बस्तर को नक्सलमुक्त कर आदिवासी विकास का मॉडल बनाएंगे: अमित शाह

जगदलपुर में बस्तर ओलंपिक समापन समारोह के दौरान गृह मंत्री ने 31 मार्च 2026 तक देश से नक्सलवाद समाप्त करने का भरोसा दिलाया

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  • 31 मार्च 2026 तक भारत को पूरी तरह नक्सलवाद से मुक्त करने का लक्ष्य
  • अगले पांच वर्षों में बस्तर को देश का सबसे विकसित आदिवासी संभाग बनाने की योजना
  • हर घर तक बिजली और पानी पहुंचाने का आश्वासन
  • आदिवासी संस्कृति के संरक्षण के साथ विकास पर जोर

समग्र समाचार सेवा
जगदलपुर (छत्तीसगढ़), 13 दिसंबर: केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने एक बार फिर बस्तर के विकास और नक्सलवाद के खिलाफ सरकार की प्रतिबद्धता दोहराई है। शनिवार को छत्तीसगढ़ के जगदलपुर में आयोजित संभाग स्तरीय बस्तर ओलंपिक के समापन समारोह में शामिल होते हुए उन्होंने कहा कि बस्तर को नक्सलवाद से मुक्त कर देश का सबसे विकसित आदिवासी संभाग बनाया जाएगा।

अमित शाह ने कहा कि नक्सलवादियों ने वर्षों तक बस्तर के विकास को रोके रखा। सड़क, बिजली, पानी और अन्य बुनियादी सुविधाओं के काम में लगातार बाधाएं डाली गईं, जिससे यह क्षेत्र पिछड़ता चला गया। लेकिन अब स्थिति बदल चुकी है और सरकार पूरी मजबूती के साथ विकास के रास्ते पर आगे बढ़ रही है।

31 मार्च 2026 तक नक्सलवाद खत्म करने का लक्ष्य

गृह मंत्री ने स्पष्ट कहा कि अगले साल मार्च तक देश को पूरी तरह नक्सलवाद से मुक्त कर दिया जाएगा। उन्होंने भरोसा दिलाया कि आने वाले पांच वर्षों में बस्तर में व्यापक बदलाव दिखाई देगा। हर घर तक बिजली पहुंचेगी, हर घर में पानी की सुविधा होगी और लोगों को बेहतर जीवन स्तर मिलेगा।

विकास के साथ संस्कृति का संरक्षण

अमित शाह ने कहा कि विकास के साथ-साथ बस्तर की समृद्ध और सुंदर आदिवासी संस्कृति को भी संरक्षित किया जाएगा। सरकार का उद्देश्य है कि आधुनिक सुविधाओं के साथ बस्तर अपनी सांस्कृतिक पहचान को और मजबूत करे।

तय समय से पहले सिमट रहा लाल गलियारा

उन्होंने याद दिलाया कि वर्ष 2024 में सरकार ने 31 मार्च 2026 तक नक्सलवाद समाप्त करने की बात कही थी, जिसे कई लोगों ने राजनीतिक बयान माना। लेकिन ज़मीनी स्तर पर हुई कार्रवाइयों ने इसे वास्तविक लक्ष्य बना दिया है। डेडलाइन से पहले ही रेड कॉरिडोर के दो राज्यों ने खुद को नक्सलमुक्त घोषित कर दिया है।

कभी जहां सुरक्षा बलों के शिविर बनाना भी जोखिम भरा माना जाता था, आज वहां बिना डर विकास कार्य चल रहे हैं। बड़े नक्सली कमांडरों का खात्मा, इनामी नक्सलियों का आत्मसमर्पण और लगातार सिमटता लाल गलियारा इस बात के संकेत हैं कि नक्सलवाद अब अपने अंतिम दौर में है।

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