुए। रूस के कलुगा क्षेत्र में रूसी-भारतीय फार्मास्यूटिकल फैक्टरी का निर्माण होगा। प्रधानमंत्री मोदी ने यूरेशियन आर्थिक संघ (ईएईयू) के साथ भारत के संभावित मुक्त व्यापार समझौते को अंतिम रूप देने में प्रगति का उल्लेख किया, जिसमें रूस, आर्मेनिया, बेलारूस, कजाकिस्तान और किर्गिस्तान शामिल हैं। जब यह पूरा होगा, तो यह सौदा रूस, भारत और अन्य सदस्यों को एक-दूसरे के बाजारों का अन्वेषण करने में सक्षम बनाएगा।
अंतरिक्ष, सैन्य और सैन्य तकनीकी सहयोग, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी में सहयोग, सांस्कृतिक सहयोग, पर्यटन और जन-से-जन आदान-प्रदान, संयुक्त राष्ट्र और बहुपक्षीय मंचों में सहयोग, आतंकवाद का मुकाबला करने के उपाय, अंतरराष्ट्रीय आर्थिक शासन संस्थाओं और बहुपक्षीय विकास बैंकों में सुधार जैसे मुद्दों पर भी चर्चा हुई। दोनों पक्षों ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में व्यापक सुधारों की मांग की ताकि यह समकालीन वैश्विक वास्तविकताओं को प्रतिबिंबित करे और अंतरराष्ट्रीय शांति एवं सुरक्षा के मुद्दों से निपटने में अधिक प्रतिनिधित्वशील, प्रभावी और कुशल बने। दोनों नेताओं ने राजनीतिक एवं सुरक्षा, आर्थिक एवं वित्तीय, सांस्कृतिक और जन-से-जन सहयोग के तीन स्तंभों के तहत विस्तारित ब्रिक्स में सहयोग को बढ़ावा देने की प्रतिबद्धता व्यक्त की।
हालांकि, दोनों पक्षों ने रक्षा हार्डवेयर और अंतरिक्ष सहयोग आदि कुछ रणनीतिक क्षेत्रों में कोई समझौते की घोषणा नहीं की। भारतीय सरकार पश्चिमी चिंताधारा के प्रति सतर्क है, और वर्तमान में अमेरिका तथा यूरोपीय संघ के साथ व्यापार समझौतों और उच्च स्तरीय यात्राओं पर चल रही वार्ताओं को जल्दबाजी में नाराज न करने का ध्यान रख रही है। एक-दूसरे के प्रति शत्रुतापूर्ण दो साझेदारों के साथ संबंधों को संतुलित करते हुए, भारत को ध्यान है कि रणनीतिक स्वायत्तता की पुष्टि के लिए लगातार कदम उठाने होंगे, न कि एक से दूसरे की ओर लोलार्कित गति। संतुलन, न कि झूलन – यही वर्तमान भारतीय कूटनीति है।
पूर्वोत्तर भारत के लिए नई संभावनाएँ
2030 तक द्विपक्षीय व्यापार को 100 अरब अमेरिकी डॉलर तक बढ़ाने का महत्वाकांक्षी लक्ष्य सतर्क नियोजन की मांग करेगा। एक महत्वपूर्ण असंतुलन है – भारत ने रूस को मात्र 4.88 अरब डॉलर मूल्य की वस्तुएं निर्यात कीं जबकि लगभग 63.8 अरब डॉलर का आयात किया, मुख्य रूप से कच्चा तेल, उर्वरक और कोयला। भारत को अपने निर्यातों को व्यापक बनाना होगा और दीर्घकालिक स्थिरता के लिए नई उत्पादन पारिस्थितिक तंत्र विकसित करने होंगे। इस अवसर का लाभ उठाते हुए, पूर्वोत्तर भारत अपनी क्षमता का दोहन कर रूस को भारत के निर्यातों को बढ़ाने में मदद कर सकता है। असम का तटवर्ती तेल उत्पादन, प्रचुर कोयला, चूना पत्थर और मिट्टी के भंडार; मेघालय के चूना पत्थर भंडार; अरुणाचल प्रदेश के वैनेडियम भंडार; नागालैंड, मणिपुर और मिजोरम के क्रोमाइट, निकल, ग्रेफाइट और दुर्लभ पृथ्वी तत्वों के भंडार; त्रिपुरा के समृद्ध शेल, ग्लास सैंड और मिट्टी के संसाधन – ये पूर्वोत्तर के भविष्योन्मुखी प्रगति और विकास के लिए वरदान हो सकते हैं। ये खनिज इलेक्ट्रिक वाहनों, इस्पात उत्पादन, इलेक्ट्रॉनिक्स और नवीकरणीय ऊर्जा सहित विभिन्न उद्योगों में आवश्यक हैं। इन सभी क्षेत्रों में, रूस अपनी उत्पादन क्षमता का विस्तार करने की आकांक्षा रखता है और सुरक्षित आपूर्ति श्रृंखलाओं की तलाश कर रहा है। रूसी निवेश, प्रौद्योगिकी और दीर्घकालिक खरीद समझौतों के साथ, पूर्वोत्तर भारत प्रसंस्करण, शोधन और विनिर्माण का आधार बन सकता है।
उपरोक्त प्रमुख बिंदुओं के साथ, राष्ट्रपति पुतिन के भारत दौरे से निकलने वाले निष्कर्षों को दृश्यमान रूप से पारदर्शी तरीके से देखा जा सकता है – द्विपक्षीय व्यापार को रणनीतिक रूप से बढ़ाना, विश्व में शांति और सद्भाव (‘विश्व का कल्याण हो’) लाना राष्ट्रों के बीच परस्पर सहायता के माध्यम से (‘वसुधैव कुटुम्बकम्’), और पूरे विश्व को उपनिवेशवाद मानसिकता से बाहर आने तथा ‘स्व’ (स्वयं) पर गर्व करने का संदेश देना। दोनों नेताओं ने जोर दिया कि, साझा जिम्मेदारियों वाले प्रमुख शक्तियों के रूप में, यह महत्वपूर्ण संबंध वैश्विक शांति और स्थिरता का प्रमुख लंगर बना रहना चाहिए, जो समानता, सद्भाव और भाईचारे के आधार पर सुनिश्चित किया जाए।
“पुतिन की यह भारत-यात्रा वैश्विक विश्वास, शांति, सहयोग एवं आशा के नवयुग का प्रारम्भिक -मंच तैयार कर सकती है”