बीएमसी चुनाव: 20 साल की राजनीति एक नजर में

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पूनम शर्मा
एमएनएस ने मराठी अस्मिता और शहरी नाराज़गी को भुनाते हुए कई सीटों पर पारंपरिक दलों का गणित बिगाड़ दिया। खासकर मुंबई के मध्य और उपनगर क्षेत्रों में एमएनएस की मौजूदगी ने शिवसेना और कांग्रेस—दोनों को नुकसान पहुँचाया । हालांकि, चुनाव पूर्व गठबंधन के कारण शिवसेना और भाजपा ने मिलकर 106 सीटें हासिल कीं और अन्य सहयोग से बहुमत का आंकड़ा पार करते हुए बीएमसी पर नियंत्रण बनाए रखा। यह चुनाव बताता है कि मुंबई में तीसरी ताकत के उभार से मुकाबला कितना बिखर सकता है।

2007 का बीएमसी चुनाव उस दौर को दर्शाता है जब कांग्रेस अब भी मुंबई की शहरी राजनीति में मजबूत खिलाड़ी थी। शिवसेना: 84 सीटें,भाजपा: 28 सीटें,कांग्रेस: 75 सीटें इस चुनाव में शिवसेना-भाजपा गठबंधन ने स्पष्ट बढ़त बनाई, लेकिन कांग्रेस का 75 सीटों तक पहुंचना यह दिखाता है कि उस समय अल्पसंख्यक, उत्तर भारतीय और झुग्गी-बस्ती क्षेत्रों में उसका प्रभाव बना हुआ था। हालांकि, सत्ता फिर भी “सैफ्रन अलायंस” के हाथ में रही। यह चुनाव मुंबई की राजनीति के उस दौर का प्रतिनिधित्व करता है, जहां मुकाबला मुख्यतः दो ध्रुवों—कांग्रेस बनाम शिवसेना-भाजपा—के बीच सीमित था।

2002 के बीएमसी चुनाव में शिवसेना-भाजपा गठबंधन अपने चरम पर दिखाई दिया। शिवसेना: 97 सीटें,भाजपा: 35 सीटें,कांग्रेस: 61 सीटेंयह वह दौर था जब शिवसेना की सांगठनिक पकड़, स्थानीय नेतृत्व और मराठी मतदाता आधार सबसे मजबूत था। भाजपा उस समय जूनियर पार्टनर की भूमिका में थी, लेकिन गठबंधन की कुल सीटें बहुमत से कहीं आगे थीं। इस चुनाव ने बीएमसी पर शिवसेना के दीर्घकालिक प्रभुत्व की नींव और मजबूत कर दी।

दीर्घकालिक रुझान: क्या संकेत मिलते हैं?

पिछले दो दशकों के चुनावी आंकड़ों का समग्र विश्लेषण कुछ स्पष्ट रुझानों की ओर इशारा करता है— पहला, शिवसेना लगातार सबसे बड़ी पार्टी बनी रही है, चाहे गठबंधन में हो या अकेले। इससे यह साफ होता है कि बीएमसी की राजनीति में उसकी जमीनी पकड़ अब भी एक बड़ा फैक्टर है।

दूसरा, भाजपा की सीटों में निरंतर वृद्धि एक बड़े संरचनात्मक बदलाव को दर्शाती है। 2002 और 2007 में सीमित भूमिका से निकलकर 2017 में लगभग बराबरी पर पहुंचना बताता है कि शहरी मध्यम वर्ग, गैर-मराठी मतदाता और नए मतदाता समूहों में भाजपा की स्वीकार्यता तेजी से बढ़ी है।

तीसरा, कांग्रेस का ग्राफ लगातार नीचे गया है। 2007 में 75 सीटों से गिरकर 2017 में 31 सीटों तक आना यह दर्शाता है कि उसका पारंपरिक वोट बैंक या तो बिखर गया है या अन्य दलों की ओर शिफ्ट हो चुका है।

चौथा, एमएनएस जैसे क्षेत्रीय दलों की मौजूदगी यह साबित करती है कि मुंबई की राजनीति सिर्फ दो या तीन दलों तक सीमित नहीं रही। छोटे दल और निर्दलीय उम्मीदवार भी कई वार्डों में निर्णायक भूमिका निभा सकते हैं।

2026 की ओर बढ़ती राजनीति

2026 का बीएमसी चुनाव पहले से कहीं ज्यादा जटिल होने वाला है। शिवसेना और एनसीपी के विभाजन ने राजनीतिक समीकरण पूरी तरह बदल दिए हैं। अब सवाल सिर्फ सीटों का नहीं, बल्कि यह भी है कि कौन-सा गुट किस वोट बैंक को कितना साध पाता है।

इन सभी तथ्यों को देखते हुए यह कहा जा सकता है कि बीएमसी चुनाव अब सिर्फ नगर प्रशासन का चुनाव नहीं रह गया है, बल्कि यह महाराष्ट्र और राष्ट्रीय राजनीति की दिशा तय करने वाला एक बड़ा राजनीतिक संकेतक बन चुका है। 2026 में मुंबई की जनता किसे जनादेश देती है, यह न केवल बीएमसी की सत्ता, बल्कि राज्य की राजनीति पर भी दूरगामी असर डालेगा।

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