कर्नाटक : पूर्व मुख्यमंत्री बोम्मई- ‘हेट-स्पीच’ असंवैधानिक और दमनकारी

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पूनम शर्मा
कर्नाटक की राजनीति में एक बार फिर तीखी बहस छिड़ गई है। राज्य सरकार द्वारा लाए गए नए “हेट-स्पीच” कानून पर विवाद बढ़ गया । इसका सबसे कड़ा विरोध पूर्व मुख्यमंत्री और वरिष्ठ भाजपा नेता बसवराज बोम्मई ने किया । उन्होंने इसे “असंवैधानिक, दमनकारी और सरकार द्वारा लोगों के स्वर को दबाने की सोची-समझी कोशिश” बताया है। बोम्मई का कहना कि यह कानून न केवल अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर हमला है, बल्कि लोकतंत्र में विपक्ष की भूमिका को कमजोर करने का प्रयास भी है यह कितना सही है ।

बोम्मई ने आरोप लगाया कि यह सरकार आलोचना से डरती है

बसवराज बोम्मई ने मीडिया से कहा कि राज्य की कांग्रेस सरकार जनता की आवाज़ से डरती है, इसलिए ऐसे कानून लाए जा रहे हैं जिनमें ‘हेट-स्पीच’ की परिभाषा अस्पष्ट है। उनके अनुसार, किसी भी आलोचना को हेट-स्पीच बताकर आपराधिक कार्रवाई करना आसान हो जाएगा, जिससे राजनीतिक बहस और विपक्ष की स्वतंत्रता खत्म हो जाएगी।
उन्होंने आरोप लगाया कि सरकार का उद्देश्य कानून-व्यवस्था सुधारना नहीं, बल्कि आलोचकों, पत्रकारों और सोशल मीडिया पर सरकार के खिलाफ बोलने वालों को निशाना बनाना है। बोम्मई ने कहा कि वे इस कानून के खिलाफ कानूनी और राजनीतिक, दोनों स्तरों पर लड़ाई लड़ेंगे।

कानून पर मुख्य सवाल

कर्नाटक सरकार का तर्क है कि बढ़ते ऑनलाइन नफरतभरे भाषण, धार्मिक तनाव और सांप्रदायिक पोस्ट्स को रोकने के लिए यह कानून जरूरी है। लेकिन विरोधियों का कहना है कि—

परिभाषाएँ अस्पष्ट हैं— हेट-स्पीच का आधार क्या होगा?

राजनीतिक उपयोग की आशंका—सरकार आलोचना को भी अपराध बताकर दमन कर सकती है।

अनुपातहीन दंड —साधारण टिप्पणी भी गैर-जमानती धाराओं के तहत आ सकती है।

संविधान के अनुच्छेद 19(1)(a)—अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता भी सीधे प्रभावित होगी।

पुलिस को अधिक शक्ति—किसी बयान, पोस्ट या टिप्पणी पर तुरंत गिरफ्तारी हो सकती है।

बोम्मई का कहना है कि ऐसा कानून लोकतांत्रिक समाज में स्वीकार्य नहीं हो सकता, क्योंकि इसमें नागरिकों के मौलिक अधिकार कमजोर पड़ते हैं।
भाजपा -“कानून की आड़ में विपक्ष का दमन”
कर्नाटक भाजपा ने इस मुद्दे को एक बड़े राजनीतिक प्रश्न के रूप में उठाया है। पार्टी के नेताओं का कहना है कि कांग्रेस सरकार जानबूझकर ऐसे प्रावधान बना रही है जिनसे विपक्षी नेताओं, हिंदुत्व संगठनों और सोशल मीडिया कार्यकर्ताओं को निशाना बनाया जा सके।
भाजपा का दावा है कि
सरकार ने पिछले दो वर्षों में कई मामलों में एकतरफा कार्रवाई की है। कुछ मामलों में सिर्फ राजनीतिक संबद्धता देखकर FIR दर्ज की गई। असंतोष जताने वाले आम नागरिक भी डर के कारण सोशल मीडिया पर खुलकर नहीं लिख पा रहे।

बोम्मई ने कहा कि यह कानून “भविष्य में नागरिकों के लिए भयावह ” बन सकता है और इसका विरोध करना सभी की लोकतांत्रिक जिम्मेदारी है।

कांग्रेस का बचाव

उधर कांग्रेस की राज्य सरकार और उसके मंत्रियों का कहना है कि भाजपा जनता को भ्रमित कर रही है। तर्क है कि यह कानून केवल सांप्रदायिक तनाव और आपराधिक हेट-स्पीच रोकने के लिए है। सरकार का कहना है कि— न्यायालयम के द्वारा भी कई बार राज्यों को प्रभावी कानून बनाने की सलाह दी गई है। डिजिटल प्लेटफॉर्म पर भड़काऊ वीडियो और पोस्ट तेजी से प्रसारित होते हैं। सोशल मीडिया पर नफरत फैलाने से हिंसा भड़क सकती है, इसलिए सख्त व्यवस्था जरूरी है। पर आलोचकों का कहना है कि अगर सरकार की नीयत साफ है, तो कानून की परिभाषा स्पष्ट होनी चाहिए थीं और उसमें ऐसे प्रावधान जोड़ने चाहिए थे जो राजनीतिक दुरुपयोग को रोकें।

बोम्मई : “जनता के साथ खड़े रहेंगे”

पूर्व मुख्यमंत्री ने घोषणा की कि वे इस कानून को अदालत में चुनौती दी जाएगी । साथ ही भाजपा इसके खिलाफ जनजागरण अभियान भी चलाएगी। उन्होंने कहा कि राज्य की जनता अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर किसी भी प्रकार के हमले को बर्दाश्त नहीं करेगी।
उन्होंने कहा—
“हम लोकतंत्र की रक्षा करेंगे। यह कानून प्रजा की आवाज़ दबाने का उपकरण है। हम इसके खिलाफ सड़कों पर भी उतरेंगे और अदालत में भी लड़ाई लड़ेंगे।”

कर्नाटक की राजनीति में नया मोड़

इस नए विवाद ने राज्य की राजनीति में उथल-पुथल बढ़ा दी है। एक तरफ सरकार इसे सुधारात्मक कदम बता रही है। दूसरी तरफ विपक्ष इसे अभिव्यक्ति की आज़ादी पर हमला कह रहा है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि आने वाले दिनों में यह मुद्दा कर्नाटक में एक बड़ा राजनीतिक और कानूनी टकराव पैदा करेगा। अगर कानून में बदलाव नहीं हुआ, तो मामला उच्च न्यायालय या सुप्रीम कोर्ट तक जा सकता है।

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