‘सोहरा सर्किट’ और ‘मताबाड़ी सर्किट’ से बदलेगी पूर्वोत्तर की तस्वीर

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पूनम शर्मा
पूर्वोत्तर भारत की प्राकृतिक संपदाएँ, सांस्कृतिक विविधता और अप्रतिम पर्यटन संभावनाएँ लंबे समय से अपनी पूर्ण पहचान की प्रतीक्षा में थीं। लेकिन अब केंद्र सरकार की योजनाबद्ध नीति, विकासोन्मुख सोच और तेज़ गति से काम करने की शैली ने इस क्षेत्र को नई ऊर्जा और नए अवसर प्रदान किए हैं। इसी कड़ी में, केंद्रीय संचार एवं पूर्वोत्तर क्षेत्र विकास (DoNER) मंत्री ज्योतिरादित्य एम. सिंधिया द्वारा घोषित सोहरा सर्किट (मेघालय) और मताबाड़ी सर्किट (त्रिपुरा) जैसे महत्वाकांक्षी पर्यटन प्रोजेक्ट पूर्वोत्तर की नई विकास कहानी लिखने जा रहे हैं।

शिलांग में हुई परामर्शदात्री समिति की बैठक की अध्यक्षता करते हुए सिंधिया ने स्पष्ट कहा कि ये दोनों सर्किट पायलट प्रोजेक्ट के रूप में विकसित किए जा रहे हैं। इसका अर्थ है कि भविष्य में इसी मॉडल को पूरे पूर्वोत्तर में फैलाया जाएगा, ताकि पर्यटन, रोजगार और इंफ्रास्ट्रक्चर विकास को बहुगुणित गति मिल सके।

सोहरा सर्किट: पूर्वोत्तर के पर्यटन का नया द्वार

मेघालय का सोहरा—जिसे चेरापूंजी के नाम से पूरी दुनिया जानती है—पहले से ही बादलों, झरनों और प्राकृतिक सौंदर्य का असीम खजाना है। लेकिन वहां तक पहुँच, सुविधाएँ, वेल-मैनेज्ड पर्यटन सेवाएँ और स्थानीय स्तर पर प्रशिक्षित कर्मियों की कमी विकास की राह में बाधा बनी हुई थी। केंद्र सरकार द्वारा सोहरा सर्किट का शिलान्यास इसी कमी को दूर करने की दिशा में ऐतिहासिक कदम है। इससे न सिर्फ सड़क, पार्किंग, व्यू-प्वाइंट, ट्रेकिंग रूट, डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर और पर्यटकों की सुरक्षा से जुड़े संसाधनों में सुधार होगा, बल्कि स्थानीय युवाओं को भी प्रशिक्षण देकर पर्यटन सेवाओं में शामिल किया जाएगा।

मताबाड़ी सर्किट: त्रिपुरा की सांस्कृतिक पहचान को वैश्विक मंच

त्रिपुरा का माता त्रिपुरेश्वरी मंदिर, जिसे मताबाड़ी नाम से जाना जाता है, करोड़ों श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र है। इस क्षेत्र को एक संगठित धार्मिक-पर्यटन सर्किट के रूप में विकसित करने की मंजूरी लगभग अंतिम चरण में है।
यह परियोजना न सिर्फ धार्मिक पर्यटन को बढ़ावा देगी, बल्कि त्रिपुरा की अर्थव्यवस्था, छोटे व्यवसायों और हस्तशिल्प उद्योग को नया जीवन देगी। केंद्र सरकार का यह प्रयास दिखाता है कि पूर्वोत्तर को अब एक अलग-थलग क्षेत्र नहीं, बल्कि भारत की विकास यात्रा का अग्रणी स्तंभ माना जा रहा है।

PM-DevINE: पूर्वोत्तर के लिए सबसे बड़ा संकल्प

सिंधिया ने बैठक में प्रधानमंत्री विकास पहल (PM-DevINE) को मंत्रालय का सबसे बड़ा कार्यक्रम बताते हुए इसके प्रभावी क्रियान्वयन की जानकारी साझा की।
यह योजना 2022-23 के बजट में शुरू की गई थी और इसके लिए 2022-26 तक 6,600 करोड़ रुपये का विशाल प्रावधान किया गया है।

31 अक्टूबर 2025 तक:
44 परियोजनाएँ लगभग 5,700 करोड़ रुपये की स्वीकृत।

इनमें से 3 परियोजनाएँ पूरी हो चुकी हैं।

41 परियोजनाएँ लगभग 5,500 करोड़ रुपये की निर्माणाधीन हैं।

111 करोड़ रुपये की परियोजनाओं को इन-प्रिंसिपल मंजूरी।

625 करोड़ रुपये के प्रस्ताव पाइपलाइन में।

सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि मंत्रालय अपने आवंटित निधि का शत-प्रतिशत उपयोग सुनिश्चित करने की दिशा में तेजी से आगे बढ़ रहा है—जो कुशल प्रशासन और केंद्र सरकार की प्रतिबद्धता का प्रमाण है।

सरकार की सोच:

पर्यटन से विकास, विकास से सशक्तिकरण

केंद्र सरकार ने यह समझ लिया है कि पूर्वोत्तर की असली ताकत उसकी प्रकृति, संस्कृति और पर्यटन क्षमता में है इसलिए:

इंफ्रास्ट्रक्चर सुधार

पर्यटक सेवाओं का विस्तार

स्थानीय युवाओं के लिए कौशल प्रशिक्षण

धार्मिक एवं प्राकृतिक स्थलों का आधुनिक विकास

और डिजिटल कनेक्टिविटी

—इन सभी को रणनीतिक तौर पर जोड़कर एक समग्र मॉडल तैयार किया गया है।

यह वही दृष्टिकोण है जिसके कारण आज पूर्वोत्तर पहले से अधिक जुड़ा हुआ, सुरक्षित और संभावनाओं से भरा हुआ दिखता है।

निष्कर्ष

सोहरा और मताबाड़ी सर्किट जैसे पर्यटन प्रोजेक्ट सिर्फ ईंट-पत्थर के ढाँचे नहीं हैं, बल्कि ये पूर्वोत्तर के आत्मविश्वास, पहचान और भविष्य का निर्माण कर रहे हैं।
प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में केंद्र सरकार ने पूर्वोत्तर को विकास की मुख्यधारा में लाने का जो प्रयास किया है, वह अब जमीन पर स्पष्ट रूप से दिखाई देने लगा है।

पूर्वोत्तर को “अतुल्य भारत” की नई धुरी बनाने की यह यात्रा भारत के समग्र विकास और उसकी सांस्कृतिक विविधता को विश्व मंच पर मजबूत करेगी—यही इस सरकार के दूरदर्शी नेतृत्व की सबसे बड़ी सफलता है।

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