मोदी जी ने अच्छा काम किया ‘वंदे मातरम्’ पर बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय के पड़पोते की प्रतिक्रिया
सजल चट्टोपाध्याय ने वंदे मातरम् के 150 वर्ष पूरे होने पर पीएम मोदी की सराहना की; पश्चिम बंगाल सरकार पर उपेक्षा का आरोप।
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बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय के पड़पोते सजल चट्टोपाध्याय बोले, मोदी सरकार ने उचित सम्मान दिया।
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पश्चिम बंगाल सरकार पर “बंकिम बाबू और परिवार की उपेक्षा” का आरोप।
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कहा, दिल्ली से आने वाले मंत्री परिवार से मिलते हैं, पर राज्य सरकार ने कभी नहीं बुलाया।
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वंदे मातरम् और बंकिमचंद्र की विरासत को संरक्षित करने के लिए विश्वविद्यालय और भवन की मांग।
समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली, 09 दिसंबर: ‘वंदे मातरम्’ के 150 वर्ष पूरे होने पर केंद्र सरकार के समारोह को लेकर बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय के पड़पोते सजल चट्टोपाध्याय ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सराहना की और कहा कि यह सम्मान बहुत पहले दिया जाना चाहिए था। उन्होंने दावा किया कि पश्चिम बंगाल सरकार ने न केवल उनके पूर्वज की उपेक्षा की, बल्कि उनके परिवार को भी वर्षों से नज़रअंदाज़ किया है।
मीडिया से बातचीत में उन्होंने कहा, “यह बहुत पहले होना चाहिए था। मैं नरेंद्र मोदी को सलाम करता हूं। वंदे मातरम् राष्ट्रीय मंत्र माना जाता है और उसके योगदान को नई पीढ़ी भूल रही है। ऐसे समय में जो मोदी जी ने किया, वह अच्छा किया है। मुझे गर्व महसूस होता है।”
सजल चट्टोपाध्याय ने आरोप लगाया कि मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कभी भी परिवार को किसी कार्यक्रम में आमंत्रित नहीं किया। उन्होंने कहा कि दिल्ली से आने वाले मंत्री जैसे कि अमित शाह हमेशा परिवार से मिलते हैं, हालचाल पूछते हैं और वंदे मातरम् के प्रचार-प्रसार को लेकर सुझाव भी मांगते हैं। उन्होंने कहा, “हम राजनीतिक लोग नहीं हैं, हम सिर्फ सच बोलते हैं। 2018 में अमित शाह जी ने मुझे बहुत सम्मान दिया था।”
उन्होंने कहा कि बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय के नाम पर देश में न कोई भवन है, न कोई विश्वविद्यालय, जबकि रबीन्द्रनाथ टैगोर के नाम पर अनेक संस्थान हैं। उनका कहना है कि यदि केंद्र सरकार बंकिमचंद्र के नाम पर विश्वविद्यालय बनाए, तो आने वाली पीढ़ियाँ वंदे मातरम् और उसके रचयिता के महत्व को समझ पाएंगी।
अंत में उन्होंने कहा कि पश्चिम बंगाल सरकार ने न बंकिम बाबू को सम्मान दिया, न उनकी विरासत को। “बंकिम बाबू ने वंदे मातरम् में कई देवी-देवताओं के नाम लिखे थे, इसी कारण उसे कभी-कभी विरोध का सामना करना पड़ा। जैसे बंकिम बाबू को भूला दिया गया, वैसे ही उनके परिवार को भी भुलाया गया।”