मंदिर में दीया जलाने के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुंची तमिलनाडु सरकार
हिंदू परंपराओं पर रोक की कोशिश? मद्रास हाई कोर्ट के आदेश को चुनौती, राज्य सरकार के रवैये पर सवाल
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तमिलनाडु सरकार ने मद्रास हाई कोर्ट के दीया प्रज्वलन अनुमति आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील दाखिल की।
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CJI सूर्यकांत की बेंच ने राज्य की अपील पर सुनवाई के लिए सहमति दी।
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हाई कोर्ट ने साफ कहा था—दीपथून पर दीप प्रज्वलन से किसी मुस्लिम दरगाह के अधिकारों का हनन नहीं।
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अदालत के आदेश के बावजूद दीप न जलने पर हाई कोर्ट ने CISF सुरक्षा तक प्रदान की—सरकारी तंत्र की अनदेखी पर तंज।
समग्र समाचार सेवा
मदुरै|नई दिल्ली, 6 दिसंबर: तमिलनाडु सरकार एक बार फिर हिंदू धार्मिक परंपराओं को सीमित करने के अपने रूझान को लेकर सवालों के घेरे में है। मदुरै में स्थित अरुलमिघु सुब्रमण्य स्वामी मंदिर के भक्तों को थिरुपरनकुंद्रम पहाड़ी की निचली चोटी पर स्थित दीपथून में पारंपरिक कार्तिगई दीपम जलाने की मद्रास हाई कोर्ट द्वारा दी गई अनुमति को राज्य सरकार ने चुनौती देकर सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है।
मुख्य न्यायाधीश जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की बेंच ने तमिलनाडु सरकार की अपील पर विचार करने का निर्णय लिया है। लेकिन अदालत में बहस के दौरान ही राज्य सरकार के रुख पर सवाल उठ गए। मंदिर पक्ष के वकील ने कहा,
“तमिलनाडु सरकार सिर्फ हाई कोर्ट को दिखाना चाहती है कि उसने सुप्रीम कोर्ट में मामला उठा दिया है। यह मामला धार्मिक अधिकारों पर अनावश्यक राजनीति का उदाहरण है।”
दूसरी ओर, सरकारी वकील टालमटोल भरी दलीलें देते दिखे—जो यह संकेत देता है कि सरकार अदालत के स्पष्ट आदेश के बावजूद दीया जलने से परहेज क्यों कर रही थी।
हाई कोर्ट ने कहा था—दीप जलाने से किसी अधिकार का उल्लंघन नहीं
1 दिसंबर को मद्रास हाई कोर्ट के जस्टिस जीआर स्वामीनाथन ने ऐतिहासिक फैसले में स्पष्ट किया था कि:
- दीपथून स्थित क्षेत्र मंदिर संपत्ति है
- वहां दीप जलाना हिंदुओं की पारंपरिक धार्मिक प्रक्रिया है
- नजदीकी सिकंदर बधुशा दरगाह के अधिकारों का इस पर कोई अतिक्रमण नहीं होता
जज ने यहां तक कहा कि अगर दीप नहीं जला, तो “मंदिर के अधिकार भविष्य में खतरे में पड़ सकते हैं”।
इसके बावजूद राज्य प्रशासन ने आदेश को लागू नहीं किया—जिस पर अदालत ने कड़ी नाराजगी जताई और 3 दिसंबर को भक्तों को CISF सुरक्षा देने तक का आदेश दिया। डिविजन बेंच ने भी साफ कहा कि राज्य सरकार ने “जानबूझकर” अदालत के आदेश को लागू नहीं किया।
क्या तमिलनाडु सरकार मंदिर परंपराओं को निशाना बना रही है?
तमिलनाडु में लंबे समय से यह आरोप लगता रहा है कि राज्य सरकार और उसका प्रशासन मंदिरों पर अनावश्यक नियंत्रण, परंपराओं में हस्तक्षेप और हिंदू धार्मिक रीति-रिवाजों को कमजोर करने की रणनीति अपनाते रहे हैं।
इस घटना ने यह आशंका फिर मजबूत कर दी है:
- जब अदालत ने स्पष्ट कहा कि किसी धार्मिक टकराव की आशंका नहीं है
- जब क्षेत्र मंदिर की कानूनी संपत्ति है
- जब भक्तों की वर्षों पुरानी परंपरा है
तो फिर सरकार आखिर किस दबाव या विचारधारा के कारण मंदिर के दीप जलाने तक का विरोध कर रही है?