तिरुवनंतपुरम में BJP की बढ़त, केरल राजनीति में बड़ा बदलाव संकेत

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पूनम शर्मा
केरल की राजनीति को दशकों तक वामपंथ और कांग्रेस के द्विध्रुवीय संघर्ष के रूप में देखा जाता रहा है। लेकिन 13 दिसंबर 2025 को आए स्थानीय निकाय चुनावों के नतीजों ने इस पारंपरिक धारणा को गहरे स्तर पर चुनौती दी है। तिरुवनंतपुरम नगर निगम—जो कांग्रेस सांसद शशि थरूर का संसदीय क्षेत्र और लंबे समय से वाम-कांग्रेस प्रभाव का गढ़ माना जाता रहा है—वहाँ भाजपा का सिंगल लार्जेस्ट पार्टी के रूप में उभरना केवल एक स्थानीय घटना नहीं, बल्कि केरल की राजनीति में संभावित संरचनात्मक बदलाव का संकेत है।

तिरुवनंतपुरम: प्रतीकात्मक जीत से आगे की कहानी

101 सदस्यीय नगर निगम में भाजपा का 50 वार्ड जीतना और बहुमत से मात्र एक सीट दूर रहना अपने आप में ऐतिहासिक है। यह परिणाम इसलिए भी अहम है क्योंकि केरल की राजधानी में अब तक भाजपा को हाशिये की पार्टी माना जाता रहा है। इस चुनाव में एलडीएफ का 29 सीटों तक सिमटना और कांग्रेस-नीत यूडीएफ का 19 वार्डों पर ठहर जाना यह दर्शाता है कि शहरी केरल में मतदाता विकल्प तलाश रहा है।

यह जीत केवल संख्या की नहीं, राजनीतिक मनोविज्ञान की भी है। तिरुवनंतपुरम में भाजपा का उभार यह संदेश देता है कि केरल का शहरी, शिक्षित और मध्यम वर्गीय मतदाता अब वैचारिक जड़ता से बाहर निकलकर प्रशासन, शहरी सुविधाओं और “गवर्नेंस मॉडल” के आधार पर मतदान करने लगा है।

शशि थरूर की प्रतिक्रिया: परिपक्व राजनीति का संकेत

इस पूरे घटनाक्रम में शशि थरूर की प्रतिक्रिया खास मायने रखती है। उन्होंने न केवल यूडीएफ के प्रदर्शन को लोकतांत्रिक उत्सव बताया, बल्कि भाजपा की तिरुवनंतपुरम में “ऐतिहासिक जीत” को खुले तौर पर स्वीकार किया। यह स्वीकारोक्ति बताती है कि कांग्रेस के भीतर भी यह एहसास गहराता जा रहा है कि केरल की राजनीति अब पुराने फॉर्मूले से नहीं चलेगी।

थरूर का यह कहना कि “मतदाताओं ने दशकों के एलडीएफ शासन से बदलाव के लिए किसी और विकल्प को चुना” दरअसल कांग्रेस के लिए एक आत्ममंथन का क्षण है। यह सवाल उठता है कि क्या कांग्रेस अब भी केरल में मुख्य विकल्प बनी रह पाएगी, या भाजपा धीरे-धीरे उसकी जगह लेती जाएगी—खासतौर पर शहरी क्षेत्रों में।

एलडीएफ की चुनौती: सत्ता विरोधी लहर और शहरी असंतोष

एलडीएफ को इस चुनाव में सबसे बड़ा झटका तिरुवनंतपुरम में लगा है। लंबे समय से सत्ता में रहने के कारण शहरी मतदाताओं में प्रशासनिक थकान, बुनियादी ढांचे की समस्याएं और रोजगार को लेकर असंतोष उभर रहा है। स्थानीय निकाय चुनावों में यह असंतोष खुलकर सामने आया है।

हालांकि राज्य स्तर पर एलडीएफ अभी भी मजबूत है और कुल वार्डों में उसकी बढ़त बनी हुई है, लेकिन राजधानी जैसे प्रतीकात्मक शहर में हार यह संकेत देती है कि आने वाले विधानसभा चुनावों में उसे शहरी केरल में कड़ी चुनौती का सामना करना पड़ सकता है।

भाजपा के लिए अवसर: स्थानीय से राज्य राजनीति तक

भाजपा के लिए तिरुवनंतपुरम की यह जीत एक लॉन्चपैड की तरह है। अब तक पार्टी केरल में “वोट शेयर बढ़ाने वाली लेकिन सत्ता से दूर” पार्टी मानी जाती थी। लेकिन नगर निगम में सत्ता के करीब पहुँचना  उसे प्रशासनिक अनुभव, स्थानीय नेतृत्व और संगठनात्मक आत्मविश्वास देगा।

भाजपा की रणनीति स्पष्ट दिखती है—

शहरी मतदाताओं पर फोकस

विकास, इंफ्रास्ट्रक्चर और केंद्र-राज्य समन्वय का नैरेटिव

स्थानीय मुद्दों को धार्मिक ध्रुवीकरण से अलग रखकर पेश करना

यदि भाजपा इस मॉडल को अन्य शहरी निगमों और नगरपालिकाओं में दोहरा पाती है, तो निकट भविष्य में वह केरल की तीसरी शक्ति से आगे बढ़कर वास्तविक सत्ता विकल्प बन सकती है।

केरल की राजनीति का भविष्य: त्रिकोणीय मुकाबले की ओर? इन चुनावों का सबसे बड़ा निहितार्थ यह है कि केरल की राजनीति अब द्विध्रुवीय न रहकर त्रिकोणीय होती दिख रही है।

एलडीएफ: ग्रामीण और परंपरागत समर्थक आधार

यूडीएफ (कांग्रेस): नेतृत्व संकट और वैचारिक अस्पष्टता

भाजपा: शहरी, मध्यम वर्ग और युवा मतदाता में बढ़ती स्वीकार्यता

शशि थरूर जैसे नेता कांग्रेस के भीतर सुधार और नए दृष्टिकोण का प्रतिनिधित्व करते हैं, लेकिन सवाल यह है कि क्या पार्टी संगठनात्मक स्तर पर उतनी तेजी से बदलाव कर पाएगी जितनी तेजी से मतदाता बदल रहा है।

निष्कर्ष

तिरुवनंतपुरम नगर निगम में भाजपा का सिंगल लार्जेस्ट पार्टी बनना केवल एक चुनावी आंकड़ा नहीं, बल्कि केरल की राजनीति में नए युग की दस्तक है। यह परिणाम बताता है कि मतदाता अब वैकल्पिक राजनीति के लिए तैयार है। यदि भाजपा इस जीत को सुशासन और स्थिर प्रशासन में बदल पाती है, तो निकट भविष्य में केरल में उसका मजबूत पांव जमना तय माना जा सकता है।

वहीं कांग्रेस और एलडीएफ के लिए यह परिणाम चेतावनी है—कि बदलाव की माँग  को नजरअंदाज करना अब राजनीतिक रूप से भारी पड़ सकता है। केरल की राजनीति एक निर्णायक मोड़ पर खड़ी है, और तिरुवनंतपुरम इस बदलाव का पहला बड़ा संकेत बनकर उभरा है।

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