पूनम शर्मा
भारत के पूर्वोत्तर के इतिहास में कई ऐसे नाम हैं जिन्हें राष्ट्रीय इतिहास की मुख्यधारा में वह स्थान नहीं मिला जिसके वे हकदार थे। ऐसी ही एक अमर गाथा—महान अहोम सेनानायक लाचित बरफुकन—को वर्तमान जेएनयू प्रोफेसर और नृवंशविज्ञानी रक्तिम पातर ने अपनी पुस्तक ‘लाचित बरफुकन’ में अत्यंत शोधपूर्ण और जीवंत रूप में प्रस्तुत किया है। प्रभात प्रकाशन द्वारा प्रकाशित यह पुस्तक केवल एक योद्धा की कथा नहीं, बल्कि एक सम्पूर्ण सभ्यता के अस्तित्व की लड़ाई का साक्षी है—वह संघर्ष जिसने पूर्वोत्तर भारत को मुगल साम्राज्य के विस्तारवादी, इस्लामी आक्रमणों से सुरक्षित रखा।
ब्रह्मपुत्र के तट पर अदम्य प्रतिरोध का जीवंत इतिहास
रक्तिम पातर बताते हैं कि लाचित बोरफुकन और महाराज पृथु जैसे असाधारण वीरों की सतर्कता ही वह शक्ति थी जिसने मुगलों की महत्त्वाकांक्षाओं को ब्रह्मपुत्र नदी के तट पर ही रोक दिया। ब्रह्मपुत्र केवल एक नदी नहीं, बल्कि वह प्राकृतिक और सांस्कृतिक दीवार साबित हुई जिसने मुगल साम्राज्य को पूर्व की दिशा में फैलने से रोक दिया। लेखक के अनुसार—यदि अहोम वीरों का यह निरंतर प्रतिरोध न होता, तो मुगलों का आतंक तिब्बत, बर्मा (म्यांमार) और समूचे दक्षिण-पूर्व एशिया तक पहुँच सकता था।
पुस्तक की प्रमुख ऐतिहासिक विशेषताएँ
चूँकि लाचित बोरफुकन के जीवन से जुड़े प्रामाणिक स्रोत सीमित हैं, ऐसे में लेखक का शोध और विश्लेषण अत्यंत महत्त्वपूर्ण हो जाता है। पुस्तक में निम्न प्रमुख घटनाओं पर विशेष ध्यान दिया गया है:
आलाबनोई की लड़ाई — अहोम साहस की पहली बड़ी परीक्षा
पुस्तक में इस युद्ध का विस्तृत अध्ययन मिलता है, जहाँ अहोम वीर ही नहीं, बल्कि अत्यंत रणनीतिक सेना के रूप में उभरते हैं। गुवाहाटी की मुगलों से मुक्ति लाचित बोरफुकन की अगुवाई में गुवाहाटी को मुगल कब्जे से मुक्त कराना भारतीय सैन्य इतिहास की एक अद्वितीय उपलब्धि के रूप में दर्ज है। लेखक ने युद्धभूमि की परिस्थितियों का मार्मिक वर्णन किया है। सरायघाट का महासंग्राम — पुस्तक का केंद्रबिंदु यह वह युद्ध था जिसने लाचित बोरफुकन को अमर कर दिया। उत्कृष्ट नौसैनिक रणनीतियाँ, नदी-आधारित युद्धकला, और साहस—इन सबका अद्भुत संगम। मुगल सेना का पराभव केवल सैन्य जीत नहीं, बल्कि भारतीय अस्मिता की विजय थी। मुगलों का पीछा कर उन्हें सीमाओं से बाहर खदेड़ना सरायघाट की जीत के बाद अहोम सेना द्वारा मुगलों को पूर्वोत्तर से बाहर निकालने की रोमांचक कथा पढ़ने योग्य है।औरंगजेब की विफल रणनीतियाँ लेखक बताता है कि औरंगजेब ने पूर्वोत्तर पर नियंत्रण पाने के लिए कई योजनाएँ बनाईं, परंतु अहोम वीरों के समक्ष वह सभी नाकाम सिद्ध हुआ ।
लेखक का उद्देश्य और शोध-धर्मिता
रक्तिम पातर ने पूर्वोत्तर भारत के ऐसे नायकों को केन्द्र में लाने का बीड़ा उठाया है जिन्हें इतिहास की मुख्यधारा ने अक्सर उपेक्षित रखा। उनकी पिछली पुस्तक महाराज पृथु पर भी यही शोध-आधारित दृष्टि देखने को मिलती है। यह पुस्तक दर्शाती है कि लेखक का उद्देश्य केवल इतिहास लिखना नहीं, बल्कि गुमनाम भारतीय नायकों को राष्ट्रीय चेतना में स्थापित करना है।
क्यों पढ़ें यह पुस्तक?
‘लाचित बोरफुकन’ केवल एक पुस्तक नहीं, बल्कि भारत के पूर्वोत्तर के गौरवशाली प्रतिरोध का सशक्त दस्तावेज़ है। यह पुस्तक बताती है कि— भारत की सीमा केवल भूगोल से नहीं, बल्कि बलिदान, पराक्रम और अस्मिता से सुरक्षित रहती है। जो पाठक भारतीय सैन्य इतिहास, अहोम साम्राज्य, मुगल विस्तार की सीमाएँ और पूर्वोत्तर भारत की सभ्यता को गहराई से समझना चाहते हैं—उनके लिए यह पुस्तक अनिवार्य पठन है। रक्तिम पातर की कलम एवं तथा प्रभात प्रकाशन द्वारा प्रकाशित पुस्तक ने लाचित बोरफुकन को आधुनिक भारत की स्मृति में पुनः प्रतिष्ठित कर दिया है। यह पुस्तक निस्संदेह भारतीय इतिहास लेखन में एक महत्त्वपूर्ण योगदान है।