भारतीय रक्षा ढांचे के शिल्पकार: जनरल बिपिन रावत की स्मृति में देश ने झुकाया सिर

पुण्यतिथि पर राष्ट्र ने याद किया वह सैन्य अधिकारी, जिसने भारतीय सेना की रणनीतिक सोच और क्षमता को नई दिशा दी

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  • गढ़वाल में जन्मे जनरल रावत का जीवन बचपन से ही सेना के संस्कारों से प्रेरित रहा।
  • चार दशक की सेवा में आतंकवाद-रोधी अभियानों से लेकर सीमा पार कार्रवाई तक कई महत्वपूर्ण नेतृत्व.
  • थल सेना प्रमुख के बाद देश के प्रथम सीडीएस बने, तीनों सेनाओं के समन्वय में निर्णायक बदलाव।
  • डोकलाम और गलवान जैसे तनावपूर्ण दौर में भारतीय सेना को मजबूत, संतुलित नेतृत्व प्रदान किया।

समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली, 8 दिसंबर:देश आज अपने पहले चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ जनरल बिपिन रावत को उनकी पुण्यतिथि पर श्रद्धांजलि अर्पित कर रहा है। अदम्य साहस, स्पष्ट निर्णय और आधुनिक सैन्य दृष्टि के प्रतीक जनरल रावत ने भारतीय सेना को नई दिशा दी।
8 दिसंबर 2021 को तमिलनाडु के कुन्नूर में हुए हेलिकॉप्टर हादसे में उनका निधन हुआ था, पर उनकी विरासत आज भी भारतीय रक्षा ढांचे की प्रेरणा बनी हुई है।

गढ़वाल की धरती से सेना के शीर्ष पद तक

16 मार्च 1958 को उत्तराखंड के गढ़वाल क्षेत्र में जन्मे रावत एक ऐसे परिवार से आते थे, जिसने पीढ़ियों से सेना की सेवा की। उनके पिता लक्ष्मण सिंह रावत लेफ्टिनेंट जनरल रहे। बचपन में सैन्य अनुशासन और सेवा भावना ने उनके मन में देशसेवा का लक्ष्य और मजबूत किया। उन्होंने राष्ट्रीय रक्षा अकादमी और भारतीय सैन्य अकादमी से प्रशिक्षण पूरा किया।

गोरखा रेजिमेंट से शुरुआत, फिर अभियानों की अगुवाई

1978 में उन्हें 11 गोरखा रायफल्स की 5वीं बटालियन में कमीशन मिला। मिजोरम में प्रारम्भिक तैनाती से ही उनका नेतृत्व साफ दिखने लगा।
सोपोर में आतंकवाद-रोधी अभियानों की सफल अगुवाई, उत्तरी कश्मीर में नियंत्रण रेखा के निकट डिवीजन की कमान और म्यांमार में भारतीय विशेष बलों द्वारा की गई कार्रवाई—ये सभी उनके साहसी निर्णयों का प्रमाण हैं।

सर्जिकल स्ट्राइक में महत्वपूर्ण भूमिका

पीओके स्थित आतंकी ठिकानों पर की गई सर्जिकल स्ट्राइक को जनरल रावत की रणनीतिक सोच और दृढ़ नेतृत्व ने मजबूत आधार दिया। यह भारत की बदली हुई नीति का स्पष्ट संकेत था।

थल सेना प्रमुख से प्रथम सीडीएस तक

31 दिसंबर 2016 को वे थल सेना प्रमुख बने और 1 जनवरी 2020 को देश के प्रथम सीडीएस नियुक्त हुए। उनका लक्ष्य तीनों सेनाओं के संयुक्त संचालन, समन्वय और आधुनिक युद्ध क्षमता को नए स्तर पर ले जाना था।

डोकलाम और गलवान का दौर

2017 के डोकलाम विवाद और 2020 के गलवान तनाव में भारतीय सेना की संतुलित और दृढ़ प्रतिक्रिया में उनके नेतृत्व की छाप साफ दिखाई दी।

जनरल रावत की सैन्य दृष्टि, दृढ़ता और दूरदर्शिता ने भारतीय रक्षा ढांचे को अधिक सक्षम और आत्मविश्वासी बनाया। उनकी स्मृति और योगदान आने वाली पीढ़ियों को प्रेरित करते रहेंगे।

 

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