लोकसभा में PM मोदी का हमला: “नेहरू ने दबाव में वंदे मातरम का रूप बदल दिया”
कहा—जिन्ना के विरोध के बाद कांग्रेस ने लीघ के सामने घुटने टेके
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PM मोदी बोले—जिन्ना के 1937 के विरोध के पाँच दिन बाद ही नेहरू ने सुभाष बोस को पत्र लिखकर सहमति जताई
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आरोप—कांग्रेस ने मुस्लिम लीग के दबाव में वंदे मातरम के उपयोग की ‘समस्या’ खड़ी की
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26 अक्टूबर 1937 की कांग्रेस बैठक में वंदे मातरम पर “टुकड़े कर देने” का निर्णय लिया गया
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महात्मा गांधी ने कहा था कि वंदे मातरम “भारत का राष्ट्रगीत” जैसा है, पर कांग्रेस ने उनके विचार की अनदेखी की
समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली, 8 दिसंबर | लोकसभा में सोमवार को वंदे मातरम के 150 वर्ष पूरे होने के अवसर पर हुई विशेष चर्चा के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कांग्रेस और जवाहरलाल नेहरू पर तीखा राजनीतिक हमला बोला। प्रधानमंत्री ने आरोप लगाया कि मुस्लिम लीग के दबाव में कांग्रेस ने न केवल वंदे मातरम से समझौता किया, बल्कि इसे “टुकड़ों में बाँट दिया”।
प्रधानमंत्री ने कहा कि “15 अक्टूबर 1937 को मोहम्मद अली जिन्ना ने लखनऊ से वंदे मातरम के विरुद्ध नारा बुलंद किया। इसके बाद कांग्रेस के तत्कालीन अध्यक्ष जवाहरलाल नेहरू को अपना सिंहासन डोलता दिखा और उन्होंने पलटकर मुस्लिम लीग को जवाब देने के बजाय वंदे मातरम की ही जांच शुरू कर दी।”
मोदी ने दावा किया कि जिन्ना के विरोध के सिर्फ पाँच दिन बाद, 20 अक्टूबर 1937 को नेहरू ने नेताजी सुभाष चंद्र बोस को पत्र लिखते हुए कहा कि वंदे मातरम की आनंदमठ की पृष्ठभूमि मुसलमानों को “इरिटेट” कर सकती है।
इसके बाद, प्रधानमंत्री के अनुसार, कांग्रेस कार्यसमिति की 26 अक्टूबर को कोलकाता में हुई बैठक में वंदे मातरम के उपयोग की “समीक्षा” कर इसे टुकड़ों में बाँटने का फैसला किया गया। उन्होंने कहा—“इस फैसले के पीछे सामाजिक सद्भाव का बहाना लगाया गया, लेकिन इतिहास गवाह है कि कांग्रेस ने मुस्लिम लीग के आगे घुटने टेके।”
मोदी ने महात्मा गांधी के वंदे मातरम पर विचार भी सदन में प्रस्तुत किए। उन्होंने कहा कि 1905 में गांधी ने लिखा कि “वंदे मातरम हमारा राष्ट्रगीत जैसा है, इसकी भावना महान है और यह देशभक्ति को जगाता है।” प्रधानमंत्री ने सवाल उठाया कि “जब गांधी स्वयं इसे राष्ट्रीय गीत जैसा मानते थे, तो आखिर कौन-सी ताकत थी जिसने कांग्रेस को इसके विरुद्ध निर्णय लेने पर मजबूर कर दिया?”
प्रधानमंत्री ने कहा कि नई पीढ़ियों को यह जानना चाहिए कि कैसे वंदे मातरम जैसी राष्ट्रभावना से जुड़ी रचना को विवादों में घसीटा गया और कैसे स्वतंत्रता काल की राजनीति में तुष्टिकरण हावी हो गया।