15वां प्रेस काउंसिल – पिछले एक साल से एकदम निष्क्रिय पड़ा है पीसीआई?

प्रेस क्लब बनाम राष्ट्रीय पत्रकार संघ, प्रतिनिधित्व पर गहराता विवाद

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नव ठाकुरिया

नव ठाकुरिया
यह आश्चर्यजनक लेकिन सच है कि दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में पिछले एक वर्ष से सरकारी मीडिया वॉचडॉग—प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया (PCI)—पूरी तरह सक्रिय नहीं है। प्रेस की स्वतंत्रता की रक्षा और उसे सशक्त करने के उद्देश्य से 1966 में गठित यह वैधानिक संस्था, अपनी 14वीं परिषद का कार्यकाल 5 अक्टूबर 2024 को समाप्त होने के बाद से लगभग निष्क्रिय पड़ी है।

कई कोशिशों के बावजूद 15वीं परिषद का गठन अलग–अलग बाधाओं में उलझकर अटक गया है। फिलहाल PCI में केवल अध्यक्ष, सचिव और पांच सदस्य कार्यरत हैं, जो राज्यसभा, विश्वविद्यालय अनुदान आयोग, बार काउंसिल ऑफ इंडिया और साहित्य अकादमी का प्रतिनिधित्व करते हैं। जबकि पूरी परिषद में 28 सदस्य होने चाहिए—जिनमें 6 संपादक और 7 कार्यरत पत्रकार शामिल होते हैं।

सूचना माँगने  पर भी जवाब नहीं

3 दिसंबर को PCI अध्यक्ष न्यायमूर्ति रंजन प्रकाश देसाई (जिन्होंने 17 जून 2022 को पदभार संभाला) के कार्यकाल और 15वीं परिषद में अब तक हुई नियुक्तियों की जानकारी मांगी गई, पर कोई जवाब नहीं मिला। PCI वेबसाइट के अनुसार वर्तमान पाँच सदस्य 20 दिसंबर 2024 को नियुक्त हुए थे और उनका कार्यकाल तीन साल का है।

पत्रकारों की नियुक्ति मामला अदालत में

केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री अश्विनी वैष्णव पहले ही स्वीकार कर चुके हैं कि 15वीं परिषद के गठन की प्रक्रिया जारी है, लेकिन कार्यरत पत्रकारों और संपादकों की नियुक्ति अदालत में विचाराधीन होने के कारण अटकी हुई है।

लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला द्वारा तीन सदस्यों—सम्बित पात्रा, नरेश म्हास्के और कालीचरण मुंडा—को पहले ही नामित किया जा चुका है। बताया जा रहा है कि परिषद अध्यक्ष का कार्यकाल 16 दिसंबर 2025 को समाप्त होगा। इससे पहले 13 दिसंबर को परिषद की पहली बैठक बुलाने की कोशिश हो रही है—लेकिन पत्रकार और संपादक इसमें शामिल नहीं होंगे।

इस स्थिति में बड़ा सवाल यह है कि क्या बिना कार्यरत पत्रकारों और संपादकों के कोई प्रेस काउंसिल ठीक तरह से काम कर सकती है? या फिर उसके नाम से ही “प्रेस” शब्द हटा देना चाहिए?

प्रेस काउंसिल का महत्व

PCI एक स्वायत्त वैधानिक संस्था है, जिसे पहले 1966 में प्रेस काउंसिल अधिनियम 1965 के तहत गठित किया गया था और बाद में 1978 के नए कानून के तहत पुनर्गठित किया गया। इसका उद्देश्य-

  • प्रेस की स्वतंत्रता सुनिश्चित करना
  • समाचार पत्रों और समाचार एजेंसियों के मानक सुधारना

भारत आज अंग्रेज़ी सहित अनेक भाषाओं में लगभग 1 लाख प्रकाशन, 400 से अधिक satellite news channels, और हजारों डिजिटल प्लेटफॉर्म—पोर्टल, व्हाट्सऐप चैनल आदि—चलाता है।

कोविड-19 के बाद प्रिंट मीडिया की आमदनी में बड़ी गिरावट आई है, लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि डिजिटल थकान (digital fatigue) के कारण पाठक विश्वसनीय जानकारी के लिए फिर परंपरागत मीडिया की ओर लौटेंगे। अनुमान है कि 2030 तक प्रिंट के पाठक दोगुने हो सकते हैं।

पत्रकार संघों की आपत्तियाँ

कई मीडिया संगठनों ने PCI दिशानिर्देशों में हुए उस बदलाव का विरोध किया है, जिसमें कहा गया है कि सदस्यों का चयन राष्ट्रीय पत्रकार संघों के बजाय विभिन्न प्रेस क्लबों से किया जाए।

उनके तर्क:

प्रेस क्लब मुख्यतः मनोरंजन व सामाजिक गतिविधियों के लिए बने होते हैं। इनमें अक्सर गैर-पत्रकार सदस्य भी शामिल किए जाते हैं। यह संस्थाएँ अखिल भारतीय प्रतिनिधित्व नहीं देतीं।

इसके विपरीत राष्ट्रीय पत्रकार यूनियन पूरे देश के पत्रकारों का प्रतिनिधित्व करती हैं। इंडियन जर्नलिस्ट्स यूनियन और ऑल इंडिया वर्किंग न्यूज कैमरामेन एसोसिएशन ने इस मुद्दे पर अदालत का दरवाज़ा खटखटाया है।

PCI की सीमाएँ और जरूरतें

PCI केवल अखबारों, पत्रिकाओं और समाचार एजेंसियों की निगरानी कर सकता है। इसकी कुछ प्रमुख शक्तियाँ—

  • पेशेवर आचरण के खिलाफ शिकायतें सुनना
  • अखबारों/पत्रकारों को मानदंडों के उल्लंघन पर फटकार लगाना
  • सरकार के अनुचित व्यवहार पर टिप्पणी करना

लेकिन टीवी चैनल, रेडियो और डिजिटल प्लेटफॉर्म अभी PCI के दायरे में नहीं आते। इन्हें भी शामिल किए जाने की मांग लगातार उठ रही है।

समय आ गया है—PCI को सक्रिय और मजबूत करने का

भारतीय मीडिया इस समय बड़े संकट से गुजर रहा है—आर्थिक, संरचनात्मक और नैतिक तीनों स्तरों पर। ऐसे में PCI को—

  • तत्काल सक्रिय किया जाए
  • मान्य प्रतिनिधित्व सुनिश्चित किया जाए
  • कार्यरत पत्रकारों और संपादकों को शामिल किया जाए

तभी यह संस्था अपना मूल उद्देश्य—स्वतंत्र, निष्पक्ष और जिम्मेदार मीडिया की रक्षा—पूरी कर सकेगी।

साभार : https://bhadas4media.com

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